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________________ ८२ भनेकान्त विवाह नाम संवत्सरे (पोप वदी पंचमी) शुक्रवासरे पादुका लेख मुझे शिरपुर व इतरत्र मिले वह मैंने प्रसिद्ध प्रतिष्ठा सिरपुर ।) किये है प्राशा है इन मूर्ति लेखों से कुछ इतिहास पर या प्रमाणे शिरपुर सम्बन्धित जो मूर्ति, देवी, यंत्र व विशेप प्रकाश पड़ेगा। गत किरण में जो मूर्ति लेख प्रकाशित हुए थे, उनमें निम्न सुधार वांछनीय हैपृष्ठ २५ के पहले कालम की ४थी पंक्ति में मुकर्जी की जगह गुरुजी। दूसरे कालम की पंक्ति १३ में १३' ऊंची के स्थान पर १॥' ऊंची। पृ० २६ के पहले कालम में भ० श्री १०७ के स्थान पर श्री १०८, तथा भ० श्री १०७ के स्थान पर १०८ जिनसेन (कुबड़े स्वामी) पढ़ें। पृ० २८ पर दूसरे कालम की पंक्ति १३ में सन् १८६७ के स्थान पर १२६७ फसली चाहिए। मराठी में लिखे अंकों के कारण छपने में अशुद्धि हुई है। ब्रह्म नेमिदत्त और उनकी रचनाएँ परमानन्द जैन शास्त्री ब्रह्म नेमिदत्त मूल सघ सरस्वती गच्छ बलात्कार गण मिलता है, जो नेमिदत्त के सहपाठी हो सकते है। के विद्वान् भ० मल्लिभूपण के शिष्य थे। इनके दीक्षा ब्रह्म नेमिदत्त मस्कृत हिन्दी और गुजराती भाषा के गुरु भट्टारक विद्यानन्द थे, जो भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के विद्वान थे । आपकी संस्कृत भाषा मे १० रचनाएँ शिष्य थे। इन्हीं विद्यानन्द के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने वाले उपलब्ध है, वे सब चरित पुराण और कथा मल्लिभूषण गुरू थे, जो सम्यग्दर्शन जान चरित्र रूप रत्न- सम्बन्धी है। पूजा सम्बन्धि साहित्य भी आपका चा त्रय से मुशोभित थे । और विद्यानन्द रूप पट्ट के प्रफुल्लित हा होगा, पर वह मेरी जानकारी में नहीं है। प्रापकी करने वाले भास्कर थे१ । ब्रह्म नेमिदत्त के साथ मूर्ति ये सब रचनाएँ सं० १५७५ मे १५८५ तक रची गई लेख में ब्रह्म महेन्द्रदत्त नाम का और उल्लेख जान पड़ती है। इससे आप १६वी शताब्दी के प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे। आपकी रचनाओं की भापा अन्यन्त १. श्रीमज्जैनपदाब्ज सारमधुकृच्छीमूलसंधाग्रणीः । सरल और सुगम है । रचनात्रों के नाम इस प्रकार हैं.-- सम्यग्दर्शनसाधुबोधविलसच्चारित्रचूडामणिः । १. पाराधना कथा कोष सं० १५७५, २. नेमिनाथ विद्यानन्दि गुरु प्रपट्ट कमलोल्लासप्रदो भास्करः। पुराण सं० १५८५। ३. धर्मोपदेश पीयूषवर्ष श्रावकाचार। श्रीभट्टारकमल्लिभूषणगुरुर्भूयात्सतां शर्मणे ॥ ४. रात्रि भोजन त्याग कथा, ५. सुदर्शन चरित, ६. श्री. -आराधना कथाकोष-प्रशस्ति पाल चरित, ८. प्रीतिकर महामुनि चरित, ८. धन्यकुमार
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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