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________________ ७६ आदि भी उस पूजन में सम्मिलित थे । उन्होंने अपने एक भाग में निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया था कि'बुद्ध देव कहते हैं कि बुद्धि के बल पर चलो । प्राप्त के बचन पर नहीं ।' मलेशिया के प्रधान मन्त्री श्री तुर्क रहमान ने अपने सन्देश में कहा था कि 'प्राज के संसार में भौतिकवाद ने अध्यात्मिकता को चुनौती दे रखी है । सम्मेलन उस चुनौती का उत्तर दे वैसी आशा रखता है ।' मूलगंध कुटीविहार के सामने दिखाए गए सिंहली चलचित्र 'लंका में बौद्ध धर्म' में एक प्राश्चर्यजनक कथा बताने में आई थीं। वह कथा ऐसी थी कुशीनगर में भगवान बुद्ध का जब महापरिनिर्वाण हो रहा था तब उन्होंने इन्द्र को बुलाया और श्रादेश दिया कि हमारे धर्म को लंका में ले जाओ और वहाँ उसकी रक्षा एवं व्यवस्था करो । इन्द्र ने लंका में जाकर विभीषण देव को बुलाया मौर कहा कि वह बौद्ध धर्म की रक्षा करें। लंकावासियों का विश्वास है कि भगवान बुद्धदेव तीन बार लंका में आए हैं और इन्द्र की प्राज्ञा से वहाँ विभीषणदेव बौद्ध धर्म की रक्षा करते हैं । महाबोधि सोसाइटी के प्रधान भिक्षुत्रोंका महाबोधि सोसाइटी को ही दान सचमुच एक महत्व का बिचारणीय प्रसंग है । महाबोधि सोसाइटी के संस्थापक भिक्षु श्री धर्मपाल जी के उल्लेखनीय शिष्य भिक्षु श्री संघरत्न जी रायक स्थविर जो वर्षों से महाबोधि सोसाइटी के सुयोग्य चालक भिक्षु श्री धर्म-रक्षित जी घोर नालंदा के विद्वान अनेकान्त भिक्षु श्री यू धर्मरत्न जी का क्रमशः १००) रुपयों का दान धौर यह सारी भी छपी है। भिक्षुत्रों को कार्यसेवा के बदले में उचित पुरस्कार तथा मासिक भी मिलता है । १०१ ), १०० ), बाल रिपोर्ट में लेखक पहले के अन्त में बम्बई के क्रिश्चियन में जिस तरह चोरों और बदमाशों को पकड़ने में आए थे उस पर हमने जैसी चिन्ता व्यक्त की थी वैसी चिन्ता यहाँ भी व्यक्त करनी ही पड़ेगी। कि अखिल भारतीय श्री महाबोधि सोसाइटी के प्रधान मन्त्री, स्वर्गवासी भिक्षु श्री धर्मपाल जी के शिष्य, ब्रह्मचारी श्री देवप्रिय बलिसिंह जी का ८००) रुपयों का सामान चोरी हो गया । जिसमें विश्व बौद्ध सम्मेलन के कितनी ही फाइले भी थीं। यह चोरी कलकत्ता के हावड़ा स्टेशन पर हुई थी । सारनाथ के सम्मेलन स्थल पर भी कितनी ही चोरियाँ ऐसी हुई कि जिनका विचार करते हुए ऐसा लग रहा है कि जिस बुद्धि या कला का प्रयोग मनुष्य पतन के मार्ग पर करता हैं उसी बुद्धि या कला का शतांश नहीं, सहस्त्रांश भी उपयोग यदि उन्नति के मार्ग में करें तो ? न जाने इतना साधारण-सा शुभकर्म करने से मनुष्य कितना ऊँचा उठ सकता है । परन्तु वैसा बने ही क्यों ? कलिकाल ही तो है। जब अपने दोनों विश्व सम्मेलनों की समालोचना के साथ श्री जैन संघ को प्रेरणा वाले अत्यन्त उपयोगी भ्रंश की ओर भावें । अनेकान्त की पुरानी फाइलें अनेकान्त की कुछ पुरानी फाइलें अवशिष्ट हैं जिनमें इतिहास, पुरातत्व, दर्शन और साहित्य के सम्बन्ध में लोजपूर्ण लेख लिखे गए हैं जो पठनीय तथा संग्रहणीय हैं। फाइलें अनेकान्त के लागत मूल्य पर दी जायेंगी, १२, १३, १४, १५, १६, १७ वर्षों की हैं। थोड़ी ही पोस्टेजलचं अलग होगा। फाइलें वर्ष ८, ६, १०, ११, प्रतियां अवशिष्ट हैं। मंगाने की शीघ्रता करें । मैनेजर 'अनेकान्त' बोरसेवामन्दिर २१ दरियागंज, दिल्ली ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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