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________________ २४० अनेकान्त वाराणसी, प्रकाशक भारतीय जैन साहित्य संसद् महाजन टोनी-१, धारा, अक्टूबर १९६५ पृष्ठ १७५ मूल्य १० रुपया । 'भारतीय जैन साहित्य संसद्' का प्रथम अधिवेशन धारा मे, जनवरी १९६५ में हुआ था। उस समय जैन साहित्य कला संगोष्ठी और दर्शन-प्राचार संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया था। इनके अन्तर्गत कतिपय विद्वानों ने जैन शोध-सम्बन्धी निबन्ध पढ़े थे। यहाँ उनका संकलन है। सामग्री होम और उपादेय है। जैन अनु सन्धित्सु उनसे प्रत्यधिक लाभान्वित होंगे, ऐसा हमें विश्वास है। संसद का यह पहला प्रयास सराहनीय है। पत्रिका का मुख पृष्ठ सम्पादन, प्रूफ रीडिङ्ग, कागज, छपाई सब कुछ ग्राकर्षक है। हम हृदय से स्वागत करते हैं। संसद् अपने इस साहित्यिक अनुष्ठान में रुचिपूर्वक अगामी रहे, ऐसी हार्दिक भावना है। प्रेमसागर १ प्राकृत प्रबोध रचयिता डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री - प्राकृत संस्कृत विभागाध्यक्ष जैन कालेज, धारा, प्रकाशक चौखम्मा विद्याभवन, वाराणसी मू० ८) रुपये। यद्यपि जैन साहित्य को मूलभाषा प्राकृत है। किन्तु दि० जैनों में प्राकृत भाषा का अध्ययन प्रायः उठ ही गया है। इसका कारण जहाँ पाठोपयोगी पुस्तकों का प्रभाव है वहाँ जैन विद्यालयों में प्राकृत के अध्ययन कराने की भी व्यवस्था नहीं है। विद्वान लोग संस्कृत छाया पर से प्राकृत ग्रन्थो का अर्थ छात्रों को पढ़ाते हैं । प्रस्तुत पुस्तक का जैसा नाम है, उसके अनुरूप ही उसमें प्राकृत का बोध कराने की क्षमता है। रचना सुबोध शैली में की गई है। प्राकृत भाषा के शब्दों की रुपावली का बोध होने के साथ-साथ प्राकृत भाषा में अनुवाद करने का सुबोध भी सुगम हो जाता है । डॉ॰ नेमिचन्द्रजी शास्त्री ने ज्योतिषाचार्य का परीक्षा के बाद संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी में एम० ए० पास किया और अब प्रारा कालेज में संस्कृत प्राकृत विभाग के अध्यक्ष हैं। मगध विश्वविद्यालय में इनके कारण प्राकृत भाषा के शिक्षण में बड़ी प्रगति हुई है। शास्वीजी ने प्राकृत भाषा के पठनोपयोगी कई पुस्तकों का निर्माण किया है। प्राकृत का व्याकरण भी लिखा है। प्रस्तुत पुस्तक सामने है ही । । इस पुस्तक को खरीद कर अपने पास रखने से प्राकृत भाषा के अध्ययन में विशेष सुविधा रहेगी। प्राकृत भाषा के अध्येताओं को इसे अवश्य मांगना चाहिये । । 'लेखक शिवनारायण सक्सेना' एम० ए०, प्रकाशक मूलचंद २. डा० कामताप्रसाद जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व किशनदास कापिड़िया, सूरत । मूल्य दो रुपया | 1 प्रस्तुत पुस्तक में स्वर्गीय डॉ० कामताप्रसाद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है । डा० कामताप्रसाद जी साहित्य सेवी व्यक्ति थे। उन्होंने अनेक पुस्तकों का निर्माण किया है, वे धुन के पक्के थे। उनकी कुछ पुस्तकें परिषद् परीक्षा बोर्ड के पहनश्रम में शामिल है वे अपने अन्तिम जीवन तक साहित्य सेवा मे संलग्न रहे। उनकी सेवाओं का मूल्य समाज मां या नहीं, किन्तु उनका साहित्य उनकी सेवाओं का मूल्य सदा प्रांकता रहेगा । वे स्वयं एक सजीव संस्था थे । उनका अखिल जैन विश्वमिशन उनकी यादगार को अच्छे रूप में प्रस्तुत करता रहेगा। समसेनाजी ने इस पुस्तक में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अच्छा प्रकाश डाला है । इसके लिये वे धन्यवाद के पात्र है। पुस्तक उपयोगी है मंगा कर पढ़ना चाहिये। ३. प्रतिनिधि रचनाएं - लेखक, नानकसिंह प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी, मूल्य ४) रुपया । पंजाबी साहित्यकार नानकसिंह की स्वसंकलित प्रतिनिधि रचनाओं का यह संकलन सुन्दर हुआ है, लेखक ने स्वयं प्रपनी रचनाओं के कुछ अंश प्रस्तुत किये है। उनमें कुछ रचना उपन्यासिक ढंग पर लिखी गई है और कुछ कहानी के रूप में भी निवद्ध है। रचनाएं स्वाभाविक है और उनमें लेखक के अनुभव को पुट है । लेखक के ५० के लगभग उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। कई पर पुरस्कार भी मिल चुका है। प्रस्तुत रचनाएँ अच्छी और स्फूर्ति दायक है। भाषा है वे पाठकों के मन को धनुरंजित करेंगी। परमानन्द शास्त्री
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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