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________________ श्रीपुरपार्श्वनाथ मन्दिर के मूर्ति-यंत्र-लेख-संग्रह पं० नेमचन्द पन्नूसा जन देउलगांव ई.-स. १९६१ के पर्युषण पर्व के निमित्त मैं श्री वाल खटबड गोत्र संघवी पीलासाह॥ अंतरिक्ष पार्श्वनाथ शिरपूर में गया था। वहां मैं प्राचीन (५) दगडी पाषाण की पंचपरमेष्ठी-ऊंची १'धर्मशाला में ठहरता था और खाना श्री प्रानंदराव लेख नहीं, मगर शिल्प है-बीच में पद्मासनी वृषभ, कान मनाटकर मुकर्जी के यहां खाता था। उस धर्मशाला में से कांधे तक सुन्दर केशकलाप, भास्कंध कर्ण लीन छत्रयुक्त प्राज सुव्यवस्था के नाम पर श्वेताम्बरों ने लकड़ी भादि सुन्दर भामण्डल, इनके दोनों बाजू दो पपासनी मूर्ति तथा भर कर ताला लगा दिया है। न मालूम हमारा यह इनके नीचे दो कायोत्सर्ग स्थित सप्तफणी मूर्ति है। पापसी द्वेष हमें कहां तक ले जायगा। प्रस्तु । भासन के मध्य भाग में नंदी बताया है। तथा बाम वा वैसा तो उसके पहले कई बार इस क्षेत्र के दर्शन मैंने चमर व दण्डधारी २ यक्ष खड़े हैं और दाहिने बाजू पाम्र किये थे, मगर खास मुक्काम नहीं होता था। इस (वक्त) वृक्ष के नीचे सिंह पर सवार होकर दाहिना पग नीचे काफी समय होने से मैंने वहां के मूर्ति तथा यंत्र लेख डाली हुई चक्रेश्वरी देवी है। उसके दाएं मांडी पर एक लिये थे, जो प्राज यथाक्रम पाठकों के सामने प्रगट कर मूल बैठा है तथा पास में एक मूल खड़ा है। इस मूर्तिरहा हूँ । इस कार्य में श्री पानंदराव जी का तथा पौली का काल अनिश्चित है। इसी तरह एक प्रति प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर के पुजारी श्री मूर्तीधर जी और भग्न मूर्ति पं०१३' ऊँची वहां के कुएं से निकली है। जो अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर के दिगम्बर पुजारी लीलाधर हजार बारा सौ साल पुरानी है। जी इन्होंने सहायता दी, उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। इसके सिवाय १०-११ मूर्ति संवत १५४८ की जीव. श्रीपुर पाश्चमाप पौली मन्दिर में स्थित मतिलेख- राज पापडीवाल द्वारा प्रतिष्ठित हैं । और ३, ४ मूर्ति पर (१) मूल नायक श्री पार्श्वनाथ-सफेद पाषाण, ऊँची लेख नहीं है। इस पौली मन्दिर के द्वार के ऊपर एक अंदाजन १'-संवत १५४० शके १४०५ सुभान सं शिला पर लेख अंकित है-"श्री दिगम्बर जैन मन्दिर (वत्सरे) मिती माघ सुद ७ चांदुरमध्ये कुंद (कुंद) मा श्री मन्नेमिचंद्राचार्य प्रतिष्ठितं" तथा इसी द्वार के छावनी (म्नाये) मू० (लसंधे) स० (गच्छे) ब. (गणे) भ० के पत्थर पर ३ पंक्ति का लेख प्रस्पष्ट हुआ है। जिसमें रत्नकीर्ति स्वामी जी हस्तेन पासो बाजी काले जात बद से पहली पंक्ति का में..."वसुंधरो मल्लपमः' तथा दूसरी में नोरे प्रतिष्ठा कारापितं । 'अंतरिक्ष श्री पार्श्वनाथ' का उल्लेख है। (२) पार्श्वनाथ-काला पा०, ऊंची १०"-शके १५४५ इस लेख के बारे में ई. सन् १९०७ तथा १९११ के खरोहारी नाम संवत्सरे जेष्ठ मासे-शुक्ल पक्षे-तत्पश्री गजेटीयर में खुलासा पाया है कि यह मन्दिर दिगम्बर सोमसेन-भ० गुण (भद्र)...(सोम) सेन उपदेशात धाकड पाम्नायका है तथा यहां जगसिंह (जयसिंह) चालुक्य ज्ञातीय''देशभूषण"तत्पुत्री भवनासा मानिकमा। राजा का उल्लेख है। और यह भी स्पष्ट किया है भाज (३) पीतली पद्मावती देवी-ऊंची ४"-शके जहाँ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है उसी ॥१७५६॥ मा० सु८ श्री० स० ब० ॥ कुंदकंदाचार्याम्नाये भोयरे में वह मूर्ति संवत् ५५५ में स्थापित की गई थी। देवेद्रकीरती उपदेशात् ॥ इस पौली मन्दिर पर तीनों बाजू तीन द्वार पर दो(४) फणारहित, दोनों भुजामों पर नागचिन्ह, काला दो नग्न मूर्ति खड़ी हैं तथा पपासनी ६-७ मूर्ति खुदी हुई पा०, ऊंची ७" ॥ शके १५३७ फागुन सुध १३-बघेर- है। अन्दर के एक स्तम्भ पर एक परम वीतरागी दिगंबर
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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