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________________ २५६ अनेकान्त फिर कहता हूँ कि उनकी परख पैनी थी, सूक्ष्मान्वेषिणी। प्रबन्ध-कुशलता में उनका सानी नहीं था। उन्हें छोटी से लेकर बड़ी बात तक का बहुत ध्यान रहता था। बाबू जो स्वयं कर्तव्य-निष्ठ थे और ऐसा ही दूसरों वे अपने ध्यान को तन्मय कर लेते थे, तभी ऐसा कर पाते को चाहते थे। कभी-कभी ऐसा होता है कि बड़े पद पर थे। निजी लाभ के बिना सेवा-कार्य में तन्मय होने की पहुँचते ही व्यक्ति कर्तव्य-पालन में ढोल डाल उठता है। उनकी प्रवत्ति थी, स्वभाव हो गया था। कलकत्ता की उन्हें यह पसन्द न था। एक बार ऐसे ही एक सज्जन ने की न जाने कितनो सभात्रों और संस्थानों का वे प्रबन्ध पत्रों के उत्तर न देने का रवैया डाल लिया। बाबू जी के करते थे। जैन समाज की बड़ी-बडी सभामों के आयोजन पास शिकायतें माने लगीं। उन्होंने मुझसे जिक्र किया। का उत्तरदायित्व उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। समयएक दिन वे साहब स्वय बाबू जी के पास पहुँच गये। समय पर उनके स्वागताध्यक्ष होने की बात तो अनेक बाबू जी ने जिस दबंगता से उन्हें फटकारा, देखने का लोग जानते है । सभापति के पद से सभाओं का संचालन दृश्य था। उस दुर्बल शरीर में तेजस्विता भरी पड़ी थी। भी वे खब निभा पाते थे । कलकत्ता से पूर्वी उत्तरप्रदेश यह उसी को मिलती है, जिसकी प्रात्मा निर्मल होती है। तक और दिल्ली उनका मुख्य कार्यक्षेत्र था। इस प्रकार उनकी मान्यता थी कि मेरे जीवनकाल में मेरे देखते-देखते उनकी समाज-सेवा सर्वविदित थी। उन जैसा निरीह, लोग अधिकाधिक कर्तव्य-शिथिल होते जा रहे है। इसका उन जैसा विद्वान्, उन जैसा समाज-सेवी और उन जैसा कारण खोज-खोज कर वे सचिन्त हो उठते थे। मददगार पैदा होने में समय लगेगा। जैन समाजके नेता पुरातत्व विशेषज्ञ बाबू छोटेलाल जी के निधन पर वीर-सेवामंदिर में शोक सभा जैन धर्म और जैन संस्कृति के अनन्य प्रेमी पौर प्रमुख समाज सुधारक बाबू छोटेलाल जी जैन कलकत्ता का २६ जनवरी को शतःकाल साढ़े छह बजे देहावसान हो गया है। प्राप साहित्यिक इतिहास तथा पुरातत्व के विशेषज्ञ थे। वीरसेवामन्दिर का विशाल भवन उनकी सेवाओं का सजीव स्मारक रहेगा। रविवार ३० जनवरी को शाम को साढ़े सात बजे देहली (वीर सेवा मन्दिरों के हाल) मैं बाबू छोटेलाल जी के निधन पर जैन समाज के गण्य मान्य व्यक्तियों की शोक सभा हुई। जिसमें बाब जी की सेवामों, जैन धर्म और जैन साहित्योहार की भावना एवं वीर सेवा की लोकोपयोगी प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालते श्रद्धाजलि अर्पित की गई और निम्नलिखित प्रस्ताव पास कर उनके परिवार के प्रति भेजा गया। शोक प्रस्ताव वीर-सेवा-मन्दिर को यह आम सभा जैन-धर्म और जैन समाज के अनन्य संत्री तथा पुरातत्व के विद्वान् बाबू छोटेलालजी जैन के निधन पर गहरा शोक प्रगट करती है बाबु छोटेलाल जी उन इने-गिने व्यक्तियों मे से थे। जिन्होंने अपने जीवन के बहुत से वर्ष सेवा में व्यतीत किये थे । वीर सेवा मन्दिर को वर्तमान रूप देने का श्रेय मुख्यतः उन्ही को है। इस संस्थान के द्वारा उन्होने अनेक लोकोपयोगी प्रवृत्तियों का संचालन किया। बाबू छोटेलाल जी के निधन से जैन समाज की विशेषकर वीरसेवामन्दिर की जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति कदापि नहीं हो सकती। यह सभा दिवंगत प्रात्मा के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है और प्रभु से प्रार्थना करती है कि उनकी प्रात्मा शांत उच्च पद प्राप्त करे। उनके परिवार के साथ यह सभा सहानुभूति प्रकट करती है। प्रेमचन्द मन्त्री, वीर सेवा मन्दिर
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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