SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म. कोबीचौरबासी-बन्दन-पाल्प कारिक अर्थ में प्रयुक्त न होकर सीधे ही प्रयुक्त हुमा है, हुमा है। एक प्रसंग में वहाँ नारक-जीबी की वेदना का इसलिए उसकी मालंकारिक व्याख्या साहित्य-मान्य होने विवरण दिया गया है। वहाँ नरक में प्रयोग होने वाले पर भी मौलिकता के प्रभाव में यहाँ स्वीकार्य नहीं है। शस्त्रास्त्रों की भी एक लम्बी सूची मिलती है। मूल पाठ टीकाकार ने दूसरे विकल्प में जो व्याख्या दी है, वह इस प्रकार है :प्रायः उत्तराध्ययन की टीका की व्याख्या के समान ही "चुम्बकम्मकय संचयोवतता निरयग्गि-महाग्गिसंपहै। यद्यपि यहाँ जो व्याख्या दी गई है, वह उतनी स्पष्ट लिता--इमेहि विविहेहि मायुहेहिं किते? मोग्गरनहीं है, फिर भी इसका भाव वैसा ही है। 'छेदक' से मुसुंढ़ि-करकय -सत्ति-हल-गय-मुसल-खग्ग-चाव • नाराय'वासी से छेदने वाले' और 'पूजक' से 'चन्दन से पूजने कणक कप्पणि-वसि-परसु-टंकतिक्ख-निम्मल अण्णेहिय वाले' का तात्पर्य है। एवमादिएहिं प्रसुभेहि वेउविएहिं पहरणसहि अणुबड [६] प्रथम उपांग 'उबवाई सूत्र' में भी इन्हीं शब्दो तिब्बरा परोप्पर वेयणं उदीरेति प्रमिहणंता-३"। का प्रयोग 'भगवान् महावीर के अनगारों की साधना के पूर्व कृत कर्म के संचय से संताप पाए हुए भयंकर वर्णन में किया गया है। मूलसूत्र में बताया गया है अग्नि की तरह निरयर स्थान की अग्नि से जले हुए से णं भगवती–वासीचन्दणसमाणकप्पा समलेटकचणा- जीव..इन विविध प्रायषों मे परस्पर वेदनामों का विहरन्ति१।" उदीरण करते हैं। वे कौन से मायुष हैं ? मुदगर, मुलुंडि, ___इस पाठ की व्याख्या करते हुए नवाङ्गी टीकाकार करवत, शक्ति, हल, गदा, मुसल,-तलवार, धनुष, लोहे श्री अभयदेव सूरि लिखते हैं-"वासीचन्दनयोः प्रतीतयो का बाण, करणक, (बाणका एक प्रकार) कैची, वसूला, रथवा वासीचन्दने भपकारोपकारको तयो समानी निद्व- परस-ये सभी शस्त्र अग्र भाग पर तीखे और निर्मल है परागत्वात्समः कल्पो विकल्पः ममाचारी बा येषा ते और दूसरे-दूसरे अनेक प्रशुभ कारक बैंक्रिय सैकड़ों प्रकार वासीचन्दनसमान कल्पाः२।" से शस्त्रों से, सदा उत्कट बर-भाव रखने वाले (नारक "वामी पौर चन्दन के समान अपकारी व उपकारी जीव) परस्पर वेदनामों का उदीकरण करते हैं। दोनों के प्रति राग-द्वंष रहित होने से ममान प्राचार है, यहां पर दी गई सूची में वासी शब्द परषु के साथ जिनका वे 'वासी चन्दन समान कल्पा है।" पाया है। इसमे भी स्पष्ट होता है कि वासी बढ़ई का अभयदेव सूरि ने यहाँ मालकारिक अर्थ ग्रहण किया एक हथियार है, जिसको 'वमूला' (अंग्रेजी में Adze) है, किन्तु थोड़े-से भिन्न रूप में। यहाँ 'वासी' से 'वासी कहते हैं।। के समान अपकारी' और 'चन्दन' से 'चन्दन के समान (4) उत्तराध्ययन सत्र में ही एक अन्य स्थान पर उपकारी'-ऐसा अर्थ ग्रहण किया है। यहाँ स्पष्ट रूप मे हण किया है। यहा स्पष्ट रूम म वासी शब्द का प्रयोग वसूले के अर्थ में हमा है । द्वीन्द्रिय 'वामी' शब्द का अर्थ नहीं दिया गया है, फिर भी जीवों के नामों की मची में 'वागीमुम्व' नामक जन्तु अपकारी के रूपक के रूप में ग्रहण होने से 'वामी' का। विशेष का उल्लेख है५ । प्रायः मभी टीकाकारों ने उसका तात्पर्य 'वसूला' या 'काप्ठ छेदन का उपकरण' ही ग्रहण ग्रथं 'वासी' अर्थात् वमूले को तरह मुंह वाला (एक करना होगा। ३ प्रश्न व्याकरण सूत्र, प्रथम पाश्रव द्वारा, ५१४ । [७] जैन आगमों के नवम् अंग प्रश्न व्याकरण मूत्र में 'वासी' शब्द स्पष्ट रूप से 'वसूले' के रूप में प्रयुक्त ४. Bhargva's Illustrated English-Hindi Dictionary, p. 28. 1. उववाई सूत्र (मभयदेव सूरि टीका सहित) प्र. ५. किमिणी सुमंगला चंद मलम्बा मायवाहया । :: राय धनपतसिंह बहादुर, कलकत्ता, १९३६, पृ० १०० वामीमुहा य सिप्पी य, मंखा संखणगा सहा ।। २. वही, पृ० १०० उत्तराध्ययन सूत्र, ३६।१२६ ।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy