________________
क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र
श्री पं० मिलापचन्द कटारिया, केकड़ी
किन्तु हमारी समझ इस विपय में कुछ और है । हम "यह ग्रन्थ पहिले नेमिचन्द्र ने राजा भोज से सम्बन्धित दोनों माधवचन्द्र को अभिन्न समझते हैं और दोनों के श्रीपाल मंडलेश्वर के राजसेठ सोम के निमिन २६ गाया समय की संगति इस तरह बैठाते हैं कि क्षपणासार का जो प्रमाण लघु द्रव्यसंग्रह बनाया था। फिर विशेष तत्त्वसमय शक सं० ११२५ दिया है उसे शालिवाहन संवत् न ज्ञान के लिए बड़ा द्रव्यसंग्रह बनाया।" इस कथन से मानकर विक्रम स० ११२५ मानना चाहिए। चूंकि भी सिद्ध होता है कि राजा भोज के समय श्री नेमिचन्द्र माधवचन्द्र ने त्रिलोकसार गाथा ८५० की टीका में शक- हुए हैं । राजा भोज का समय विक्रम की ११वीं सदी का राज का प्रर्य विक्रम किया है। इसलिए उनके मत के चौथा चरण इतिहास से सिद्ध है। जो प्रमाण द्रव्य-संग्रह अनुसार क्षपणासार में दिए गए शक संवत् को भी विक्रम और गोम्मटसार के कर्ता को भिन्न सिद्ध करने के लिए संवत् ही मानना चाहिए। सही भी यही है कि किसी दिए जाते हैं वे भी कुछ विशेष दृढ़ नहीं हैं जैसे किभी ग्रन्थकार के कथन को उसी के मत के अनुसार माना “गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र तो सिद्धान्त चक्रवति थे जावे । इस तरह मानने से दोनों के समय में जो भारी और द्रव्यसंग्रह के खासतौर से कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धांतदेव अन्तर पड़ता है वह हलका-सा रह जाता है। इस हलके थे।" यह हेतु ऐसा कोई भिन्नता का द्योतक नहीं है। अन्तर को तो हम किसी तरह बैठा सकते हैं । इसके लिए क्योंकि त्रिलोकसार की टीका में स्वयं माधवचन्द्र ने ग्रंथ हमें नेमिचन्द्र पोर चामुण्डराय के समय को कुछ भागे की के प्रारम्भ और अन्त में अपने गुरु नेमिचन्द्र का 'सद्धांतदेव' भोर लाना पड़ेगा अर्थात् ये दोनों विक्रम की ११वीं नाम से उल्लेख किया है। और दूसरा हेतु भिन्नता के शताब्दी के चौथे चरण में भी मौजूद थे ऐसा समझना लिए यह दिया जाता है कि "द्रव्य संग्रह में प्राथव के भेदों होगा। वह इस तरह कि बाहुबलि चरित्र में गोम्मटेश्वर में प्रमाद को गिना है जब कि गोम्मटसार में प्रमाद को की प्रतिष्ठा का समय कल्कि सं० ६०० लिखा है। प्रोफे- नहीं लिया है।" यह हेतु भी जोरदार नहीं है। क्योंकि सर पं० हीरालाल जी ने जन-शिलालेख संग्रह भाग १ की इस विषय में शास्त्रकारों की दो विवक्षा रही हैं । तत्त्वार्थ प्रस्तावना में इस कल्कि संवत् को विक्रम सं० १०८६ सिद्ध सूत्र और उनके भाष्यकार प्रादिकों ने आश्रव के भेदों में किया है । यह तो निश्चित ही है कि बाहुबलि मूर्ति की प्रमाद को लिया है, मूलाचार प्रादि में प्रमाद को नहीं स्थापना चामुण्डराय ने की थी। इसके अलावा चामुण्डराय लिया है। ये दोनों ही विवक्षाएँ नेमिचन्द्र के सामने थीं कृत चारित्रसार खुले पत्र पृ० २२ में "उपेत्याक्षाणि और दोनों ही उन्हें मान्य भी थीं इसीलिए उन्होंने जहाँ सर्वाणि..." यह श्लोक उक्तं च रूप से उद्धृत हुया है। वह द्रव्य संग्रह में प्राथव-भेदों में प्रमाद को लिया है वहाँ यह श्लोक अमितगति श्रावकाचार परिच्छेद १२ का लघ द्रव्यसंग्रह की १६वी गाथा में प्रमाद को नहीं भी ११९वां है। इसमें उपवास का लक्षण बताया गया है। लिया है। (देखो अनेकान्त वर्ष १२ किरण ५) अमितगति का समय विक्रम की ११वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध तक है । इत्यादि हेतुओं से चामुण्डराय का समय संभवतः अलावा इसके उन्होंने द्रव्यसंग्रह को समाप्त करते हुए विक्रम की ११वीं शताब्दी के चौथे चरण तक पहुँच जाता जिस ढंग से अपनी लघुता प्रदर्शित की है। वही ढंग है । और नेमिचन्द्र भी श्री बाहुबलि स्वामी की प्रतिष्ठा के उन्होंने त्रिलोकसार की समाप्ति के समय में भी अपनाया वक्त मौजूद होंगे ही। इसके अतिरिक्त नेमिचन्द्र कृत द्रव्य है। दोनों के वाक्यों को देखिएसंग्रह की ब्रह्मदेव कृत टीका के प्रारम्भ में लिखा है कि इदि णेमिचंद मुणिणा अप्पसुदेणाभयणंदिवच्छेण ।