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________________ शोध-कण परमानन्द जैन शास्त्री पं० श्री मिलापचन्द जी कटारिया केकड़ी का 'कुछ दृढ़ नहीं' ऐमा लिखकर अपने अभिमत को पुष्ट 'क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र' नाम का एक लेख अनेकान्त करने का प्रयत्न किया गया है। के १८वें वर्ष की इसी किरण दो में अन्यत्र छपा है। आपका उक्त लेख कुछ गलत कल्पनाओं पर आधाजिसमें क्षपणासार गद्य के कर्ता माधवचन्द्र विद्यदेव और रित है, मालूम होता है पडित जी को एक नाम के दो त्रिलोकसार टीका के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती भिन्न व्यक्तियो के कारण यह भ्रम हुमा जान पड़ता है। के शिष्य माधवचन्द्र विद्यदेव दोनों को अभिन्न [एक] अन्यथा दोनों की एकता के उन्हे कुछ ठोस ऐतिहासिक प्रमाण ठहराने का प्रयत्न किया गया है। साथ ही क्षपणासार उपस्थित करने चाहिये थे। पर ऐसा कुछ भी नहीं किया गद्य की प्राद्य प्रशस्ति में उल्लिखित भोजराज को, जो गया । केवल शक का विक्रम अर्थ देखकर दुदुभि शकशिलाहार कुल के है प्रसिद्ध परमारवशी भोजदेव के साथ संवत्सर ११२५ को विक्रम मानने का अनुरोध किया अभिन्नता व्यक्त करने का उपक्रम किया है। और गया है। नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के समय को भी आगे लाने 'भोज' नाम के दोनों व्यक्ति भिन्न-भिन्न हैं। एक का प्रयत्न किया है। इतना ही नहीं किन्तु त्रिलोकसार भोज मालवा के परमार वंशी राजा हैं जिनकी उपाधि की ८५० नम्बर की गाथा की टीका मे लिखित 'शक' सरस्वती कठाभरण थी, जो धारानगरी के प्रसिद्ध विद्वान शब्द का अर्थ [विक्रमांक शकराज] विक्रम देखकर शक और कवि थे। इनका समय विक्रम की ११वी शताब्दी दुभि संवत्सर ११२५ को विक्रम संवत् मानने और उसे का उत्तरार्ध है । इन भोजदेव के साथ क्षपणासार गद्य के पुष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। इसी प्रसंग में कर्ता का और गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्त द्रव्यसंग्रह और गोम्मटमार को भिन्नता सूचक प्रमाणों को चक्रवर्ती का कोई सामंजस्य ठीक नहीं बैठता । क्षपणामार किसी भी प्रकार की पुष्पिका उपलब्ध नहीं होती है। 'संगीतवृत्तरत्नाकर' के लेखक विट्ठल एवं पुण्डरीक एक ही म अतः उनका ममय एवं आश्रयदाता का उल्लेख प्रामाणिक व्यक्ति है। इसके विवेचन मे उन्हें संदेह है-और वे रूप में सम्भव नहीं। वे रचनाएं निम्नलिखित हैं इसका पूर्ण निर्णय नहीं कर सके है। १. 'नर्तन-निर्णय'--अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीका इममे पूर्ण शका का समाधान हो जाता है। विट्टल' नेर, क्रमांक ३४०७ पत्र-४३ (पूर्ण)। भी सगीत शास्त्री थे और गेमा लगता है कि इनका पूरा २. 'दूती प्रकाश'-( कामशास्त्र) अनूप सस्कृत वंश ही इस कला में निष्णात रहा होगा। वंशानुक्रम में पुस्तकालय, बीकानेर, क्रमांक ३८०१ (पूर्ण)। श्री एम. कृष्णमाचारियर ने इनकी रचनाओं का यह विद्या 'पुण्डरीक' को भी प्राप्त हुई होगी। अतः 'गग मञ्जरी' का लेखक भी 'विट्ठल' को ही मान लिया जाय उल्लेख करते हुए लिखा है-ये उत्तर भारतीय संगीत के विद्वान थे-१. रागमाला, २. नर्तन निर्णय, ३. राग तो किसी प्रकार का सन्देह नही रहेगा। यह सभव है कि मञ्जरी एवं ४. सद्रागचन्द्रोदय के लेखक थे। इनकी 'विट्ठल' को इस प्रथ के निर्माण मे 'पुण्डरीक' का भी ५वी रचना 'रागनारायण' दिल्ली में तैयार हुई है। पाप दिल्ली में भी योग रहा हो। दक्षिणी एवं उत्तरी संगीत का साधिकार समालोचकात्मक इस प्रकार हम महाराज माधवसिह प्रथम के सगीत भेद इनकी रचनामों का विषय है। उनकी दृष्टि में- शास्त्रीय प्रेम का ज्वलन्त प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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