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________________ अनेकान्त कीट)१ किया है। यह पाश्चर्य की बात है कि स्वयं डा. कारों ने वासी शब्द की व्युत्पत्ति और प्र को बहुत स्पष्ट जैकोबी ने 'बासी' का अर्थ वसुला किया है। प्रवरि के रूप से समझाया है। पाधार पर 'वासीमुख' की व्याख्या करते हुए लिखते (1) 'मभिधान-चिन्तामणि नाममाला'-के कर्ता महान् जैन विद्वान् भाचार्य हेमचन्द्र इस विषय में बहुत, "Vasimukha explained : Whose mouth ही विशद व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। उनके प्रभिमतानुसार is like a chisel or a dye. There are many वासी'के पर्यायवाची नाम इस प्रकार हैं-वृक्षभित्, insects, c.g. The curculionidal2 which suit this stuft, arate ." description."3 हेमचन्द्राचार्य ने 'नाममाला' की स्वोपश टीका में "जिसका मह परसू या वसूले की तरह हो। इस ती यत्पत्ति इस प्रकार बताई है-"वक्षान भिर्ना वर्णन के अनुरूप अनेक कीट होते हैं, उदाहरणार्थ-फन बक्षभित ॥१॥ तक्ष्यतेऽनया-तक्षणी ॥२॥ वासी हस्त मादि में लगने वाला कीड़ा।" वासिः कृशकुटि (उणा-६१९) इति णिदिः या यहाँ स्पष्ट रूप से 'वासी' का अनुवाद 'Chisel' या बासी ॥२॥ 'adze' किया गया है। यह अनुवाद डा. जेकोबी ने प्रव इस प्रकार 'वृक्षभित्', 'तक्षणि' और 'वासी'; तीनो चुरी के आधार पर किया है । यह सन्देह अवश्य उत्पन्न शब्द काष्ठछेदन में प्रयुक्त शस्त्र या उपकरण विशेष के होता है कि डा. जेकोबी और प्रवचूरिकार 'वासी' के इस घोतक है। जो वृक्षों को भेदता है, वह वृक्षभित्, जिससे अर्थ से परिचित होते हुए भी 'वासीचन्दनकल्प' की वक्ष की त्वचा का उत्खनन होता है, वह क्षणी; जो व्याख्या में इसका पाधार क्यो नहीं लेते हैं। सम्भवतः हाथ में रहती है, वह वासी है। इस प्रकार व्युत्पत्ति के इसका कारण यह हो सकता है कि 'चन्दन' के साथ 'वासी' का प्रयोग होने से प्रस्तुत अर्थ की कल्पना सहज कर यह सिद्ध करते हैं कि 'वासि' और 'बासी' दोनों ही रूप से न हुइ हो । कुछ भी हो, यह तो निश्चित हो ही रूप बनते है। इस व्युत्पत्त्यात्मक व्याख्या से भी यह जाता है कि वासी 'बढ़ई के उपकरण वसूले' का ही नाम है। निश्चित हो जाता है। कि वासी काष्ठ-छेदन का ही शम्बकोष और विवकोष शस्त्र विशेष है। 'नाममाला' के भाषाटीकाकार इसका __वासीचन्दनकरूप की मूक्ति ने जिस प्रकार व्याख्या पर्यायवाची नाम "बांसलो इति भापायाम्"८ दिया है। कारों को उलझन में डाला है, कोषकार भी उससे बच २. अनेकार्य संग्रह-हेमचन्द्राचार्य ने अपने एक अन्य नहीं पाये । पाश्चात्य कोषकार प्रार्थर ऐंथनी मैकडानेल शब्दकोप में भी 'वासी का उल्लेख किया है। मभिधान की 'वासी' शरद के विषय में संदिग्धता स्पष्ट है। भार- चिन्तामणि की पूर्ति में रचित अनेकार्य संग्रह मे उन्होंने तीय कोषकारों में 'अमरकोष' के कर्ता अमरसिंह 'वासी' 'मत्सवा का एक पर्यायवाची शब्द 'वासी' दिया है। का कोई उल्लेख ही नहीं करते है५। किन्तु अन्य कोष- मत्सा पाब्द के अनेक अर्थ बताते हुए लिखते हैं१. उदाहरणार्थ देखें, लक्ष्मीवल्लभीय टीका, १० १२४ ६. अभिधान चिन्तामणि, मयंकाण्ड, श्लोक ५८१ 2. A fruit Weevil. :तंबर : 3. S. B.E.. VOL. XLV., p. 219 footnot 4. ७. मभिधान चिन्तामणि स्वोपशटीका सहित संपा. ४. वही, पृ० २१६, टिप्पणी संख्या १ हरगोविन्ददाम और बेचरदास, प्र. नाथालाल लक्ष्मी५. अमरकोप का रचनाकाल ईस्वी ५०० के लगभग चन्द वकील, भावनगर, १९१४, ५० ३६७ माना जाता है । देखें, : अभिधान चिन्तामणि (हेम) कोश, रत्नप्रभा व्याA History of Sanskrit Literature by रूपाविभूषित, प्रमुक्तिकमल जैन मोहनमाला, बड़ौदा, Arthur Anthony Mecdunell, p. 433. १९२५, पृ० २०७
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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