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३८वें ईसाई तथा ७ बौद्ध विश्व-सम्मेलनों को भी बन संघ को प्रेरणा
वस्त्र में वियतनामी उपासिकाएँ रंग विरंगे पोशाकों में सुविधा नहीं करती। सरकार ईसाई सम्मेलन को पूर्ण भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया के प्रतिनिधि तो थे ही सुविधा देती है प्रादि । पश्चिमी सभ्य पोशाकों में प्रास्ट्रलिया, योरोप तथा प्रमेरिका के प्रतिनिधि भी थे।
थाइलण्ड की प्रतिभाशालिनी राजकुमारी पुन पिस्मइ
टिस्कुल सातवें विश्व बौद्ध सम्मेलन के प्रमुख पद पर पुनः इस सार प्रसग पर सम्पादकाय लख लिखत ३११ प्रतिष्ठित हुई। उन्होंने विभिन्न प्रसंगों पर जो कुछ कहा ६४ के 'प्राज' दैनिक में कहने में पाया था कि इस वह सचमुच उल्लेखनीय है । २५ सौ वर्षों से बोड धर्म सम्मेलन में ऐसे निर्णय (ठहराव) करने में पाए जो बौद्ध
मानव समाज की सेवा समयानुसार कर रहा है। सब धर्म के प्रचार में ही नहीं समस्त मानवता के कल्याण में
धर्मों का मन्तिम लक्ष्य एक ही है कि मानव को पशु के भी सहायक हों। सचमुच सातवें बौद्ध सम्मेलन में जो भी
स्तर से ऊपर उठाना ।" मानव समाज की तथाकथित नई निर्णय किए हैं वह बड़े ही महत्वपूर्ण हैं । सम्मेलन ने
पीड़ी प्रायः सब धर्मों को हेय दृष्टि से देखती है। क्योंकि विश्व के बौद्धों को प्रेरणा दी है कि:-(१) प्रत्येक धर्मो वे अन्ध विश्वास की विरोधिनी है इसीलिए हमको बोट के साथ सद्भाव और मित्रता रखना (२) प्रत्यक बाद्ध धर्म की बुद्धिग्राही ढंग से व्याख्या करनी पड़ेगी किन्तु संगठन विश्व शान्ति की रक्षा के लिए हर एक धर्म तथा वैसा करने के पूर्व सबसे पहले हमें स्वयं उसे अच्छी तरह उसके धार्मिक संगठनों के साथ सहयोग पूर्वक कार्य करें समझ लेना होगा । हमें (बोड) अन्य धर्मानुयायिनों से (३) बौद्धों के दो प्रमुख भेद महायान तथा थेर (स्थविर)
मा भिमानता र वादी शाखामों में पारस्परिक सम्बन्ध और घनिष्ठता वैसा अभिमान प्रतिस्पर्धा का सर्जक हो जायगा । हमको स्थापित हो (४) बौद्धों और हिन्दुनों में गहरा सद्भाव प्राशा है कि सब धर्मों में सहयोग और एकता होगी और आवश्यक है (५) विश्व राष्ट्रसंघ को विश्व के निशस्त्री- इस तरह साथ-साथ कार्य करते हुए शान्ति, सामाजिक करण के लिए अपील की (६) परमाणु शस्त्रों का उपयोग दढता तथा प्रगति की उपलब्धि भी होगी। बोड और कोई राष्ट्र न करे (७) परमाणु शक्ति का उपयोग निर्माण हिन्दनों में गहरे सद्भाव की प्रावश्यकता है। हम सब कार्य में ही होना चाहिए (८) निश्चित याजनामा का (बौद्ध) महान् हिन्दू प्रतिनिधित्व के सदस्य हैं। हिन्दू चरितार्थ करने के लिए विशाल रूप से धन संग्रह करना लोग दोनों एक ही हैं। हिन्दू धर्म प्राचीन है। बौद्ध धर्म मादि।
का ईसवी पूर्व छठी शताब्दी में जन्म हुआ। बौद्ध धर्म सारनाथ के सातवें विश्व बौद्ध सम्मेलन के लिए और हिन्दू धर्म का लक्ष्य समान है । वह लक्ष्य है मोक्ष थाइलैण्ड के श्री सुद्धिमाणिक्य ने डेढ़ लाख रुपया दिया प्राप्त करना अर्थात् स्वतन्त्रता प्राप्त करनी। (उनके था। उसके बदले में सम्मेलन ने उनको खास धन्यवाद विकास में) मापके जो कोई प्रयत्न होंगे उसमें हमार: दिया था। १-२-६४ के दिन बौद्ध मन्दिर में तीन भार- (बौद्धों का) पाएवं सहयोग मिलेगा। (१.१२-६४ का तीय बालकों को तथा ६ महाराष्ट्र के वयस्कों को श्रामणेर काशी विद्यापीठ का भाषण) वाराणसी के साथ मेरा दीक्षा देने में आयी थी । सन् १९५४ में उत्तरप्रदेश राज्य (राजकुमारी का) सम्बन्ध जन्म से है इत्यादि अनेक तथा केन्द्रीय सरकार ने ३५ लाख रुपया तो केवल सार- भाषणों से भी मागे बढ़कर राजकुमारी प्रमुख व्यक्तियों नाथ के हो विकास के लिए खर्चे थे। अन्य स्थानों के के समूह के साथ श्री तुलसो मानस मन्दिर में गई और लिए तो अलग अलग रकमें भी थीं। सन् १९५६ के पहले वहाँ जाकर के हिन्दू विधि से पूजन भी किया। काशी तथा बाद में भी अनेकों सहायता बौद्ध केन्द्रों को सरकार हिन्दू विश्व विद्यालय के श्री विश्वनाथ मन्दिर में भी के द्वारा मिली है। इतना होने पर भी मान्य भिक्ष श्री प्रमुख व्यक्तियों के साथ श्री विश्वनाथ जी का बैदिक धर्मरक्षित जी प्रायः २५-११-६४ के 'माज' में लिखते हैं मन्त्रों से पूजन किया । लंका के ब्रिटेन में हाई कमिश्नर कि सरकार बौद्ध सम्मेलन के प्रति उपेक्षा रखती है। कोई तथा विश्व बौद्ध सम्मेलन के सर्जक श्री मलाल शेखर जी