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________________ ७२ अनेकान्त मांस मत खामो, मांस मदिरा के सम्पूर्ण त्याग के साथ ही में श्रीमती मेरी एलिजावेथ फोस्टर का निधन भी श्री उन्होंने पश्चिमी वेश भूषा एवं पश्चिमी नाम न रखने की धर्मपाल जी के लिए वज्रपात के समान ही हुआ। घूमने भी जनता से अपील की। श्री धर्मपाल जी को माता फिरने में अशक्त श्री धर्मपाल जी ने धर्मप्रचार के निमित्त पहली सिंहली महिला थी। कि जिन्होंने गाउन छोड़कर श्रीमती फोस्टर से प्राप्त धन एवं हिस्से की सम्पति का साड़ी धारण की। श्री धर्मपाल जी के हृदयंगम भाषणों भी टस्ट किया। कुर्सी पर बैठा करके श्री धर्मपाल जी का प्रभाव लंकावासियों पर खूब पडा और परिणाम को स्टीमर पर पहुँचाया गया। श्री धर्मपाल जी कलकत्ता स्वरूप विदेशी पोशाक एवं इंग्लिश नाम त्यागने की जनता होते हुए सारनाथ पाए । ११ नबम्बर १९३१ के मूलगंध में लहर आ गई। कुटी विहार सारनाथ के उत्सव में श्री धर्मपाल जी को सचल कुर्सी पर बैठाकर लाया गया । प्रायोजन में पंडित सन् १९०६ में पिता श्री जान केरोलिस हेवा वितरण जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे। श्री प्रकाश जी ने के निधन से श्री धर्मपाल जी को काफी प्राघात लगा। धर्मपाल जी का भाषण पढ़कर सुनाया। जीवन का अन्त क्योंकि अपने पिता द्वारा ही श्री धर्मपाल जी को धर्म नजदीक देखते हुए श्री धर्मपाल जी ने श्रामणोर दीक्षा प्रचार की प्रवृत्तियों में पूर्ण सहायता प्राप्त होती थी। ली। और दो साल बाद उपसम्पदा अर्थात् भिक्षु दीक्षा तीन बार के अमेरिका यात्रा पर हुए १८०००) का खर्च भी ली। अप्रैल सन् १९३३ में उनको ठंड लगी और श्री धर्मपाल जी ने महाबोधि सभा में से नहीं लिया था। ज्वर आया। भक्त लोग इकट्ठे हए और दवाई देने लगे। किन्तु श्री धर्मपाल जी के पिता जी ने स्वयं दिया था। किन्तु श्री धर्मपाल जी दवाई लेने से इन्कार करते गए। प्राविधिक शिक्षा के लिए सिहनी युवकों को जापान भेजने उन्होने कहा 'अब इस शरीर पर किसी प्रकार का खर्च का व्यय भार भी श्री धर्मपाल जी के पिता ने ही किया मत करो।' साग खर्च व्यर्थ है। २८ अप्रैल सन् १९३४ था। पिता के निधन की सूचना श्री धर्मपाल जी ने धी में उनका शरीर छूट गया। मती एलिजावेथ फोस्टर को दी। तब श्रीमती फोस्टर ने उत्तर दिया कि-'पाज से मैं आपकी फोस्टर तो है ही पडित जवाहर लाल नेहरू श्री धर्मपाल जी को सन् स.थ ही साथ जान केगेलिस हेवा वितरण अर्थात् पिता १८६६ से जानते थे। श्री मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई भी। श्रीमती फोस्टर ने पिता के प्रभाव से सम्भावित पंडित वंशीधर नेहरू आदि नेहरू परिवार के साथ में श्री आथिक कठिनाई श्री धर्मपाल जी के सामने नही पाने धर्मपाल जी का स्नेह बहुत पुराना था। गाधी जी के साथ में श्री धर्मपाल जी का परिचय सन् १९१७ से था। गांथी जी का धर्मराजिक महा विहार कलकत्ते मे भाषण सन् १९२२ में श्री धर्मपाल जी का स्वास्थ्य काफी गिर गया था । सन् १९२५ में उनके अस्वास्थ्य ने भक्तो हमा था। सारनाथ जाकर गांधी जी ने बुद्धदेव के दर्शन में पर्याप्त चिन्ता बढ़ाई । परिणामत: श्री धर्मपाल जी भी किये थे। श्री प्रकाश जी का सम्बन्ध धर्मपाल जी के को स्वीइजर लैण्ड ले जाया गया। जहाँ उनका साटिका साथ अत्यन्त निकट का था। डा. भगवान दास तथा पंडित श्री मदन मोहन मालवीय जी श्री धर्मपाल जी के का सफल आपरेशन भी हुमा। लंका लौटने के माय ही श्री धर्मपाल जी ने जीवन के कप्टमय चरण में प्रवेश मित्रों के समान थे । राष्ट्र रत्न श्री शिवप्रसाद गुप्त के किया। तीन वर्ष तक पेट विकार के कारण बिस्तर में द्वारा श्री धर्मपाल जी को अनेकों प्रकार की सुविधाएँ ही पड़े रहे। तीन वर्ष के बाद वे कुछ ठीक हुए और मिलती थीं। हृदय के रोग से भी मुक्त हुए। किन्तु उतने में ही उनके श्री धर्मपाल जी बडे भारी विचारक या विद्वान् नही सबसे छोटे भाई डा. चार्ल्स अल्विस हेवावितरण की ट्रेन थे किन्तु धर्म उनके चरित्र में उतर आया था । बाल्यकाल दुर्घटना में मत्यु हो गई। उनके द्वारा श्री धर्मपाल जी को में उनको ईसाई धर्म के अत्याचारों का प्रत्यक्ष दर्शन तथा धर्मप्रचार में काफी सुविधाएं मिलती थीं। सन् १९३० अनुभव हुआ था। युवावस्था में गया के महन्त के द्वारा दी।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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