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________________ ना. अंकोलो मोर वासी-मदन-कल्प कोषकार यहां 'वासि' और 'बासी' दोनों शब्दो को नार।"५ स्त्रीलिंग वाची मानते हैं और दोनों का अर्थ 'वसूला-बढ़ई यहाँ पर वासी का अर्थ 'वसूला' दिया हमा है तई का एक प्रस्त्र' करते है। सी' शब्द का प्रयोग वसूले समग्र 'वासीचन्दनकल्प' का अर्थ इस प्रकार किया है-- के अर्थ में 'धर्मसंग्रहणी'१ में कस प्रकार हुमा है, यह भी "कोई वसले से काटे और कोई चन्दन से खेप करे, तो कोषकार ने उढ़त करके बताया है। इसके अतिरिक्त भी दोनों के प्रति ममभाव रखने वाला है।" 'वामी' शब्द का प्रयोग जिन प्राकृत प्रन्थो में प्रस्तुत प्रथ७. पाप्टे का संस्कृत-अंग्रेजी कोष:-सुप्रसिद्ध माषुमे हुमा है, उसका भी उन्होंने प्रमाण दिया है-जैसे प्रश्न निक कोषकार प्रिंसिपल वामन शिवगम प्राप्टे ने अपने 'व्याकरण सूत्र', 'पउमचरित्र', 'कल्पमूत्र', 'सुरसुन्दर्ग- संसात-अंग्रेजी कोष में वासी शब्द की स्पष्ट व्याख्या दी परिम' और 'उबवाईसूत्र'। ५० हरगोविन्ददास सेठ ने है। तदनुमार-"वासि mB-An Adze, a small, a 'वामी मह' (स० बासी मुख) शब्द का उल्लंब भी किया hatchet. a chisel [वस् इज Un. 4-136] 1"6 है और बताया है कि 'उत्तराध्ययन'४ सूत्र में इसका प्रयोग इस कोष मे 'महाभारत' में प्रयुक्त वासि शब्द का 'दो इन्द्रिय वाले प्राणी विशेष' के लिए हुपा है, जिमका सश्लोक उद्धरण भी दिया गया है । मुख 'वसूले' की तरह होता है। प्राक्सफोर्ड से प्रकाशित इस कोष में 'वासि' (वामि) ६. 'जैनागमशब्दसग्रह'-एक अन्य महत्वपूर्ण प्राकृत म का अर्थ इस प्रकार दिया गया है, "वासि-Vasi or गुजराती-शब्दकोष मे, जिसके कर्ता प्रसिद्ध जैन मुनि शता Vasi, a carpenter's adze, L. (cf. Vasil" 15 बधानी रतनचन्द्र जी है, 'वासी' और 'वासीचन्दनकल्प' कोषकार के अनुसार 'वामि' और 'वासी' स्त्रीलिंग की व्याख्या निम्न प्रकार से उपलब्ध होती है-"वासी' ५. जैनागमशब्द संग्रह, प्र. सषयी गुलाबचन्द जसराज, (स्त्री) (वापी) बांसली, फरसी। 'वासीचन्दणकल्प लिम्बडी (काठियावाड़) १९२६, पृ० ६८६ । (त्रि.) (वामीचन्दनकल्पः) कोई बासलाथी छेदे अने 6. The Practical Sanskrit-English Dictionary कोई चन्दनथी लपकर, तो पण बन्ने तरफ समभाव गव- -by Prin. V.S. Apte. Ed. by P.K. Gode and C.G. Karve, Prasad Prakashan. १. धर्म संग्रहणी हरिभद्र मरि द्वारा रचित प्राकृत प्रन्थ Poona 1957. पं० देवचन्द लालभाई पुस्तकोदार फण्ड, बम्बई, १६. ७. जीवितं मरण व नाभिनन्दन्न व द्विषन् । १९१६, गाथा ४८६। वास्यक तक्षतो बाहुं चन्दनेनं कमुलतः ॥ २. यह उल्लेखनीय है कि विमलसूरि द्वारा रचित व --महाभारत १२-६-२५, १-११६-१५ रा. जेकोबी द्वारा सम्पादित, जैन धर्म प्रसारक सभा, 8. A Sanskrit English Dictionary (Etymoloभावनगर द्वारा १६१४ मैं प्रकाशित हुमा है । देखें, gically and Philologically arranged with •र्ग १४, ७८ । special reference to cognate Indo३. मु.सुन्दरीचरित्र, जिमका दूसरा नाम कथा मुरसुन्दगे European languages, By Sir Monier भी है, धनेश्वर मुनि (वि० स० १९०५) द्वारा Monier-Williams, New Edition, greatly लिखित प्रेम कथा है। मुनि श्री गजविजयजी द्वारा enlarged and improved with the collaboसम्पादित, प्र. जैन विविध माहित्य शास्त्र-माला, ration of Prof. E. Leumann, Ph. D. and बनारम, १९१६, परिच्छेद १, श्लोक २८ । Prof. C. Cappellar Ph. D. and other ४ किणो सोमगला चेब, अलसा मायबाहया । Scholars (oxford first edition 1899) Pub. वामीमहाय सिप्पीय, सखा सखणगा तहा ॥ in India by Motilal Banarsidass, 1963, उत्तराध्ययन, सूत्र ३६४१२६ । P.948.
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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