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________________ अहिंसा का वैज्ञानिक प्रस्थान करने में सफल हुए। उसके रूप को वे ऐसा पखार गए मनमानी व्यवस्था धर्म के नाम पर जनता के सिर बलात् कि वह उस समय की एक जबरदस्त लहर को भेल गया। पोप दी जाती है। दान-दक्षिणा और पुरोहितार्य पर इसी प्रकार वर्तमान युग में पश्चिम में वैसी ही एक और निर्मर ब्राह्मण वर्ग समस्त धर्म-कर्म के लिए 'दलाल' लहर उठी। सनातन हिन्दूधर्म को उस लहर से बचाने के बन गया था। स्वयं निठल्ला बनकर उसने सारे समाज लिए जो काम ब्रह्मसमाज, रामकृष्ण मिशन, प्रार्थनासमाज को भी धर्म-कर्म की दृष्टि से निठल्ला बना दिया था। तथा मार्यसमाज मादि ने किया, वही काम जैनधर्म में धर्म को इम ठेकेदारी पौर दलाली के विरुद्ध भगवान प्रस्फुटित स्थानकवासी धर्म ने किया। इस प्रकार जैनधर्म महावीर ने विद्रोह कर दिया। धार्मिक कर्म काण्ड के को प्रपंच ब प्राडम्बर से और अधिक बचा लिया गया। भोगेश्वर्य का निमित्त बन जाने के कारण उसका रूप उसको विशुद्ध रूप में जीवन व्यवहार का धर्म बनाने नितांत निवृत्त हो गया था। इस हिंसा का समावेश यहां का एक और सफल प्रयत्न किया गया । दुख यह है कि तक हो गया कि नरबलि भी उनमें दी जाने लगी। इस इस उत्क्रान्ति मूलक विकास क्रम को संकीर्ण सांप्रदायिक हिंसा काण्ड का भी भगवान महावीर ने तीव्र प्रतिवाद दृष्टि से देखा गया और उसके महत्व को ठीक-ठीक आंका किया । वर्ण धर्म को जड़ता व मूढ़ता के कारण अन्यगत नहीं गया । यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। कि जैनधर्म जाति-पांत के ऊंच-नीच तथा भेद-भाव का ही रूप मिल उस भीषणकाल में इस उत्क्रान्तिमूलक विकास क्रम के गया था। भगवान महावीर ने इस रूढ़िगत सामाजिक ही कारण अपने अस्तित्व को बनाये रखने में सफल हो व्यवस्था को भी जढमूल से झकझोर दिया । "स्त्री शूद्रो सका। जिसमें श्रमण संस्कृति की बौद्ध धर्म सरीखी ना धीयताम" अर्थात् स्त्री और शूद्र को पढ़ने पढ़ाने का अनेक शाखाएं प्राय नाम शेष हो गई और सनातन वैदिक अधिकार नहीं हैं, इस ब्राह्मण व्वयस्था के विरुद्ध भी संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली अनेक शाखाएं भी लुप्त क्रांति का शंख फूक दिया। प्राध्यात्मिक साधना का होने से बच न सकी। जैनधर्म के विकास के इतिहास मार्ग उनके लिये प्रशस्त बना दिया। इसी कारण सन्त का एक बड़ा ही सुन्दर रोचक और महत्वपूर्ण अध्याय विनोबा ने बुद्ध की अपेक्षा महावीर को कहीं अधिक है, जिसका अध्ययन क्रान्तिकारी दृष्टि से किया जाना महान सामाजिक एवं धार्मिक क्रान्तिकारी कहा है। चाहिए और प्रकाश में विविध धर्मों के उत्थान व पतन उनका मत यह है कि भगवान श्री कृष्ण के बाद स्त्रियों के के मर्म को समझने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। लिये प्राध्यात्मिक पथ को प्रशस्त बनाने वाले भगवान __ महावीर ही थे। यह कहा जाता है कि उनके संघ में भगवान महावीर की विरासत का जो लाभ सामान्य पचास हजार में चौदह हजार भिक्षुणियां थीं । इस प्रकार भारतीय जनता को प्राप्त हुआ, वह भी उल्लेखनीय है। भगवान महावीर ने भारतीय जीवन की प्रमुख श्रमण उनकी लोकोत्तर साधनामयी तपस्या का जैसा लाभ श्रमण तथा ब्राह्मण दोनों ही सांस्कृतिक धारामों को निखारने सस्कृति को प्राप्त हमा, वैसा ही उनके धर्म प्रचार का का सफल क्रान्तिकारी प्रयत्न किया । वह उनकी भारतीय सनातन वैदिक-संस्कृति को पखारने के रूप में सामान्य जीवन के लिए सबसे बड़ी विरासत है। भारतीय जीवन भारतीय जनता को प्राप्त हुमा । धर्म-कर्म पर ब्राह्मणों के प्रवाह को नियंत्रित रखने वाली ये दोनों धाराएं नदी का एकाधिकार था। धर्मशास्त्र सामान्य जनता के लिए के दो किनारों के समान है। उन दोनों को निखारकर अगम्य तथा दुर्बोध वैदिक संस्कृत भाषा में होने के कारण सुधारने और सुदृढ़ बनाने वाले भगवान महावीर को उन पर भी ब्राह्मणों का ही एकाधिकार था। उनकी हमारे शत-शत प्रणाम हैं ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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