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________________ क्षपणासार के कर्ता माधवचंद त्रिलोकसार टीका और क्षपणासार की शैली एवं तत्त्व स्वामी की जब वृद्धावस्था थी तब उनके शिष्य माधवचंद्र विवेचन का तुलनात्मक अध्ययन करने पर भी दोनों के युवा थे और इससे माधवचंद्र का अस्तित्व वि० सं० ११२५ एक कर्तृत्व का निश्चय किया जा सकता है इस ओर में माना जा सकता है। इस समय के साथ एक बाधा साहित्यिक विद्वानों को ध्यान देना चाहिए। अगर यह उपस्थित की जावे कि क्षपणासार की प्रशस्ति में क्षपणासार की प्रशस्ति में माधवचन्द्र ने अपना दीक्षा उसकी रचना राजा भोज के मन्त्री बाहबली के निमित्त गुरु सकलचन्द्र को बताया है। इस पर विचार उठता है बताई है और इतिहास में राजा भोज का समय वि० सं० कि उनके विद्यागुरु नेमिचन्द्र के होते हुए उन्होंने सकलचंद्र ११२५ से पहिले का है। इसका समाधान यह हो सकता से दीक्षा क्यों ली ? ऐसा लगता है कि दीक्षा के वक्त हक क्षप है कि क्षपणासार की समाप्ति के समय तक राजा भोज शायद नेमिचंद्र दिवंगत हो गए हों। इसी से उनको नहीं भी रहे हो तब भी बाहुबली भूतपूर्व का प्रपेश मन्त्री सकलचंद्र के पास से दीक्षा लेनी पड़ी हो। साथ ही ऐसा तो उसी का कहला सकता है। भी मालूम पड़ता है कि त्रिलोकसार की टीका की समाप्ति के समय तक वे दीक्षित ही नहीं हए थे। क्योंकि टीका इस लेख में मैंने जो विचार प्रगट किए है वे कहां तक की प्रशस्ति या टीका में यत्र-तत्र ऐसा कोई उल्लेख नहीं ठीक है ? इसका निर्णय मैं इतिहास के खोजी विद्वानों पर पाया जाता है जिससे उनका मुनि होना प्रगट होता हो। छोड़ते हुए उनसे निवेदन करता हूँ कि उन्होने इस सम्बन्ध क्षपणासार में तो शुरू में ही वे अपने को मूनि लिखते हैं। में अब तक जो निर्णय दिया है उस पर वे पुनः विचार इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि नेमिचन्द्र करने की कृपा करे । उपदेशक पद कविवर जगतराम प्रोसर नीको बनि प्रायो रे॥ नर भव उत्तम कुल शुभ सगति, जैन धरम ते पायो रे ॥१॥ दीरघ आयु समझि हू पाई, गुरु निज मंत्र बतायो रे । वानी सुनत सुनत सहजै ही, पुण्य पदारथ भायो रे ॥२॥ कमी नहीं कारण मिलिवे को, अब करि ज्यों सुख पायो रे। विषय-कषाय त्यागि उर सेती, पूजा दान लुभायो रे ॥३॥ 'जगतराम' मति है गति माफिक, पर उपदेश जतायो रे ॥४॥
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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