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अनेकान्त
जैन इतिहास के ही नहीं, भारतीय इतिहास के भी गोत्रा धारो जिन गुरु पदाभ्यर्चन प्रहचेतानये तथ्य प्रकाश में प्रायेंगे।
स्तात्तीयाकस्तदनु तनुजः पलणाख्योबभूव ॥२१ कुछ महिने पूर्व भारत जैन महामण्डल, की ओर से पाश्वदेवस्य संजज्ञे पद्मश्री नामिका प्रिया कलकत्ता में जैन कला प्रदर्शिनी हुई थी उसमें दो ताड़- यस्याः पतिव्रतात्वेन स्वकूलं निर्मली कृतं ॥२२ पत्रीय प्रतियों के अन्तिम पत्र भी प्रदर्शित किये गये थे। अयांवड़स्योचितकृत्यदक्षा मंदोदरी नाम बभूव पत्नी उनकी पूरी प्रतियां तो अब कहां है ? पता नहीं, पर सु......द्विवेकोज्वल सार हारा स्वमन्दिरे मूर्तिमतीन प्राप्त पत्रों में जो प्रशस्तियां लिखी मिली हैं उन्हें यहां
लक्ष्मी ।।२१ प्रकाशित की जा रही हैं । पहली प्रशस्ति सवत १४११ हरेरिव भुजा दण्डाश्चत्वारस्तनयास्तयोः (दिल्ली) की है व छोटी-सी है। इस प्रति के अन्तिम प्रजायन्त सदाचार गहभार धुरन्धराः ॥२४ पत्र में 'अंबिका के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है। प्रथमो जनिष्ट तेषां पावकूमाराभिधे गुणः प्रथमः दूसरी प्रशस्ति के प्रारम्भिक १७॥ श्लोक वाला पत्र प्राप्त विनय हमाल वाल पित्राज्ञा पालनप्रवण. ॥२५ नहोने से उसके बाद के ही श्लोक दिये जा सके हैं। बभूव प्रय....."प्रथिवि देवीति नाम्ना इस प्रति में भी एक देवी का चित्र है। इन दोनों चित्रों विनीत विनया नित्यनौचित्य प्रियकारिणी ॥२६ के फोटो प्रकाशित किये जाने चाहिये।
तदनु तनयो द्वितीयः समजनि धनसिंह नामको विनयी (१) ज्ञाता सूत्र वृति-अभयदेव सूरि (अंतिम पत्र निर्मलकलाकलापस्त्रणक्रीडाद्रि रभिरामः ॥२७ ताड़ पत्रीय) संवत् १४११ माघ सुदि १५ श्री योगिनीपुर नाम्ना धांधलदेवी सजज्ञे तस्य गेहिनी । वास्तव्य श्रीमालकुल संभव चंड गोत्रीय ठ० थिरदेव पुत्र पुण्यार्जनाजित श्लाघ'"ध्य कर्माभि रंजिका ॥२८ सा० लोला सुश्रावक भगिन्या दानशील तपोभावना निर- ततस्तृतीयो जनि रत्नसिहः सन्ताप कारिन्यसनेसिंहः तया विवेकिन्या सुधाविकया स्वपुण्यार्थ श्री ज्ञाता धर्म दूरं परित्यक्त विरुद्धमंग: श्रीमज्जिनेन्द्रक्रम कथा सिद्धान्त पुस्तके मूल्येन गृहीतं । वाचनाय खरतर
पद्मभृगः ॥२६ गच्छ शृङ्गार श्रीमज्जिनचन्द्रसूरि पादग्ना समर्पित। तस्या जनिष्ट दयिता नाम्ना राजलदेविका
अंबिका चित्र पत्रांक २६५ पेथुका ख्यातयोः पुत्री समस्तानंददादिनी ॥३० २. आदिनाथ चरित्र की ताड़पत्रीय प्रति का अन्तिम अनन्य सौजन्य जना विवेकलीलोज्वलचित्तवत्ति. पत्र:
सर्व त्रिकौचित्य विधि प्रवीणो जज्ञे जगत्मिह (चित्र १-१८ भुजावाली देवी का लाल पृष्ठभूमि
सुतश्चतुर्थ ।।३१ पर पीला चित्र काले वस्त्र)
पत्नी जाल्हण देवीति नाम्ना तस्य समजनि । .................."स्त्रयो मुणे :। कुत्राप्य तुन्मेकवती प्रधान विनयान्विता ॥३२ । प्रानन्द दायिनःपित्रो, रन्यान्यं प्रीति शालिन ॥१८॥ सोलुकाभ्यातत पुत्री बभूव प्रियवादिनी । प्राद्यः सुतः संश्रित धर्म कर्मा, विवेकवेश्माजनिपाश्र्वदेवः यस्या शीलजल. शुद्ध: पुण्यवल्ली प्रवद्धिता ॥३३॥ अभ्यर्थन...... निभीरु. प्रकल्पित श्री जिननाथ सेवः ॥१६ पत्नी नतो जात'''हणस्य अन्योबभूवांबड नाम घेय कस्याप्य संपादितचित्तपीड:
माणिक्यमाला स्फुरदंशुशीला । स्वकीय सन्तान धुरा धुरीणः स्ववेश्म लक्ष्मी
जिनोपदेशश्रुतिकर्णपूरा कृपा प्रपा हृदयक हारः ॥ ०
माणिकि नामधेया ॥३४॥ सौचित्या चरणनिपुण: प्रीतिपूर्वाभिलापी
समजनि ठयोस्तनूजो धरणिग नामा समस्तगुणपात्रां सुस्वाजित्याजित गुरु मुणः सिद्धि वै.. वेश्म
निखिल सुकुलक धुरा धुरन्धरः स्मित मधुरभाषी ॥३५॥