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अनेकान्त
का अंकन है। तीनोंप्रतिमानों के सिंहासन पृथक्-पृथक् हैं अति विशिष्ट स्थान रखती हैं। ये मूर्तियां केवल छह हैं, बडी मूर्ति के नीचे शासन देवी की छवि भी अंकित है। शेष नष्ट हो गई प्रतीत होती हैं। एक हाथ ऊंची इन पर उस पर पोते गये सिंदूर के कारण उसका स्वरूप सभी प्रतिमाओं का आकार, प्रकार, गठन, सज्जा और अस्पष्ट हो गया है। इन प्रतिमाओं की एक विशेषता यह परिकर प्रायः समान है और इनमें चिह्न भी अंकित नहीं है कि इन तीनों में अपने-अपने चिह्नों के अतिरिक्त हिरण किये गये हैं । पर शासन देवियों के कारण इनकी निश्चित का अंकन भी पाया जाता है। मूर्तियों के गले की रेखाएँ पहिचान बहुत आसान है। सभी मूर्तियों में नीचे धर्मचक्र तथा उदर भाग की त्रिबली का उभार साधारण से कुछ और सिंह बने हैं तथा उनके नीचे एक पृथक् कोष्ठक में अधिक लगता है तथा श्रीवत्स का भी अंकन इसी अत्यधिक वाहन और प्रायुध सहित इन शासन देवियों का स्पष्ट उभार के कारण अपनी उत्तर मध्यकालीन कला का सही अंकन हुआ है । यदि यह चौबीसी पूरी उपलब्ध होती तो प्रतिनिधित्व करता है।
निश्चित ही मूर्ति शास्त्र की इस विद्या का एक सबल और
जीवन्त प्रमाण यहाँ उपलब्ध हुमा होता। इन छोटी प्रतिप्रतिमानों के दोनों ओर हाथी पर खड़े हुये चामर
मानों के पार्श्व में तथा ऊपर भी अन्य छोटी तीर्थकर धारी इन्द्रों का अंकन है। ऊपर की ओर पुष्पमाल हाथ
भार पुष्पमाल हाथ मूर्तियां अंकित हैं तथा छत्र के ऊपर गजाभिषेक और फिर में लेकर उड़ते हुए विद्याधर दोनों मूर्तियों में हैं पर बड़ी
शिखर का प्रतीक देकर हर मूर्तियों को एक स्वतन्त्र मन्दिर प्रतिमा में इनका प्रभाव है। छत की पद्मशिला से स्पष्ट का प्रतीक ram M ज्ञात होता है कि वहाँ तक यह मग्दिर अपनी प्रादि स्थिति
इस विशाल मन्दिर की अधिकांश सामग्री नष्ट हो में ही अवस्थित है।
गई है जो आस-पास दबी ही पड़ी हो सकती है। किसी इस मन्दिर की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता इसमें शोधक के कुदाल से उद्धार और प्रकाश पाने तक तो हमें प्राप्त चौबीसी की वे कतिपय प्रतिमाएं हैं जो अपनी इस स्थान विपयक इतनी ही जानकारी पर सन्तोष करना पीठिका में अंकित शासन देवी मूर्तियों के कारण अपना होगा।
आत्म-सम्बोधन
मिथ्यामति-रनमांहि ग्यान-भान उदै नाहि प्रातम प्रनादि पंथी भूलो मोख घर है। नरभौ सराय पाय भटकत वस्यो प्राय काम-क्रोध प्रावि तहां तसकर को थर है। सोवेगो अचेत सोई खोवेगो धरम धन तहां गुरु पाहरू पुकारें दया कर है। गाफिल न हजै भ्रात ऐसी है अंधेरी रात, जाग-जागरे बटोही यहां चोरन को डर है। नर भी सराय सार चारों गति चार द्वार, प्रातमा पथिक तहाँ सोबत अघोरी है। तीनों पन जाय प्राव निकस वितीत भए अजों परमाद-मद-निद्रा नाहि छोरी है। तो भी उपगारी गुरु पाहरू पुकार कर हा! हा! रे निवाल कैसी नोंद जोरी है। उठे क्यों न मोही दूरि देश के बटोही, प्रब जागि पंथ लागि भाई रही रन थोरी है।
-भूधरवास