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________________ ६० अनेकान्त दिगम्बर समाज में सर्वाधिक प्रसिद्ध चौबीसी" पुत्र उदेभानजी, नन्दकिशोर जी, प्राणवल्लभजी। नामक स्तोत्र है। ५. सेठ माणकचन्द-भार्या माणकदेवी जी (सुहाग२७ श्लोकों के इस स्तोत्र पर संस्कृत में अचलकीर्ति की देवजी) तयो पुत्र: सेठ फतेहचन्द भार्या सुपारटीका और कई भाषानुवाद प्रादि समय-समय पर रचे देवी पुत्र प्रानन्दचन्द जी, दयाचन्द जी। गये हैं । प्रस्तुत स्तोत्र की एक विशिष्ट व सचित्र प्रति का ६. अमीचन्द-पुत्र सोमचन्द्र, पुत्र पूर्णचन्द्र, उदोतपरिचय प्रस्तुत लेख में दिया जा रहा है। यह प्रति कलकत्ते के पूर्णचन्द्र जी नाहर के संग्रह में हैं। ७. साह दीपचन्द पुत्र ४-धर्मचन्द, मेहरचन्द, भूपाल चौबीसी की सचित्र प्रति पुस्तकाकार है। अलपचन्द, कीर्तिचन्द्र ।। उसमें चौबीसी तीर्थकरों के चौबीस चित्र उनके जन्मोत्सव एतेषां मध्ये सेठ माणकचन्दजी भार्या श्रीमती ज्ञानमादि के पूरे पृष्ठ के चित्रों के साथ दिगम्बर विनयचन्द्राचार्य और राजा भूपाल प्रादि के चित्र भी उल्लेखनीय वती अनेक गुण मण्डित माणिकदेवी जी तेनेदं भूपालहै। मूल स्तोत्र सुनहरी स्याही में लिखा हया है। प्रत्येक चतुविशति लिखापितां स्वपठनाय किंवा परोपकाराय । बलोक के बाद प्रचलकीति की संस्कृत टीका मोर तदनन्तर सुभ भूयात् लेख (क) पाठकयो। प्रस्तुत प्रति जिस माणकदेवी की लिखवाई हुई है हिन्दी गद्य की भाषा टीका भी दी हुई है। यह प्रति उसके सम्बन्ध में मुनि निहालचन्द ने स० १७८८ में एक बंगाल के सुप्रसिद्ध जगत सेठ के घराने के होने से विशेप रूप से उल्लेखनीय है। प्रति के अन्त में जगत सेठ के राजस्थानी काव्य बनाया है, उसका सक्षिप्त सार फिर कभी दिया जायगा । उससे मालम होगा कि जगत सेठ की पूर्वजों की वंशावली दी गई है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से माता माणकदेवी कितनी धर्मनिष्ठा थीं। महत्वपूर्ण है। सेठ माणकचन्द की धर्मनिष्ठा भार्या माणकदेवी ने अपने पूर्वजों के लिए यह प्रति लिखवाई है। प्रति भूपाल चौबीसी दिगम्बर सम्प्रदाय को रचना हैइस प्रकार है : फिर भी उसे श्वेताम्बर मारणकदेवी ने अपने पढ़ने के लिए ___ "साह श्री हीरानन्द जी तस्य भार्या सुजाणदेवजी टीका और भावार्थ सहित एक विशिष्ट सचित्र प्रति तैयार करवाई, यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भूपाल तयो पुत्र सप्त-१. गुलालचन्द जी, २. गोवर्धन दास जी, ३. मलूकचन्द जी, ४. सदानन्द जी, ५. सेठ माणक चौबीसी की अन्य भी कोई सचित्र प्रति कही प्राप्त हो चन्द जी, ६. अमीचन्द जी, ७. दीपचन्द जी। तो उसकी जानकारी प्रकाश में पानी चाहिए। प्रस्तुत प्रति मम्भव है किसी प्राचीन प्रति के अनुकरण में लिखाई (इन सात पुत्रों का परिवार इस प्रकार है-) व चित्रित की गई है। १. गुलालचन्द भार्या-तत् पुत्री भावति । दिगम्बर ग्रंथ श्वेताम्बरों की अपेक्षा चित्रित कम २. गोवर्धनदास-पुत्र सेवादासजी, पुत्र रामजीवन, मिलते है और जो थोड़े से प्राप्त हैं उनके भी चित्रों के जगजीवन । ब्लाक बहुत ही कम प्रकाशित हुए हैं। इसलिए सारा भाई ३. मलूकचन्द-पुत्र रूपचन्द भार्या देवकुरु पुत्र प्रकाशित जैन चित्र कल्पद्रुम की तरह दिगम्बर सचित्र ज्ञानचन्द। प्रतियों के चुने हुए चित्रों का एक अलबम प्रकाशित ४. सदानन्द-पुत्र लालजीशाह, पुत्र महानन्द, होना चाहिए।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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