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________________ श्रीपुर पार्श्वनाथ मन्दिर के मूति यंत्र लेख संग्रह (४) मादिनाथ मल्हारजी बिटुडे के गृहमें २९१४ में मुम्बई से पानाचंद हिराचंद झवेरी ने प्रसिद्ध (१) लक्ष्मी यंत्र-श्री मु०सं० भ० अ० श्री की है। उसमें 'अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ' इस पतिशय क्षेत्र का विशालकीति तु पदे श्रीपुरे भगवंत का० सइ० उल्लेख अनुक्रम से पान ३२ से ३७ और २४४ से २५० मन्नतव्रत द्या। के ऊपर पाया है। दोनों में मजकूर एक ही है । उसमें (५) मनोहर माधव संघई के गृहमें लिखा है की "शिरपुर ग्राम में दिगंबर जैनियों के ४२ -१-मूर्ति हरा काला पाषाण ऊंची ४" गृह तथा १८८ भादमी है। और दो दिगंबर मंदिर जी शिखरबन्द है। उसीमें एक पुराणा मन्दिर है जिसके भोयरे संम (वत)-७४७ रविवार कार्तिक......... श्रीपुर'......" में कुल २६ प्रतिमा है और ऊपर के मन्दिर में भी (कुछ), जो कुल ५१ प्रतिमा मौजूद है। वे सब दिगंबरी है जिनका (६) देवभणसा रामासाके गृहमें संवत प्रादि मागे के कोष्टक में दिया हुमा है। (मागे (क) पीतल नंदीश्वर ऊँची २"-श्री विमल। कोष्टक है जिसमें मूर्ति, पादुका, यंत्र, देवी के लेख-काल (७) तुकाराम नारायण मनाटकर के गृहमें का संक्षिप्त विवरण है।) (क) आदिनाथ, हरा पाषाण ऊंची ७"-शके इनके सिवाय ४ नशियां है, जो सब दिगंबरी १५९६ श्रीमूल-स...... श्रीपुर (रे) आम्नाय की हैं । इस प्रकार जो मूर्ति, पादुका, यंत्र, (उ) पदेशात् । पद्मावती है वे सब प्रकाशित किये हैं।" श्री गंगाराम गोकुलसा महाजन रा० कारंजा इस कोष्टक में एक ही सफेद पाषाण के पद्मावती के गृहमें देवी का उल्लेख है। उसके प्रतिष्ठा का संवत् १९३० पीतल की पदमावती देवी ऊंची ७॥" स्पष्ट लिखा है तथा एक सफेद पाषाण के पाश्वनाथ का (पीछे से) सके १५६१ फाल्गुण वदी स (ष)ठी संवत १९३० भी बताया है। (ष्ठी) श्रीमूलसंघे सेनगणे भट्टारक सोमसेनः तुक इस कोष्टक से यह स्पष्ट प्रमाणित होता है कि, गणासा वगोसा व वोपासा । उपदेशात् नित्यं प्राज जो ऊपर के मंदिर में पीतल की पद्मावती देवी है प्रणमति ।। कारंजा नगरे : वह ई० सं० १९०७ में (क्योंकि यह कोष्टक १९०७ में सामने के बाजु में बैठक पर-प्रतिष्ठा श्रीपुर नगरे लिखा गया है।) वहां नहीं था। बाद में किसी गृह विधान । चैत्यालय से वहां रखी गयी होगी। इस पीतल की देउलगांव राजा के श्रीचन्द्रनाथ दिगम्बर जैन- पद्मावती मूर्ति का ही हर कार्तिक पूनम को यात्रा और जुलूस मन्दिर में निकलता है। जो कि बड़े मन्दिर से निकल कर पवली पीतल पावनाय ऊंची१'-सामने के बाज-श्रीपूरे। मन्दिर में जाता है। वहां के पार्श्वप्रभु का अभिषेक पूजन थीमूलसंघे त्रिभूवनक स्वामीभ्यो : श्री पार्श्वनायेभ्यो भजन कर वापिस लौटता है। नवरात्र में दोनों देवियां नित्य नम : । प्रतिष्ठा । ऊपर चौक के काठ पर एक जगह विराजमान होती हैं । पीछे से-सं(ब)त १५७८ बैशाख सुदी द्वादशी गुरौ अनेकांत के गतांक में पृष्ठ २७ पर लेख नं० २ तांबे मूल० सर० बलात्कारगणे थी कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० का यंत्र-इसका लेख मैंने इस तरह दिया था-"विवाह विद्यानंदी पट्टे भट्टारक श्री मल्लीभूषण पट्ट भ. श्री नाम संवत्सरे पोप वदी पंचमी शुक्रवारे प्रतिष्ठा सीरपुर लक्ष्मीचन्द्र गुरुभ्रात सु(सूरि श्रीश्रुतसागर पाठिताचार्य श्री अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ चैत्यालये दीक्षाग्रहण प्रतीसन पर(?) सिंहनन्दी गुरुपदेशात् ब्रह्म महेन्द्रदत्त नेमीदत्तो श्री संघः लेकिन यात्रा दर्पण तथा डिरेक्टरी में उसका वाचन इस प्रणमन्ति । तरह से किया है और यह कोष्टक का उतारा ही बराबर हाल ही में पता चला की, श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन समझना वह इस प्रकार है-तांबे का यंत्र-'अन्तरिक्ष 'यात्रा दर्पण११० सं० १९१३ मौर डिरेक्टरी इ० सं० पार्श्वनाथ चैत्यालय (ये) दीक्षा ग्रहण प्रतिष्ठा सं. १२२५
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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