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अनेकान्त
जैन मुनि की प्रतिमा कायोत्सर्ग उत्कीर्णित है, जिसके एक १८१३ प्रीतीकार जी। हाथ में कमंडलु तथा दूसरे हाथ में मोर पिच्छिका है। ५. पार्श्वनाथ-स० पाषाण, ६ फणा, ऊंची १३"गर्भागार में एक अपूर्व मान स्तंभ गढ़ा दिया है उस पर सं० १५४८ जीवराज पापडीवाल प्रतिष्ठितं । लिखा है-'ग्वाल गोत्री श्री रामसेनु (पदेशात्)।
इसी संवत् की महावीर स्वामी, शांतिनाथ पार्श्वनाथ, इस मन्दिर के बारे में पुरातत्त्व विभाग, अन्य पुरा- नेमिनाथ, मुनि सुव्रत जी, अरहनाथ, आदिनाथ तथा ३ और तत्त्वज्ञ तथा यादव माधव काले व य० खु० देशपांडे आदि पाव-नाथ की प्रतिमा, सभी सफेद पाषाण की हैं। इतिहासकार लिखते हैं कि यह मन्दिर दिगम्बर जैन संप्रदाय का ही है । लेकिन हमारे श्वेताम्बर भाई उसको
६. एक पादुका-के समोवार-शके १८०८ व्यय
नाम संवत्सरे सवत १९४२ तथा १९४३-मूल संघ ग्वेताम्बर संप्रदाय का होना और श्वेताम्बर राजा के
बालात्कार (गण) अंतरीक्ष स्वामी (इसके नीचे)-यती द्वारा निर्माण करना बताते हैं। तथा पूरी मालकी का दावा करते हैं।
श्री नेमसागर स्वामी। __ लेकिन हाल ही में कोर्ट से जो फैसला हुपा-उसमें
७. जोड पादुका-चंद्रनाथ स्वामी + पार्श्वनाथ
स्वामी संवत १९४८ गच्छ सरस्वती बलात्कार मिती बताया है कि 'यह मन्दिर दिगम्बर जैन संप्रदाय का है'
___ कारती सुदी १४। वहां पौली मन्दिर के सामने ४ दिगम्बर संत की समाधि
८. पार्श्वनाथ-सहस्रफणायुक्त-सफेद पाषाण ऊंची है । क्रम से उत्तर से दक्षिण (१) भ० श्री १०७ शांति
__ अं० ११" -संवत १ ३० श्री (पिंग) ल नाम संवत्सरे सेन महाराज । (२) पं० गोबिंदबापुजी। (३) भ० श्री.
शके १७६५ श्री मिती कारतिक शुद्ध १३ बालासा १०७ जिनसेन (कुबडे स्वामी)। (४) जितभवजी पंडित ,
कासार प्रतिमा कारापिती।। जी तथा और एक है।
६. नेमिनाथ-स० पाषाण ऊंची १०" - संवत श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के (प्रमुख) मन्दिर में दो
१९६४ माघ व ॥ ८ मंगल वासरे श्री वीरसेन स्वामीनां गर्भागार है । एक ऊपर का, कि जिसमें सम्पूर्ण मूर्ति तथा
(स्थाप) पिता। गुरुपीठ दिगम्बर आम्नाय की ही है। दूसरा उसके नीचे
१०. --(?)-काला पिंगट पाषाण ऊँची पं. भोयरे में, जहाँ श्री अंतरिक्ष भगवान विराजमान हैं, और
१०"-मध्य भाग में एक अर्ध पद्मासनी प्रतिमा है। अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के नजदीक चार श्वेताम्बर पीतल की छोटी प्रतिमा तथा ३ चांदी के+१ पीतल के यंत्र है।
उसके नीचे सिंह लांछण है । तथा इस मूर्ति के प्राजू-बाजू
और ऊपर छोटी १३ मूर्ति है। वह सभी भी अर्ध पद्माबाकी पूरी वेदी दोनों बाजू दिगम्बर मूर्तियों से भरी है।
सनी हैं । मूर्तियां आकर्षक हैं। इसके जाडी के भाग पर ० पार्श्वनाथ गर्भगृह के वि० जैन मूर्तियों के लेख- एक प्रति प्राचीन लिपी में (अंदाजा ईस्वी की पहली सदी)
१. नंदीश्वर-पीतल की छोटी, ऊंची ३"-सरस्वती का एक लेख खुदा है इसके संबंध में अन्वेषण होना चाहिए। (गच्छे) बलात्कारगणे स० भ० नागषेण पीठ मन्त्र उप- इतनी प्राचीन मूर्ति मैने पूरे विदर्भ में नहीं पायी है। प्रतः देशात जिनेद्रसागर प्रणमति ।
प्राचीनत्व की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्त्व है। इस २. नंदीश्वर-काला पाषाण, ऊंची २"-लेख नहीं। मूर्ति को अनंत की मूर्ति कहते हैं।
, , ३"-लेख नहीं, ११. आदिनाथ-स. पाषाण-शके १५६१ मगर मूर्तियों के नीचे चंद्र, बैल, शंख प्रादि चिह्न हैं। प्रमाथी नाम संवत्सरे फाल्गुन सुद द्वितीया गुरुवारे श्री
४. आदिनाथ-काला पाषाण, ऊची ७"--स्वस्ति मूलसंघे वपभसेनान्वये पुष्कर गच्छे सेनगण भट्टारक श्री श्री श्रीपुर सुभस्थाने श्री ब्रह्मभव कार्तिक शुद्ध १४ रोज गुणभद्र तत्प? भ. श्री सोमसेन उपदेशात् श्रीपुर ग्रामे मंगलवार नक्षत्रे भरणी रोहिनी॥
श्री अंतरिक्ष चैत्यालये.....शेठी भार्या कमलाई 'सेठी... तीर्थकर मूलसंघ बलात्कारगण संवत १९४८ शके ब्राह्म सेठी भार्या जीनाई तत्पुत्र सांतुसेठी, तत्पुत्र कमल