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________________ श्री लालबहादुर शास्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन ऐसी अनहोनी एक और बात है जिसने उन्हें भारत के ही नहीं घटना है, जिस पर सहज ही विश्वास नहीं होता। हो संसार के महापुरुषों की पक्ति में बिठाया, वह चीज थी भी कैसे ! शाम को ताशकन्द घोपणा पर हस्ताक्षर किये, शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व, तथा अहिता उनकी प्रविचल रात को रूस के प्रधानमंत्री श्री कोसीजिन द्वारा दिये था । वह चाहते थे कि गारे संसार में विभिन्नता होते भोज में शामिल हए। उसके उपरान्त दिल्ली अपने हुए भी एकता रहे। सभी राष्ट्र एक विज्ञान परिवार कूटम्बीजनों से फोन पर बात की, और प्रागम में सोने की भावना से एक दूसरे के सुख-दुख में काम प्रावें। गए। कौन कल्पना कर सकता था कि उसके कुछ ही लेकिन साथ ही वह यह भी मानते थे कि छोटे से छोटे समय के भीतर उनकी जीवन-लीला समाप्त हो जायगी। और बड़े से बड़े राष्ट्र को सम्मान पूर्वक जीने का अधि कार होना चाहिए। उन्होंने कभी किसी भी राष्ट्र को शास्त्रीजी में कुछ असामान्य गुण थे, वह गरीब परि दबाने का प्रयत्न नही किया, लेकिन साथ ही उन्होंने अपने वार में जन्में और गरीबी में पले, इसलिये सादगी नम्रता देश को भी दबने नहीं दिया। हाल ही के पाकिस्तान के और मिलन सारना उनके स्वभाव के अभिन्न अंग बन भारत पर आक्रमण के समय उन्होंने जो दृढ़ता दिखलाई गये । परिवार की अपेक्षा थी कि वह अपनी पढ़ाई लिखाई वह इतिहाम की एक वे जोड़ मिशाल है। पूरी करके कार्य में लग जाएंगे, लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। गाधी की आंधी पाई और देश की सबसे अधिक विस्मय की बात यह है कि सैनिक ललकार पर शास्त्रीजी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। संघर्ष के होते हुए भी उन्होने मदा प्रेम शान्ति और प्राय. सभी राष्ट्रीय आन्दोलनो में उन्होंने सक्रिय भाग अहिसा की बात कही। वस्तुतः यह उनके नेतृत्व में लिया और उनके जीवन के लगभग ८ वर्ष जेल में गये। यदि भारत युद्ध में संलग्न हुमा तो इम पाकाक्षा से कदापि नहीं कि उसे पाकिस्तान को जीतकर अपने में देश के स्वतत्र होने पर उन्होंने विश्राम नहीं लिया। मिलाना था, बल्कि इगलिये कि वह पाकिस्तान के इस और विविध प्रकार से नये दायित्वों को अत्यन्त निष्टा । । वहम को दूर कर देना चाहता था कि वह सशस्त्र सेना और कर्मठता से अपने ऊपर लिया ! वह उत्तर प्रदेश में के बल पर भारत को जीत सकता है। गृहमंत्री रहे । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महामत्री पद पर आसीन हप, केन्द्रीय रेल तथा परिवहन मंत्री के शास्त्रीजी गांधीजी के परम अनुयायी थे। गांधीजी भार को वहन किया और अन्त में नेहरू के निधन के की महिमा वीर की महिमा थी उसी रूप में शास्त्रीजी पश्चात् प्रधानमत्री बने। ने महिला को अपनाया। उनके जीवन से दो बातें स्पष्ट है। पहली यह कि यह बड़ दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे समय में जब उन्होंने कभी दलबदी में भाग नहीं लिया और न कभी देश को शास्त्री की आवश्यकता थी, उनका निधन हो अपनी कोई पार्टी बनाई। दूसरी यह कि उन्हे पदों में गया। हम उनके प्रति अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करते हैं मोह नहीं हुआ। समय आया और बड़े पद को उन्होंने पौर प्रभु में प्रार्थना करते है कि हमें और हमारे देश ऐसे त्याग दिया मानों वह कोई मामूली सी चीज है। को उनके मार्ग पर चलने की क्षमता प्राप्त हो। यशपाल जैन
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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