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८. वृषभनाथ-स-पाषाण ऊंची १८"-श्री संवत संघे बलात्कारगणे भ० हेमकीर्ति उपदेशात् शीतल संघईन १९३८ वष नाम संवत्सरे मार्ग शीर्ष मास शुक्ल पक्ष रमा नर पंडित। ) यह दोनों मूर्ति पूजन तृतीयायां तिथी गुरुवासरे श्री मूलसंघे पुष्कर गच्छे सेनगणे
१६. चांदी की चंद्रप्रभ समयी नीचे जाती हैं। वृषभसेन गणधरान्वये भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन देवास्तत्पढें
ऊंची १"-लेख नहीं। "
बाकी तिजोरी में रहती है। भ. श्री वीरसेन गुरूपदेशात् घाकड ज्ञातीय रिति
१७. पद्मावती देवी पीतल की ऊंची "-संवत प्रतिष्ठितम् ॥
१७३६..... पदवंदिते श्री मूलसंघ ब. गणे भ० देवेन्द्र१. अजितनाथ-स. पा.-लेख वरील प्रमाणे ।
कीर्ति तत्प? भ. श्रीभूषण गुरूपदेशात् इयं प्रतिष्ठिता १०. पाश्र्वनाथ स० पा० मूर्ति २ ,
चिमणाजी जैन श्रीपुर मध्ये संप्रणमेत [नित्यं प्रणमति]॥ ११. पार्श्वनाथ का० पा०- ,
१८. जलवट पीतल का-श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ १२. नेमिनाथ-लाल पा. ऊंची २"-संवत १९१५ चैत्याले सीरपुर ६९ पदासाः भोसा चवरे सके १७८० श्री मूलसंधे सरस्वती गच्छे। (यह मूर्ति काष्ठ के समान मिती जे० सु०२। हलकी है।)
१९. घण्टा-पीतल का-कोठारी यंकोबा वलद १३. पार्श्वनाथ की ४, पद्मप्रभ, अरहनाथ, पपप्रभ कासीबा बोगार नीरमलकर सन १८९७ फसली मिती यह मूर्तियां सं० १५४८ की जीवराज पापडीवाल द्वारा फाल्गुन वद ७ । यह घण्टा द्वार के पास प्रांगन में है। प्रतिष्ठित हैं।
२०. नीचे के भोयरे में स्थित घण्टा-||श्री अंतरिक्ष १४. चौवीसी पीतल की ऊंची १०"-संवत १५२८ महाराज हारबाजी ढमाल ॥ सईतवाल कनेरगावकर संवत वर्ष माघ वदी ५ सोम० श्रीमूलसंघे श्री विद्यानन्द स्वामी १९३८ मिती माघ शुढे मामना (य) बालातक(का)र ॥ तत्प? श्रीमदमरकीति तथा सिंहकीर्ति...कालेजी इसके सिवाय नीचे के गर्भागार में बलात्कारगण,
-रतनत्रय व्रत।। वुलसानी अनन्तव्रत निमित्यर्थ कारा. ऊपर में सेनगण तथा बाहर चौक के पास दिगम्बर शास्त्र पितं ॥
भंडार और बलात्कारगण के भट्टारकों की गादी है। १५. चौबीसी पीतल की छोटी-ऊंची ४"-ऊपर उसके ऊपर उन-उन पीठों के भट्टारकों के फोटो हैं। कानडी लेख है। नीचे शके १६२६ माघ सुदी ३ श्री मूल
(क्रमशः)
आत्म-बोधक-पद
कविवर दौलतराम हमतो कबहूँ न हित उपजाये। सुकल-सुवेव-सुगुरु-सुसंगहित, कारन पाय गमाये ॥टेक॥ ज्यों शिशु नाचत माप न माचत, लखनहार बोराये। त्यों श्रुत बांचत मापन रावत, पौरन को समझाये ॥१॥ सुजस लाह की चाह न तज निज, प्रभुता ललि हरषाये। विषय तजेनरचे निजपद में, पर पद प्रपद लुभाये ॥२॥ पाप त्याग जिन-जाप न कोन्हों, सुमन-चाप तपताये । चेतन तन को कहत भिन्न पर, देह सनेही पाये ॥३॥ यह चिर भूल भई हमरी प्रब, कहा होत पछताये । बोल प्रजों भवभोग रचौ मत, यों गुरु बचन सुनाये ॥३॥