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श्री छोटेलाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ
सम्पादक मण्डल
डा.कालीदास नाग, पण्डित चैनसुवदास न्यायतीर्थ
श्रो छोटेलाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ पं० कैलापाचन्द्र शास्त्री, डा. कस्तूरचन्द कासनीवाल,
विषय-सूची श्री टी. एन. गमचन्द्रन, श्री अगरचन्द नाहटा, डा० रात्यरंजन बनर्जी।
१आपको यह जान कर प्रसन्नता होगी कि सुप्रसिद्ध १. जन्म, परिवार, मातापिता, शिक्षा, विवाह एवं ममा नगेवी, इतिहास एव पुरातत्त्ववेता श्री छोटेलाल जी व्यसन । जैन कलकला के ७०वे वर्ष की ममाप्ति पर उनका सार्व- २. धर्मपत्नी का संक्षिप्त परिचय (सचित्र) । जनिक अभिनन्दन करी का निश्चय किया गया है। इस ३. बाबू सा० का व्यक्तित्व एवं कृतित्व । अवगर पर उन्हे एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी भेंट किया ४. समाज सेवा के कुछ अनुभव । जावेगा।
५. सामाजिक संस्थानों के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप अभिनन्दन ग्रन्थ में देश के प्रख्यात लेखकों, विचारकों में उनका जीवन । एवम् विद्वानों के गवेषणापूर्ण लेख होंगे। ग्रन्थ हिन्दी, ६. समाज की सस्थाओं के विकास में योगदान । अग्रेजी एन बगला तीनो भाषाम्रो में प्रकाशित होगा। ७. बाबू मा० द्वारा मस्थापित एव संरक्षित सस्थान । कृपया पाप अपना मौनिक लेख किसी एक भाषा में सूची ८. वीर मेवामन्दिर के विकास में उनका योगदान । के विषय या अन्य विषय पर ३१ मई ६५ तक भेज कर ९. भारत भ्रमण । अनुगहीन करे। अभिनन्दन ग्रन्थ में लेख प्रकाशित होने २. साहित्य एवं पुरातत्त्य सेवा : पर पाको लख की २० प्रतियां अतिरिका भेज दी १. बाबू सा० की कृतियो का मूल्यांकन । जावेगी।
२. हृदय से सच्चे साहित्य सेवी । कृपया आप जिम विषय को चुने उमकी स्वीकृति ३. प्रकाशित एवं अप्रकाशित साहित्य । शीघ्र ही भिजवाने का कष्ट करे।
४. पुरातत्व की खोज मे। (३) ऊँ ह्री श्री क्लीं ब्लू ह्रीं ह्न.. कलिकुडास्वामिने हिन्दी अनुवाद सहित एक प्रति जयपुर के दिगम्बर अमति चक्रे जय विजये अर्थ सिद्धि कुरु ३ स्वाहा। नित्य जैन मन्दिर तेरहपथी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । प्रभात १०८ स्मरण लाभे।
भट्टारक सिंहनन्दी कृत णमोकारकल्प की भी एक प्रति (४) ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय क्षुद्रोपद्रव उसी भण्डार में संग्रहीत है। इसकी रचना मंवत् १६६७ नाशाय नागराजोपशमनाय क्षेत्रपालाधिष्टिताय ऊँ ह्रा ह्री में की गई थी। घण्टाकरणकल्प, घण्टाकर्णमन्त्र, चिन्ताह्य ह्रः सर्वकल्याण दुष्ट हृदयपाषाण जीवरक्षाकारको मणियंत्र, चौमठयोगिनी कल्प, पद्मावतीकल्प, विजययत्रदारिद्रद्राविको प्राभाक भवसि स्वाहा । अनेन मंत्रण विधान प्रादि पचासों रचनाएं है जो जैन भण्डारी में वांछितफलं लभ्यते पाखडभोजन वस्त्र रुप्य सौभाग्य संपद संग्रहीत है जिनके अध्ययन की प्रत्यावश्यकता है। श्री पारिकति ।
उक्त प्रथों के अतिरिक्त इन्द्रनंदियोगीन्द्र कृत ज्वाला- १. संस्कृत विश्वविद्याल वाराणसी की ओर से आयोजित मालिनी कल्प भी इस विषय का अच्छा ग्रंथ है इसको तन्त्र सम्मेलन में पढ़े गये निबन्ध का एक भाग ।