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३८ ईसाईतवा
बोर विश्व-सम्मेलनों की श्री जनसंघको प्रेरणा
हए अत्याचारों के प्रत्यक्ष अनुभव ने श्री धर्मपाल जी के जीवन बिताया, परिणामतः ज्ञान की परम ज्योति प्राप्त जीवन में प्रशान्ति उत्पन्न कर दी थी। वृद्धावस्था में की और मानव समाज को अपने-अपने ढंग से कल्याण के स्वास्थ्य जिस तरह गिरा था उसके कारण के रूप में परम मार्ग का भी उपदेश दिया। इस तरह जनों के लिए निश्चित रूप से यही मन : स्थिति हेतु रूप थी। धर्म के बौद्ध एक प्रत्यन्त प्रात्मीय भारतीय बन्धुधर्म ही है। कर्णधारों में उनकी तुलना मात्र स्वामी विवेकानन्द से ही प्रगति के पथ पर चले हुए दोनो बन्धु पों के हजारों हो सकती है।
वर्षों के भूतकाल के इतिहास पर सूक्ष्म दृष्टि डाल कर गिनती के ही वर्षों पूर्व सम्पूर्ण भारत में एक भी एक दूसरों की सफलता प्रसफलता, त्रुटि, कमजोरी, मादि बौद्ध नहीं था । जबकि वर्तमान में करोड़ों बौद्ध भारत में अनेक बातों का मूल्यांकन करें वह इच्छनीय है । बौद्धों के हैं। सैकड़ों की संख्या में बौद्ध भिक्षुएं भी हैं। न केवल लिए हाल वर्तमान में खास कुछ कहने की आवश्यकता भारत में अपितु समग्र विश्व के कोने-कोने में बौद्ध प्रचार नहीं है। आवश्यकता मात्र श्री जैन संघ तथा समाज के का सूत्रपात एकमात्र एकांकी अनागारिक श्री धर्मपाल लिए ही है। क्योंकि इस लेख का उद्देश्य ही 'श्री जैन संघ जी ने ही किया था। श्री धर्मपाल जी ने घोषित किया कुछ प्रेरणा लेगा?' यही है। लेख के अन्त में उस पर था कि 'भौतिकवाद और अध्यात्मवाद के बीच में सन्तुलन भी विचार करेंगे। करने से ही संसार मे कुछ उपयोगी कार्य हो सकता है मैं धर्म की सेवा के लिए २५ बार जन्म लूंगा। मेरा वर्तमान विश्व में तीन धर्मों का अधिक प्रचार है। जन्म वाराणसी के ही एक ब्राह्मण परिवार में ही होगा।' ईसाई, बौद्ध एवं इस्लाम । सबसे पहला व्यवस्थित संगठन श्री शामा प्रसाद जी प्रदीप कहते हैं कि-श्री धर्मपाल जी ईसाइयों का था। जो आज तक बराबर बढ़ता ही जा ने भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुद्धार ही नहीं किया बल्कि रहा है। विभिन्न देश, परम्परा एवं स्थानों में मात्र मानव विशुद्ध धर्म प्रचार करके उन्होंने विश्व में सबसे बड़े सेवा के लक्ष्य को लेकर ही वह व्यवस्थित रीति से प्रागे मिशनरी होने का गौरव भी प्राप्त किया।' डा. श्री प्रगति कर रहा है। ईसाई विश्व सम्मेलनों के विभिन्न कैलाशनाथ काटज़ ने श्री धर्मपाल जी के लिए कहा कि- देशों में ३८ महान् अधिवेशन हुए हैं। करोड़ों की संख्या 'जिस तरह आनन्द बुद्धदेव को कपिलवस्तु वापस ले गये में ईसाई बढ़ गये हैं वह ईसाइयों की व्यवस्थित कार्य थे उसी तरह श्री धर्मपाल जी भारत में बौद्ध धर्म को शक्ति का ज्वलंत उदाहरण है। बम्बई में हुए. ३८वें वापस ले पाए।' महाबोधि सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी विश्व ईसाई सम्मेलन की व्यवस्थिता, स्पष्टता तथा अनूब्रह्मचारी श्री देवप्रिय बलिसिंह जो श्री प्रनागारिक धर्म- शासन प्रादि जगजाहिर है। विश्व ईसाई सम्मेलन की पाल जी के प्रधान शिष्य हैं उन्होंने १-१२-६४ को कहा तुलना में विश्व बौद्ध सम्मेलन इतना सुन्दर, आकर्षक था कि-'अनागारिक धर्मपाल बौद्ध धर्म के पनरुद्धारक तथा प्रेरक नहीं था। वेसा प्रत्यक्ष दशियों का अनुभव है। ही नहीं, अपितु सम्राट अशोक के बाद सबसे बड़े बौद्ध फिर भी ईसाइयों के व्यवस्थित प्रचार से प्रेरित होकर श्री धर्म के प्रचारक भी थे।'
धर्मपाल जी के गृहस्थ शिष्य लंका के वर्तमान कालीन इतनी प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त करने के पश्चात्
ब्रिटेन के हाई कमिश्नर श्री मलाल शेखर जी एवं इंग्लैंड अब अपने सातवें विश्व बौद्ध सम्मेलन की प्रेरक कार्य
के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री किस्मल हम्फे आदि बौद्ध महान
भावों ने मिलकर बौद्ध समाज की तत्कालीन सारी परिवाही की ओर आयें।
स्थितियों का विचार किया । और एकमात्र बौद्ध धर्म के सातवां विश्व बौद्ध सम्मेलन, सारनाथ, काशी:
प्रचार की मंगल कामना से स्वयं हीनयान परम्परा के भगवान् महावीर तथा श्री बुद्धदेव दोनों समकालीन उपासक होते हुए भी विश्व में फैले हुए बौद्धों के प्रमुख राजकुमार थे। दोनों महापुरुषों ने अन्तिम ज्ञान की प्राप्ति भेद महायान्, हीनयान् तथा वजयान रूम तीनों प्रधान के लिए सम्पूर्ण राज्यवैभव का त्याग किया, कष्टमय . परम्पराओं का समन्वय करते हुए सन् १९५० में सर्व