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३८वें ईसाई तथा ७वं बौद्ध विश्व-सम्मेलनों की
श्री जैन संघ को प्रेरणा श्री कनकविजय जो मामुरगंज, वाराणसी
बौद्ध सम्मेलन की कार्यवाही का निरीक्षण करने के वार्तालाप करते हुए श्री धर्मपालजी इस निष्कर्ष पर पहुँचे पूर्व न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व में भी बुद्धदेव थे कि "बौद्ध धर्म का निष्कासन भारत के हिन्दुओं से नहीं की महान ज्योति को पुनः प्रज्वलित करने में अनागारिक हुआ था बल्कि भारत में बौद्ध धर्म का नाश मुसलमान श्री धर्मपाल जी ने कितना महत्वपूर्ण पुरुषार्थ किया है ? आक्रमणकारियों के द्वारा हुमा था। सर्वप्रथम उसे देखें:-क्योंकि इसी कारण से विश्व-बौद्ध
अनागारिक धर्मपाल स्वामी श्री विवेकानन्द जी के सम्मेलन के संयोजकों ने २८-११-६४ को सर्वप्रथम श्री मित्र थे। वे श्री विवेकानन्द से केवल एक ही वर्ष छोटे थे धर्मपाल जी की जन्म-शताब्दी मनाने के बाद ही १९-११ जबकि महात्मागांधी जी से श्री धर्मपाल पांच वर्ष बड़े थे। ६४ से ४-१२-६४ तक विश्व बौद्ध-सम्मेलन मनाया था।
शिकागो अमेरिका के विश्व मेले के भीतर विश्व धर्म अनागारिक धर्मपाल
सम्मेलन के लिए श्री धर्मपालजी को स्थविरवादी हीनयान देवमित्र श्री धर्मपाल जी का वास्तविक इंग्लिश नाम बौद्धधर्म का प्रतिनिधित्व करने का सन् १८६३ में पामंत्रण डेविड हेवावितरण था । वे जन्म से क्रिश्चियन थे। उनकी मिला तब कर्नल प्रोलकाट जैसे अत्यन्त स्नेही बुद्धिमान जन्मभूमि सिलोन थी। वे अत्यन्त सम्पन्न परिवार के थे। व्यक्ति की सम्मति न होने पर भी आप विश्व धर्मसम्मेलन आपके पूर्वज भी अत्यन्त बुद्धिमान, सेवाभावी, विद्वान् तथा के लिए अमेरिका गये । उस विश्व धर्म सम्मेलन में श्री धनाढ्य थे। भारत की वर्तमान राजनीति में जो गौरव मती एनीवेसेन्ट तथा श्री चक्रवर्ती (थिजोसोफी),पूर्ण स्थान नेहरू परिवार का है वैसा ही गौरवपूर्ण स्थान प्रतापचन्द्र मजुमदार तथा श्री नागरकर (ब्रह्म समाज), न केवल लंका में अपितु विश्व में बौद्ध धर्म के संबन्धन श्री वीरचन्द्र राघवजी गाधी तथा बैरिस्टर श्री चम्पतराय तथा प्रचार में हेवावितरण परिवार का है। डेविड हेवा- (जैन धर्म), स्वामी श्री विवेकानन्द जी (हिन्दू धर्म) वितरण बाल्यकाल में क्रिश्चियन स्कूल में दाखिल आदि भारत से गये थे। स्वामी श्री विवेकानन्द जी के हए। तब उन्होंने देखा कि ईसाई शिक्षक मदिरा पान भापण में प्रोज था तो श्री धर्मपाल जी का भापण "विश्व तथा पशुपक्षियों का वध भी करते हैं । बाल्यकाल से उनके को श्री बुद्ध की देन' में दर्शन की ऊंची उड़ानों से रहित अन्तःकरण में करुणा. मैत्री, प्रादि अनेकों महत्व के गुण किन्तु सीधी सादी भाषा में बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण परिचय थे। वैसा होने के कारण उनके मन में ईसाइयों से संतोष था। स्वामी श्री विवेकानन्द के विचारों को सुनकर एक नहीं होता था । और परिणामतः अनेक वर्षों तक संघर्ष अमेरिकी सज्जन सभा में ही तत्काल हिन्दू बन गया था। करते करते अन्त में डेविड हेवावितण बौद्ध अनागारिक तब श्री धर्मपालजी के भाषण का वह प्रभाव पड़ा था कि धर्मपाल बन गये । २५ अक्टूबर सन् १८९१ के दिन उसी सभा में न्यूयार्क के व्यापारी तथा दर्शन के विद्यार्थी कलकत्ते में आपने "हिन्दू धर्म के हाथ में बौद्ध धर्म का श्री सी. टी. स्टाल ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। समन्वय" विषय पर सर्व प्रथम भाषण करते हुए कहा था श्री विवेकानन्द की तुलना "शिष्ट किन्तु प्रोजस्वी पोथेलों' कि-"हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में बहुत ही कम अन्तर से करने में प्रायी। जब श्री धर्मपाल जी को "साक्षात् है।" कलकत्ते में श्री शरत चन्द्रदास के साथ विस्तृत ईसा मसीह के समान कहने में पाया था। स्वामी श्री