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________________ मशस्तिलक कालीन प्राधिक जीवन ११ में केसर, चन्दन, भगुरु मादि सुगन्धित वस्तुओं का ही लेन- कनाते तानकर अलग-अलग दुकानें बनाई गई थीं। सामान देन होता था१२। की सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी खोड़ियां या स्टोर हाउस जिस बाजार में माली पुष्पहार बेचते थे, उसे सोमदेव थे। पोखरों के किनारे पशुधन की व्यवस्था थी। पानी, ने श्रमजीवियों का पापण कहा है१३ । श्रमजीवी मालाएं अन्न, ईन्धन तथा यातायात के साधन सरलता से उपलब्ध हाथों में लटका-लटका कर ग्राहकों को अपनी पोर हो जाते थे । सारा पेण्ठास्थान चार मील के घेरे में फैला प्राकृष्ट करते थे१४। था। चोरों आदि से सुरक्षा के लिए अहाता और खाई बाजार प्रायः आम रास्तों पर ही होते थे। सोमदेव ने लिखा है कि सायंकाल होते ही राजमार्ग खचाखच भरी थे। सैनिक सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध था। हर गली में माया जाते थे१५। भीड में कुछ तो ऐसे नागरिक होते थे, जो भोजनालय सभाभवन पर्याप्त थे। जमाडी. चोररात्रि के लिए सम्भोगोपकरणों का इन्तजाम करने उत्साह- चपाटों और बदमाशों पर खास निगाह थी कि वे भीतर पूर्वक इधर-उधर घूम रहे होते१६ । कुछ रूप का सौदा नमाने पावें । शल्क भी यथोचित लिया जाता था। नाना करन वाला वारनवलाासानया घमण्डपूवक अपन हाव- देशों के व्यापारी वहाँ व्यापार के लिए पाते थे१६ । भाव प्रदर्शित करती हुई कामुकों के प्रश्नों की उपेक्षा करती टहल रही होतीं१७ । कुछ ऐसी दूतियाँ जिनके हृदय यह पेण्ठास्थान श्रीभूति नामक एक पुरोहित द्वारा अषने पतियों द्वारा सुनाई गयी किसी अन्य स्त्री के प्रेम संचालित था और उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति प्रतीत होता की घटना से दुःखी होते, अपनी सखियों की बातों का है। किन्तु प्राचीन भारत में राज्य द्वारा इस प्रकार के उत्तर दिए बिना ही चहलकदमी कर रही होती१८ । पेण्ठास्थानों का संचालन होता था। स्वयं सोमदेव ने पेण्ठा स्थान नीतिवाक्यामृत में लिखा है कि न्यायपूर्वक रक्षित पिण्ठा ___ व्यापार की बड़ी-बड़ी मंडियां पेण्ठा स्थान कहलाती या पेण्ठास्थान राजाओं के लिए कामधेनु के समान है२० । थी। पेण्ठा स्थानों में व्यापारियों को सब प्रकार की नीतिवाक्यामृत के टीकाकार ने पिण्ठा का अर्थ 'शुल्कसुविधाओं का प्रबन्ध रहता था। यहाँ दूर-दूर तक के स्थान किया है तथा शुक्राचार्य का एक पद्य उद्धृत किया व्यापारी आकर अपना धन्धा करते थे। सोमदेव ने एक है कि व्यापारियों से अधिक शुल्क नहीं लेना चाहिए और पेण्ठोस्थान का सुन्दर वर्णन किया है। उस पेण्ठास्यान में यदि पिण्ठा से किसी व्यापारी का कोई माल चोरी चला १२. परिवर्तमानकाश्मीरमलयजागुरुपरिमलोद्गारसारेषु, । १९. स किल श्रीभूतिविश्वासरसनिघ्नतया परोपकार१३. स्रगाजीविनामापणरंगभागेसु, पृ० १८ उत्त० । निध्नतया च विभक्तानेकापवरकरचनाशालिनीभि१४. करविलम्बितकुसुमसरसौरभसुमनेषु. वही महामाण्डवाहिनीभिर्गोशालोपशल्याभिः कुल्याभिः १५. समाकुलेषु समन्ततौ राजवीथिमण्डलेषु, वही समन्वितम्, प्रतिसुलभजलयवसेन्धनप्रचारम्, भण्डना१६. ससंभ्रममितस्ततः परिसर्पता संभोगोपकरणा रम्भोद्भटभरीरपेटकपक्षरक्षासारम्, गोरुतप्रमाण हितादरेण पौरनिकरण, वही वप्रप्राकारप्रतोलिपरिखासूत्रितत्राणं प्रपासत्रसमास१७. निजविलासदर्शनाहंकारिमनोरथाभिरवधीरित नाथवीथिनिवेशनं पण्यपुटभेदनं विदूरितकितवविटविटमुधाप्रश्नसंकयाभिः पण्यांगनासमितिभिः, विदूपकपीठमर्दावस्यानं पेण्ठास्थानं विनिर्माप्य नानापृ० १९ उत्त० दिग्देशोपसर्पणयुजां वणिजां प्रशान्तशुल्कभाटकभाग१८. प्रात्मपतिसंदिष्टघटनाकुपितहृदयेनावधीरित हारव्यवहारमचीकरत् । पृ० ३४५ उत्त. सखीजनसंभाषणोत्तरदानसमयेनसंचरितसंचा- २०. न्यायेनरक्षिता पण्यपुटमेदिनिपिण्ठा राज्ञां कामधेनुः । रिकानिकायेन, वही नीति० १९२१ वही
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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