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________________ अनेकान्त बाल चिकित्सा का भी अच्छा वर्णन है। तथा अन्य द्वारा एक ही मन्त्र की सिद्धि करने से विभिन्न संकटों का मायुर्वेदिक ग्रंथों से बालचिकित्सा वाले पद्या का सभी नाश होता है ऐसा वर्णन मिलता है। अन्त में त्रिपुरसंकलन किया गया है। पाठवे अध्याय में विभिन्न ग्रहो के सुन्दरी यत्र दिया है जिसकी सिद्धि का फल निम्न प्रकार निग्रह के विधान एव मन्त्र दिए हुए है। १०वे से लकर दिया हुआ है। १२वे समुद्देश तक विभिन्न जीव जन्तुप्रो के विष दूर इदं त्रिपुरं सुन्दरी यन्त्र यस्य कस्यापि दीयते । करने के मन्त्रो का समावेश है। इसी तरह सोलहव समु- तस्य नाम लिखित्वा कंठे वा सिरसि अक्वा वाही देश तक विभिन्न रोगो का उपचार किया हमा है। __ वा धारयेत् सर्वेषा प्रियो भवति । .. ग्रंथ के शेष अध्यायो में उच्चाटन, विद्वेषण समवन, शान्तिविधान, पुष्टिविधान, वश्यविधान, प्राकपणविधान दुर्भगा शुभगा भवति भर्तरि वशमानयतिराज्यवश्य भवतिषट्वार मंत्र लिखनीयं यंत्रमध्ये । त्रिपुरसुन्दरा यत्र एवं नर्म विधान आदि का विस्तृत वर्णन है। कवि न अन्त में प्रय समाप्ति इस प्रकार की है। देवानामपि दुर्लभं भवति । तावत्स रचि शास्त्ररत्न ममलं स्थेयादिद मन्त्रिणां। मन्त्र इस प्रकार है:गंभीरे मतिसागरे पृथुतरे विद्यासरित्संमतम् ।।१३८॥ एक्ली हौ त्रिपुरमख्य नमः । भैरव पद्मावती कल्प:-यह मल्लिषेण मुरी की मोकार मन्त्र के विभिन्न फल इस प्रकार दिये कृति है । इममें १० अध्याय है और उनमें कवि के शब्दो हुए है। में निम्न विषयों का वर्णन है। ऊँ नमो अरहंताणं धरणु धणु महाधगु स्वाहा एनं मम आदी साधकलक्षणं सुसकल देव्यच्चनामा कृत । स्वललाटे ध्यायेत् चौरस्तंभो भवति । तथैनं यंत्र खटिपश्चात् द्वादश पंचभेदकयन स्तभाऽनाकर्षणम् ।। काया लिखित्वा वामहस्तेन भत्कामुष्टिर्वध्यते वामहस्ते यन्त्रं वश्यकरं नि मेनमपरं वश्यौवधं गारुड । धनुरस्तीति ध्येय चौरा मंत्रिणं न पश्यति स तु चौरान् वक्ष्येऽहं क्रमशो यया निगदिता' कल्पेऽधिकरास्तथा ॥५। पश्यति । देवी पदमावती का जैन तन्त्र मन्त्र माहित्य में विशेष बर्द्धमान विधाकल्प :-यह सिंह तिलक सूरी की स्थान है । वह चार हायों बाली देवी है। इन चारो रचना है यद्यपि श्री सूरी ने कितने ही अध्याय लिखे है हायों में से एक हाथ वरद मुद्रा में उठा रहता है। लेकिन जयपुर के महावीर भवन में संग्रहीत प्रति मे तीन और दूसरे में अकुश रहता है। वायु और एक हाथ में ही अधिकार है। यह प्रति सवत् १४८६ की अणिहल्लदिव्य फल और दूसरे में पाशय रहता है। पद्मावती देवी पाटण प्रदेश में श्रीपत्तन में लिखी गई थी कल्प में विभिन्न के तीन नेत्र होते है और तीसरा नेत्र क्रोध के समय ही प्रकार के मन्त्र दिये हुए हैं और उनके जाप करने की खुलता है। मल्लिपण ने प्रारम्भ में देवी का निम्न प्रकार विधि एवं उनका फल भी दिया हुआ है। कुछ उदाहरण स्तवन किया है। देखिये :पाशफल वग्दगजवशकरण करापमविष्टरापद्या । (१) ॐ ह्रीं बाहुबलि महाबाहुबलि प्रचण्डबाहुबलि मा मा रक्षतु देवी त्रिलोचनारक्तपुष्पाभा ॥३॥ शुभाशुभं कथय कयय स्वाहा । पिंड शुद्धि उपवास कीजइ प्रस्तुत कल में पद्मावती देवी को सिद्ध करने के रात्रिह वार १०८ कीजई स्मरणस्वप्ने शुभाशुभं कथयति लिए विविध मन्त्रों की रचना की है। सही भोगम्मु जंपीई। ॐ ह्रीं ह्रों कनों पद्मकरिनि नमः । (२) ऊँ नमो श्रीपाश्वनाथाय कामरूपिणी कामाक्षीको लाल कमल अथवा लाल केसर के फूलों पर तीन देवी जनरंजनी राजाप्रजा प्रमुइ वशमानय २ स्वाहा । लाख बार जपने से देवी मिद्ध हो जाती हैं। इसमें ॐ ह्रीं अनेक बार १०८ कर्माफलादि अभिमंध्य पश्य दीपते सवप्रादि के विभिन्न मन्त्र दिये हर हैं और विभिन्न प्रगोगों शीभवति ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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