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ब्रह्म नेमिवत्त और उनकी रचनाएँ
चरित, ९. नेमिनिर्वाण काव्य (ईडर) और १०. नाग- माल लेकर अपनी कीति को उज्ज्वल बनायो। श्री कथा (जयपुर)।
रचना इस प्रकार है :इनके अतिरिक्त दो रचनाएँ हिन्दी भाषा की और प्राप्त सकल जिणेसर पय-कमल, पणविवि जगि जयकार । हुई हैं । मालारोहिणी (फुल्लमाल) और प्रादित्य व्रतरास फुल्लमाल जिणवरतणी, पभणउं भवियण ताइ॥१ इन दोनों रचनाओं का संक्षिप्त परिचय देना ही इस लेख वृषभ अजित संभव अभिनंदन, का प्रमुख विषय है । इनमें मालारोहिणी एक सुन्दर सरस
सुमति जिणेसर पाप निकंदन । रचना है, जो महत्त्वपूर्ण जान पड़ती है, कविता सरल और पद्म प्रभु जिन नामें गज्जउं, श्री सुपास चंदप्पह पुज्ज।२ प्रभावक है । यद्यपि कहीं-कहीं कुछ अंश त्रुटित मिला है, पुप्फयंतु सीयलु पुज्जिज्जइ, फिर भी वह भावपूर्ण और सुगम है। इसी से अनेकान्त
जिणु सेयंसु महिं भाविज्जइ । के पाठकों के अवलोकनार्थ यहां दी जा रही है। वासु पुज्ज जिण पुज्ज करेप्पिणु, बुन्देलखण्ड वर्तमान (मध्य प्रदेश) में जहा कहीं भी
विमल प्रणंत धम्मझाएप्पिणु ।३ जिनेन्द्रोत्सव, कलशाभिषेक, बृहत्पूजा पाठ और प्रतिष्ठादि सांति कुंथ पर मल्लि जिणेसर, कार्य सम्पन्न होते हैं उस समय कविवर विनोदीलाल की मुणिसुव्वउं पुज्जउं परमेसर । फूलमाल पच्चीसी अवश्य पढ़ी जाती है और उसकी बोली
नमि नेमीसर पय पूजेसउं, भी बोली जाती है और जो अधिक से अधिक बोली लगा भव-सायर हडं पाणिय देसउं ॥४ कर लेता है माल उसे ही प्राप्त होती है। कवि विनोदी- पासणाह भव-पास-निवारण, लाल ने उसमें ८४ उपजातियों का समुल्लेख किया है। वडढमाण जिण तिहुवण तारण । यह माल १८वीं शताब्दी की है। जब कि प्रस्तुत माला
ए चउवीस जिणेसर बंदि वि, रोहिणी १६वीं शताब्दी की रचना है। इससे ज्ञात होता
शिव गामिण सारद अभिनंदिवि ॥५ है कि गुजरात प्रादि देशों में उस समय भी यह प्रथा मूलसंघ महिमा रयणायर, प्रचलित थी, इससे भी पुरातन अन्य प्राचार्यों की रचनाओं गुरु निग्गंथु नमउं सुथ-सायर । का अन्वेषण होना चाहिए।
सिरि जिण फुल्लमाल बक्खाणउं, इस 'माला रोहिणी' के प्रारम्भ में वृषभादि चौबीस
नरभव तणउ सार फल माणसं ॥ तीथंकरों की स्तुति है उसके बाद मूलसंघ के रत्नाकर
भवियण भव-भय-हरण, तारण तरण समत्यु । निर्ग्रन्थ गुरु श्रुतसागर को नमस्कार कर फूलमाल को
जाती कुसुम कांजलिही पुज्जहुँ जिण बोहत्य ॥७ कहने की प्रतिज्ञा की है। और उसे मनुष्य भव का सार
जाती सेवंती वर मालती, चंपय जुत्ती विकसंती।
विमला श्रीमाला गंध विसाला, कुज्जय धवला सोभंती॥ फल बतलाया है। पश्चात् मोगरा, पारिजात, चपा, जुही, चमेली, मालती, मचकुद, कदब तथा रक्तकमल आदि
रत्त प्पल फुल्लहिं कमल नवलहि जूही हुल्लहि जयवंती। सुगंधित पुष्प समूहो से गुफित जिनेन्द्रमाल को स्वर्ग-मोक्ष- मचकुंद कयबहि बमणय कुंदहि नाना फुल्लहि महकती। सुख कारिणी बतलाया है। साथ ही सकल सुरेन्द्रों के
सग्ग-मोक्ख-सुह-कारिणी माल जिणिवह सार । द्वारा पूजित धन-कण सम्पत्ति दायक और दु.खों का अन्त विणउ करेपिणु मग्गियह जिम लगभद्द भव-पार ॥१० करने वाली बतलाया है। साथ में यह भी उदघोपित सुमोग्गर फुल्ल महक्क माल, मधुकर ढक्का गंध रसाल। किया है कि यह सुअवसर बार-बार नहीं मिलता, धन सुपाडल पारिय जाइ विचित्त, सम्पदा चंचल है, धन, यौवन, कंचन, रत्न, परिजन और
जिणेसर पुज्जिय लेय पवित्त ॥११ भवन आदि सभी चीजें जल के बुदबुदे के समान अस्थिर सकल सुराषिप पुज्जियउ पुज्जहु सिरि जिणदेउ । एवं विनाशीक हैं। इनका कभी गर्व न करो और निर्मल धण-कण-जण संपह लहह, दुक्ख तणउ होइ छेउ ॥१२