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अनेकान्त
प्रथम ये दक्षिण भारत में विद्यमान - " पारू किवंश" जिसे इतिहास 'फरत वंश' (Pharata Dynesty ) बतलाता है, के बादशाह (राजा) 'महमदखान' के वंशज 'बुरहानखान' के राज्याश्रय में रहे थे । 'दी हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' (The History of Classical Sanskrit Literature) के लेखक श्री एम. कृष्णामाचारीयर 'संगीत शास्त्र का इतिहास प्रस्तुत करते हुए (१०२८ क्रमांक, पृष्ठ ८६५ ) पुण्डरीक विट्ठल के विषय में संक्षिप्त उल्लेख करते हैं। इसके 'फुटनोट में लिखते हैं कि - 'फरत वंश' की सत्ता खानदेश के 'प्रानन्दल्ली' नामक ग्राम में १३७०-१६०० ई० के मध्य मानी जाती है । (This dynasty ruled at Anandwalli in Khan - desh in 1370 – 1600 AD.)
स्व० पं० श्री नन्दकिशोर शर्मा नामावल, जयपुर निवासी ने 'नृसिंह प्रसाद' नामक धर्मशास्त्रीय रचना के प्रायश्चित्तसार' भाग के प्रकाशन के साथ लिखे विद्वत्तापूर्ण लेख में उपर्युक्त ब्रहमदशाह के वंश का कुछ उल्लेख प्रस्तुत किया है। उन्होंने बतलाया है कि निजामशाही राज वंश का प्रतिष्ठापक, बहमनी नामक यवन राज्यवंश के मन्त्री बेहरी निजाम उल्मुक का ज्येष्ठ पुत्र और विजय नगर स्थित 'बहमनी' राज वंश में उत्पन्न ग्रहमदशाह निजामशाह हुआ था । 'निजामशाह' इनका गोत्र माना गया है और इसीलिए इस शब्द का प्रयोग सभी राजाओंों के साथ होता रहा है । इस निजामशाही राज परम्परा मे१. निजाम उल्मुक ( बहमनी राजवंश मन्त्री ) । २. ग्रहमदशाह या निजामशाह (निजामशाही राज्य का प्रतिष्ठापक १४९० - १५०८ ई०) ३. बुरहान निजाम (१1०८१५५३) ४. हुशेन निजाम ( १५५३ - १५६५ ) ५. सलावत खां (१५६५ - १५८९ ) ६. बुरहान निजाम द्वितीय ( १५८ - १५६४ ) इन ६ राजाओं के नाम प्रसिद्ध है । इनमें अन्तिम राजा मुगल वंश के अधीन हो गया था । उस समय हिन्दुस्तान का बादशाह 'अकबर' था। जैसा कि हम अभी बता चुके हैं, मिर्जाराजा मानसिंह प्रथम अकबर के प्रधान सेनापति थे और उन्हीं के समय हमारे चरितनायक श्री पुण्डरीक विट्ठल ब्राह्मण निजाम वंशीय अन्तिम स्वाधीन राजा बुरहान खान द्वितीय के सभासद
एवं सम्मानित संगीतज्ञ थे । इस विषय में एक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । श्री पुण्डरीक विट्ठल अपनी 'राग चन्द्रोदय' नामक रचना के प्रारम्भ में श्राश्रयदाता का वर्णन करते हैं
"वंशः पारूकिभूपतेः सुसरलो भूभारधारक्षमः, श्रीमद् सद्गुण-दानिशूर - विमल क्ष्मापालशाखाभिभूत् । विख्यातो भुवि यत्र काव्यरसिकाः सत्कीर्तिवल्ली श्रिता, चित्र संचरतीति विश्वमखिलं के वर्ण्ययन्तीह तत् । "
तदनन्तर 'अहमदखान' शासक का वर्णन करते हुए अपने आश्रयदाता का वर्णन कर रहे हैं"श्रीमद् दक्षिणदिङ्मुखस्य तिलके श्री खानदेशे शुभे, नित्यं भोगवतीव भोगिवसती रम्या सुपर्वादिभिः । प्रस्ति स्वस्तिकरी नरेन्द्र नगरी त्वानन्दवल्लीति या, तत्र श्री बुरहानखान नृपतिर्वासं करोति ध्रुवम् ॥ तत्र श्री करणप्रयोग चतुरः सल्लक्ष्मलक्ष्यान्विर्तः, देशीमार्गविवेकगायकवरैः साहित्य संकोविदैः । नानावाद्यविधाननर्तनविधिप्राज्ञैः रसज्ञैः समं, रंगे श्री बुरहानखान नृपतिः संगीतमाकर्णयत् ||" इत्यादि
यह 'रागचन्द्रोदय' नामक रचना अनूप संस्कृत पुस्तकालय, लालगढ़ पैलेस, बीकानेर में संगीत विषयक पुस्तकों मे ३४२४ क्रमांक पर उपलब्ध है यह २८ पत्रात्मक रचना है। प्रारम्भिक पद्यों में अपने श्राश्रयदाता का उल्लेख करने के पश्चात् ग्रन्थ समाप्ति पर वे स्वयं का परिचय प्रस्तुत करते हैं
"कर्णादेशोवतांगाभिधनगनिकटे सा तनूव वियो यो, ग्रामस्तत्राप्रजन्मप्रवरनिकरराट् जामदग्न्योऽस्तिवंश: । तत्र श्री विलाय भवदमितयशा सद्गुणाख्यायुतस्य, वत्सूनो 'रामचन्द्रोदय' इति मतिमत्वरवारणां मुदेसु ॥"
' इति श्री कर्णाटजातीय पुण्डरीक विट्ठल विरचिते राग चन्द्रोदये आलप्तिप्रसादस्तृतीयः । - इससे स्पष्टतः कहा जा सकता है कि इनके पिता का नाम 'विट्ठल' था और इनका नाम 'पुण्डरीक' । ये कुछ समय तक बुरहान खान के अधीन रह कर, उसके राज्य के अकबर के अधीन होने पर कुछ समय के लिए बादशाह अकबर की सभा में चले गये थे । वहां इन्होंने "रागनारायण" नामक ग्रन्थ की रचना की थी। श्री एम. कृष्णामाचारियर लिखते हैं