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________________ श्री सम्मेद शिखर तीर्थ रक्षा तीन मई सन् १९६५ के ऐतिहासिक जलूस ने, जहाँ समाज में नई जागृति और क्रान्ति उत्पन्न की है। नया जोश, नया उत्साह और नया जीवन दिया है। वहां सरकार पर भी अपना प्रभाव अंकित किया है, किन्तु अभी तो समाज को आगे बहुत कुछ काम करना शेष है। दिगम्बर जैन समाज को अब पूर्णतया संगठित हो जाना चाहिए। और उस एक पक्षीय इकरारनामे को रद्द कराने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। उक्त पैक्ट एक पक्षीय और अत्यन्त साम्प्रदायिक है, उसमें दिगम्बरत्व को कोई स्थान नहीं है, किन्तु उसमें दिगम्बरत्व के प्राचीन अधिकारों को उखाड़ फैकने का पूरा प्रयत्न किया गया है। करार के छठे नम्बर का सारा ही वाक्य विन्यास अत्यन्त आपत्तिजनक है। सम्मेद शिखर को श्वेताम्बरों से भी अधिक पूज्य मानने वाले तथा अर्चना पूजा करने वाले दिगम्बरों का उसमें कोई स्थान नहीं रहा, यह सब जान-बूझ कर किया गया है। फिर भावनगर से प्रकाशित 'श्वेताम्बर जैन' पत्र उल्टी वकालत करता है, जब कि उक्त पैक्ट स्पष्ट शब्दों में उसे श्वेताम्बर सम्प्रदाय का बतला रहा है, और विहार सरकार की स्वी. कारिता वास्तविकता के बिल्कुल प्रतिकूल है। प्रधान मंत्री ने जलूस में जैन जनता को जो आश्वासन दिया है, उससे बहुत सम्भव है कि उक्त पैक्ट रद्द हो जाय। मुझे पूर्ण विश्वास है कि शास्त्री जी अपनी घोषणा के मूल्य को प्रांकते हुए उसे रद्द करने का पूरा प्रयत्न करेंगे। जिससे साम्प्रदायिक तनाव न बढ़े और एकता तथा सौहार्द्र बना रहे। दिगम्बर जैन समाज का कर्तव्य है कि वह अपने अधिकार की रक्षार्थ अपनी अमूल्य सेवाएं प्रस्तुत करने के लिए तय्यार रहे। समाज अपने उत्साह को और भी संगठित तथा सुदृढ़ करने का प्रयत्न करे। और तीर्थ रक्षार्थ अर्थ का प्रबन्ध करे । क्योंकि श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों से तीर्थ क्षेत्रों को लेकर चलने वाले द्वन्द्व कभी समाप्त नहीं होंगे। प्रतः दिगम्बर समाज को भी प्रानन्द कल्याण की पीढ़ी की तरह 'तीर्थ रक्षा फन्ड ट्रस्ट' कायम करना होगा, उसके बिना सुरक्षा सम्भव नहीं हो सकती। आशा है समाज 'तीर्थ रक्षा फण्ड ट्रस्ट' को कायम करने के लिए पूरा प्रयत्न करेगी। 'यही दिगम्बर नारा है सम्मेद शिखर हमारा है' इस नारे के पीछे जो भक्ति का अमित स्रोत अंकित है, वह तीर्थ रक्षा के प्रभाव से सराबोर है। युवक-युवतियों को श्रद्धा के साथ उसकी भावना करनी चाहिए, और अपने कर्तव्य की ओर दृष्टि डालनी चाहिए। सेठ करतूर भाई लाल भाई का वह भ्रामक वक्तव्य अब दिगम्बर समाज को अपने पथ से विचलित नहीं कर सकता, और न उनकी मीठी बातों के भ्रमजाल में अपना सनातन हक ही छोड़ सकता है। सभी क्षेत्रों पर कब्जा करने की बात सभी को विदित है। अतः उस दष्टि को बदल देनी चाहिए। दनिया बदल गई, पर जैन स बदला, उल्टा उसमें विरोध उत्पन्न करने का प्रयत्न किया गया है। धर्म वीरो! जागो और सचेत हो जामो! धर्म पर आने वाली आपदामों को हटा कर धर्म रक्षा करना परम कर्तव्य है । आशा है समाज उक्त करार को रद्द कराने में अपने प्राणों का बलिदान करने से भी नहीं हिचकिचायेगा । और अपने संगठन के संतुलन को बनाये रक्खेगी । -प्रेमचन्द जैन
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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