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________________ यशस्तिलक कालीन साविक जीवन दुर्दैव से असमय में ही समुद्र में तूफान भा गया मोर पुष्पक कन्या के रूप सौन्दर्य को देखकर मोहित हो गया। उसका जहाज डूब गया। प्रायु शेष होने के कारण वह अनेक तरह के लोभ देकर उसे वश में करने लगा, किन्तु प्रकेला जिन्दा बच गया और एक फलक के सहारे जैसे जब वश में नहीं हुई तो अयोध्या में लाकर एक वेश्या तैसे पार लगा२७॥ को दे दिया ३२। । दूसरी कथा में पाटलिपुत्र के महाराज यशोध्वज के जो जिस तरह भारतीय सार्थ विदेशी व्यापार के लिए लड़के सुवीर ने घोषणा की कि जो कोई ताम्रलिप्ति पत्तन न जाते थे, उसी तरह विदेशी सार्थ भारत में भी व्यापार के सेठ जिनेन्द्र भक्त के सतखण्डा महल के ऊपर बने करने के लिए आते थे। पहले लिखा जा चुका है कि जिन-भवन में से छत्रत्रय के रूप में लगे अद्भुत वड्यं सोमदेव ने एक अत्यन्त समृद्ध पेण्ठा स्थान (बाजार) का मणियों को ला देगा, उसे मनोभिलसित पारितोषक दिया वर्णन किया है जहाँ पर अनेक देशों के व्यापारी व्यापार जायेगा । सूर्य नाम का एक व्यक्ति साधु का वेष बना के लिए प्राते थे३३ । कर जिनदत्त के यहां पहुंचा और एक दिन वहाँ से रत्न विनिमय के साधनचुरा कर भाग निकला२८ । सोमदेव ने विनिमय के दो प्रकार बताए है। वस्तु का इसी कथा के अन्तर्गत जिनभद्र की विदेश यात्रा का मूल्य मुद्रा या सिक्के के रूप में देकर खरीदना या वस्तु भी उल्लेख है। सोमदेव ने इसे वहिन-यात्रा कहा है। का वस्तु से विनिमय । मुद्रा या सिक्कों में सोमदेव ने जिनभद्र वहित्र-यात्रा के लिए जाना चाहता था। घर निष्क, कार्षापण और सुवर्ण का उल्लेख किया है३४ । किसके भरोसे छोड़े, यह समस्या थी। अन्त मे वह उसी ये उस युग के बहु प्रचलित सिक्के थे। इनके विषय में सूर्य नामक छद्म वेषधारी साधु पर विश्वास करके उसके संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार हैजिम्मे सब छोड़कर विदेश यात्रा के लिए चल देता - है२६ निष्क के प्राचीनतम उल्लेख वेदों में मिलते हैं। उस अमृतमति का जीव एक भव में कलिंग देश में भैसा समय निष्क एक प्रकार के सुवर्ण के बने आभूषण को कहा हुा । किसी सार्थवाह ने उसके सुन्दर और मजबूत शरीर जाता था, जो मुख्य रूप से गले में पहना जाता था और को देखकर खरीद लिया और अपने काफले के साथ जिसे स्त्री पुरुष दोनों पहनते थे ३५ । उज्जयिनी ले गया३०। वैदिक युग के बाद निष्क एक नियत सुवर्ण मुद्रा बन सोमदेव ने लिखा है कि यौधेय जनपद को कृषक गयी, ऐमा बाद के साहित्य से ज्ञात होता है। जातक, वधुएँ अपनी नटखट चाल और नाना विलासों के द्वारा महाभारत तथा पाणिनी में निष्क के उल्लेख पाये हैं३६ । परदेशी सार्थी के नेत्रों को क्षण भर के लिए सुख देती मनुस्मृति में निष्क को चार सुवर्ण या तीन सौ बीस हुई खेतों में काम करने चली जाती थीं३१।। रत्ती के बराबर कहा है ३७ । चम्पापुर के प्रियदत्त श्रेष्ठी की रूपसी कन्या विपत्ति --- -- -- - - - की मारी शंखपुर के निकट पर्वत की तलहटी में पहुँची। ३२. पृ० २६३ उत्त० । वहाँ पूष्पक नाम के वणिक-पति का सार्थ पडाव डाले था। ३३. पृ० ३४५ उत्त०। ३४. परं साशयिकायनिष्कादसांगयिक: कापिणः । २७. पृ० ३४५ उत्त०। पृ० ६२ उत्त० २८. पृ० ३०२ उत्त। पत्रव्यवहार : सुवर्णदक्षिणासु । पृ० २०२ २६. वही। ३५. अग्रवाल-पाणिनिकालीन भारतवर्ष । पृ० २५० ३०. पृ० २२५ उत्त०। ३६. वही, पृ० २५१-५२ ३१. पृ० १६ । ३७. मनुस्मृति ११३७
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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