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अनेकान्त
प्रथम विश्व भ्रातृत्त्व संघ की स्थापना की। प्रथम सम्मेलन तो समझ में प्राता है किन्तु २६ जनवरी १९६५ के दिन भी लंका में ही किया उसके बाद प्रति दूसरे वर्ष विश्व दक्षिण भारत में केवल हिन्दी राष्ट्र भाषा न होनी चाहिए बौद्ध सम्मेलन विभिन्न देशों में हुए हैं। क्रमशः जापान, इतने ही मात्र के लिए, हिन्दी के विरोध में, दो व्यक्तियों वर्मा, नेपाल, थाईलैण्ड तथा कम्बोडिया में हुए हैं। सातवाँ का जीते जी जल मरना वह समझ में नहीं पाता। ऐसी ६ दिन का विश्व बौद्ध सम्मेलन सारनाथ में हुमा। इतना ही एक विशाक्त हवा लंका से भी पाई थी कि वहाँ के जानना जरूरी है कि धर्मपाल जी के अनेकों शिष्य भिक्षु एक बौद्ध भिक्षु ने कहा है-'सरकार द्वारा यदि समाचार होते हुए भी श्री धर्मपाल जी के अनुरागी भक्त गृहस्थ पत्र अपने अधिकार में ले लिए जायेंगे। तो वियतनाम के श्री मलाल शेखर जी ने श्री क्रिस्मस हम्फे जैसे बहुश्रुत बौद्ध भिक्षुओं की तरह मैं भी जीवन कुर्वान करके विद्वान का अमूल्य सहयोग लेकर प्रागे भाए और विश्व अग्नि में जल मरूंगा। प्रत्येक शुभ प्रादर्श का मानव बौद्ध सम्मेलन की स्थापना की । स्थापना से लेकर माज समाज कितना भयंकर दुरुपयोग भी कर सकता है ? लंका तक ब्रिटेन में लंका के हाई कमिश्नर प्रादि अनेक उत्तर- और दक्षिण भारत के दोनों उदाहरण इस बात के साक्षी दायित्व पूर्ण पदों की जिम्मेदारियों को निभाते हुए उन है। दोनों महानुभावों ने अनेक सहयोगियों के साथ मिलकर
विश्व बौद्ध सम्मेलन में विश्व के ३२ देशों में से प्रधान्त गति से विश्व बौद्ध सम्मेलन की गाड़ी मागे
चीन, पाकिस्तान, हिन्देशिया एवं वर्मा को छोड़कर २८ खींचते ही जा रहे हैं। श्री जैन संघ के लिए सचमुच वह राष्टों के बौद्ध प्रतिनिधि इकट्ठे हुए थे। सम्मेलन के उद्प्रेरणा लेने योग्य है।
घाटन के पूर्व डा० राधाकृष्णन् ने बुद्धदेव की मूर्ति की विश्व बौद्ध सम्मेलन का उद्देश्य राज्यनीति में भाग पूजा की थी। फूल चढ़ाए थे। धूप भी किया था। लेने का नहीं है केवल पार्मिक तथा सांस्कृतिक प्रवृत्तियों सम्मेलन में उपस्थित खास व्यवितयों में तिब्बत के श्री तक ही अपना कार्य क्षेत्र सम्मेलन ने सीमित रखा है। दलाई लामा, लद्दाख के श्री पणछेन लामा, महाराज यद्यपि बौद्ध देशों में प्रापसी वैमनस्य तथा विरोध भी है। सिक्किम, सम्मेलन की अध्यक्षा थाइलण्ड की राजकुमारी वियतनाम तथा लामोस और थाईलण्ड एवं कम्बोडिया में श्री मती पून पिस्मइ टिस्कुल, लामोस सरकार के सांस्कृप्रापसी विरोष है। वर्मा एक बौद्ध देश होते हए भी वहाँ तिक मन्त्री, काशी नरेश, राजमाता विजया नगरम, उत्तर की सरकार के पहले बौद्ध अधिकारी इस समय जेल प्रदेश सरकार की प्रधान मन्त्रिणी श्रीमती सुचेता कृप
लानी, भारत सरकार के परराष्ट्र मन्त्रालय की श्रीमती वियतनाम में अमेरिकन शासन के सामने बौद्धों ने
लक्ष्मी मेनन, लंका में भारत के राजदूत श्री भीमसेन
सच्चर, ब्रिटेन में लंका के राजदूत श्री मलाल शेखर जी, जो विरोध व्यक्त किया था उसके फोटू स्लाइड चित्र और खून से तर वस्त्र प्रादि भी सारनाथ में दिखाने में पाए
इंग्लण्ड के श्री क्रिस्मस हम्फे आदि अनेकों विशिष्ट
व्यक्ति उपस्थित थे। विश्व सम्मेलन के लिए ही सारनाथ थे। भारत ने गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसक सत्याग्रह
में खास रिजर्व बैंक की शाखा खोलने में आई थी। विश्व तो देखा ही है किन्तु वियतनाम में अमेरिकनों के सामने
और भारत में समाचार भेजने के लिए टेलीप्रिंटरों की भिक्षुमों का जीते जी अग्नि में जल जाने के अनेकों प्रसंग
खास व्यवस्था करने में आई थी। सचमुच मानव समाज के सामने महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। वियतनाम का वह विरोष प्रभी समाप्त नहीं है वर्तमान विश्व बौद्ध सम्मेलन में बौद्ध भिक्षों एवं प्रतिनिधि में भी चल रहा है। दो चार दिन ऊपर के पत्र में पढ़ने गण अनेक प्रकार की बेश भूपामों में उपस्थित था। में पाया था कि कोई बौद्ध भिक्षुणी सरकार के विरोध कत्थई वस्त्र में तिब्बत, मंगोलिया तथा लद्दाखी भिक्षुमों के निमित्त अग्नि में जल मरी है। यद्यपि वियतनाम में के साथ रूसी उपासिकाएं भी थीं। पीत वस्त्र में स्थविर बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों का मात्म बलिदान प्रेरक प्रसंग वादी भिक्ष, काले पोशाक में जापानी धर्माचार्यों, श्वेत