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जौनपुर में लिखित भगवती सूत्र प्रशस्ति
श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता
मध्यकालीन जैन इतिहास के साधन अनेक है और वे लिखाने वाले श्रीमल्लराज और उनकी गुरु परम्परा का प्रचर परिमाण में उपलब्ध हैं। पट्टावली, वंशावली, वर्णन है। इसके अनुसार सुप्रसिद्ध जैसलमेर आदि ज्ञान प्रशस्ति, काव्य, रास, तीर्थमाला, चैत्यपरिपाटी, प्रतिमा- भंडारों के स्थापक श्रीजिनभद्रसूरि के पट्टधर श्रीजिनचन्द्र लेख, ऐतिहासिक गीत प्रादि फुटकर रूप में अनेक सूरि के समय में उपाध्याय कमलसंयम के उपदेश से यह प्रति ऐतिहासिक तथ्यों पर नया प्रकाश डालते है। अभी ऐसे जौनपुर में लिखी गई थी। श्रीमाल वंश के चीचड़ गोत्रीय बहत से साधन अप्रकाशित हैं। इसीलिए जैन इतिहास सहणपाल की पत्नी पूरादेवी के पुत्र धीमलराज ने इस का सिलसिला ठीक से नहीं जम पाया। शृंखलाबद्ध प्रति को लिखवाया है । मल्लराज का क्षत्रिय कुण्ड राजगृह इतिहास लेखन के लिए ऐसे साधनों का समग्ररूप से और उगल्लादि [?] तीर्थों की यात्रा और पंचमी तप के उपयोग किया जाना आवश्यक है। इससे केवल जैन इतिहास उद्यापन के निमित से सिद्धान्त ग्रन्थों के लेखन का महत्त्वही नहीं, भारतीय इतिहास की भी बहुत सी महत्त्वपूर्ण पूर्ण उल्लेख है। क्षत्रिय कुण्ड और राजगृह तो प्रसिद्ध बातें जानने को मिल सकेगी। भारत के अनेक ग्राम नगरों तीर्थ है पर उगल्ल नामक कौन सा तीर्थ स्थान था, एवं वहाँ के शासको सम्बन्धी उल्लेख जैन ऐतिहासिक अन्वेषणीय है। भगवान महावीर के जन्म-स्थान के सम्बन्ध साधनों में मिलते हैं । किस शताब्दी में कहाँ कौन व्यक्ति में अभी जो दो मत प्रवतित है वैशाली के निकटवर्ती प्रसिद्ध हया व उसने क्या-क्या काम किये? इस सम्बन्ध स्थान मे भगवान का जन्म हुआ इस बात को मध्यकाल में भी प्रशस्तियों यादि से बहुत ही प्रामाणिक एवं का जैन समाज मान्य करता हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हो जाते है।
क्षत्रिय कुण्ड को भगवान महावीर का जन्म-स्थान माना
जाता था और वही की तीर्थ यात्रा प्रचलित थी यह कविवर बनारसीदास जौनपुर के निवासी थे। वहाँ
मध्यकालीन प्रशस्तियों से स्पष्ट है । मुनि दर्शनविजय और भी बहुत से श्वेताम्बर थीमाल वंशीय खरतर
(त्रिकुटी) जी का 'क्षत्रिय कुण्ड' ग्रंथ दृष्टव्य है। गच्छानुयायी हुए है। बनारसीदास जी और उनके पूर्वज भी उसी शृंखला की एक कडी है। सोलहवीं शताब्दी भगवती सूत्र प्रशस्ति की लिखित कई जैन ग्रन्थों की प्रशस्तियों मे जौनपुर के खर- संवत् १५२६ समये फाल्गुन बदि १४ भौमवासरे। तर गच्छीय श्रावकों के उन प्रतियों को लिखाने एवं अन्य श्री खरतर गण जलधि प्रोल्लास विधौर्युगप्रधानस्य । धार्मिक कृत्यों के करने के उल्लेख मिलते हैं। सचित्र श्री जिनराजमुनीश्वर पट्ट सुपर्वादि कल्पतरो. ॥१॥ कल्प-सूत्र की प्रशस्ति तो प्रकाशित हो चुकी है, एक दो देव थी जिनभद्रसूरि सुगुरोः पट्टोरू पूर्वाचलो। अन्य प्रशस्तियां भी जौनपुर के श्रावकों से सम्बन्धित द्योतद्रव्य मयीकृत त्रिभुवनांभो जन्मिनी स्वामिपु । मिली थीं पर वे अभी हमारे पास नहीं है। प्रस्तुत लेख में श्रीमत् श्री जिनचन्द्रसूरि गुरुषु क्षीणीमिवोर्वीपतौ । स्वर्गीय कलाप्रेमी पूरणचंद्रजी नाहर की गुलाबकुमारी सम्यक् सम्प्रति पालयेत्सु महती गच्छस्य राज्य श्रियम् ।२। लायब्ररी में सुरक्षित भगवती सूत्र मूल की ३९२ पत्रों की श्रीकमल संयमोपाध्यायानां श्रमणमौलिरत्नानाम् । प्रति की लेखन प्रशस्ति प्रकाशित की जाती है। ये प्रशस्ति उपदेशाद्धावादपि श्रीयवनपुराभिधे नगरे ।।३।। सं १५२६ फाल्गुन पदी १४ की है । सात श्लोकों में ग्रंथ धमकनिष्ठो जिननायकाज्ञा शिरोमणिः सद्गुरु पादसेवी।