SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशस्तिलक में गणित वर्ण व्यवस्था और समाज गठन की अन्य क्रियाएं कराने वाले२० । ब्राह्मणों के लिए भूदेव क्षत्रियों का धर्म माना जाता था३०। पौरुष सापेक्ष काय शब्द माया है२१ । सम्भवतः श्रोत्रिय ब्राह्मण पाचार की तथा राज्य संचालन क्षत्रियोचित कार्य माने जाते थे। दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे, किन्तु उनमें भी मादक सम्राटू यशोधर को पहिच्छेत्र के क्षत्रियों का शिरोमणि द्रव्यों का उपयोग होने लगा था २२ । बल्कि प्रादि कार्य कहा गया है३१। पामरोदार नामक एक प्रान्तीय शासक के विषय में परी जानकारी रखने वाले, वेदों के जानकार क्षत्रिय नहीं था, इस कारण उसे शासन करने के प्रयोग्य ब्राह्मणों को वाडव कहते थे२३ । दशकुमार चरित मे भी माना गया३२। कलिंग में नाई को सेनापति बनाने के बाह्मण के लिए वाडव शब्द का प्रयोग हुमा है२४ । कारण प्रसन्तुष्ट प्रजा ने राजा को मार डाला३३ । अध्यापन कार्य कराने वाले ब्राह्मण उपाध्याय कहलाते श्य : व्यापारी वर्ग के लिए यशस्तिलक में वैश्य, थे२५ । शुभ मुहूर्त का शोधन करने वाले ब्राह्मण मोहुर्तिक वणिक, श्रेष्ठी और सार्थवाह शब्द पाए हैं । व्यापारी वर्ग कहे जाते थे२६ । मुहूर्त शोधन का कार्य करते समय वे राज्य में व्यापार करने के अतिरिक्त अन्तर्गष्ट्रीय व्यापार उत्तरीय से अपना मुंह ढंक लेते थे२७ । मन्दिर में पूजा के लिए विदेशों से भी सम्बन्ध रखते थे। सुवर्ण दीप जा के लिए नियुक्त ब्राह्मण देवभोगी कहलाता था२८ । राज्य कर अपार धन कमाने वाले व्यापारियों का उल्लेख पाया के मांगलिक कार्यों के लिए नियुक्त प्रधान ब्राह्मण पुरोहित कहलाता था२६ । यह प्रातःकाल ही राज्य भवन मे पहुँच कुशल व्यापारी को राज्य की ओर से राज्यष्ठी पद जाता था। दिया जाता था३५ । उसे विशांपति भी कहते थे३६ । ब्राह्मण के लिए बाह्मण और द्विज बहुत प्रचलित शब्द शूद्र: शूद्र अथवा छोटी जातियों के लिए यशस्तिलक थे। विप्र श्रोत्रिय, वाडव, देवभोगी तथा त्रिवेदी का में शूद्र, अन्त्यज तथा पामर शब्द पाए हैं । अन्त्यजों का यशस्तिलक में केवल एक बार उल्लेख हुमा है । मोहूर्तिक स्पर्श वर्जनीय माना जाता था३७ । पामरों की सन्तान तथा भूदेव का दो दो बार तथा पुरोहित का चार बार उच्च कार्य के योग्य नही मानी जाती थी। पामरोदार उल्लेख हुमा है : नामक राजा की माता पामर थी, इसलिए उसे राज्य अत्रिय : भत्रिय वर्ण के लिए क्षत्र और क्षत्रिय दो करने के अयोग्य माना गया३८ । शब्दों का व्यवहार हुमा है। प्राणियों की रक्षा करना अन्य सामाजिक व्यक्ति २०. ददाति दान द्विजपुङ्गवेभ्यः, ४५७ सामाजिक कार्य करने वाले अन्य व्यक्तियों में निम्न२१. श्राद्धामन्त्रितः भूदेवः, ८० पू०, कार्यान्तामनयोभं देव- लिखित उल्लेख पाए है। संदोहसाक्षिणी-क्रियाः, पृ० १६२ उत्त० ३०. भूतसंरक्षण हि क्षत्रियाणां महान्धर्म, पृ० ६५, उत्त. २२. अशुचिनि मदनद्रव्येनिपात्यते श्रोत्रियो यद्वत, ३१. अहिच्छत्रक्षत्रियशिरोमणि., पृ० ५६७, पू० पृ०१०३, उत्त० २३. वेदविद्भिर्वाडवे, प० १३५. उत. ३२. पृ० ४२६-४३०, पृ० ३३. कलिगेप-नपतिदिवाकीतिमेनाधिपत्येन-प्रकृपनाभ्यः २४. वाडवाय प्रचुरतरं धनं दत्वा, दशकुमार० ११५ प्रकृतिभ्यः-बधमाप, पृ० ४३१, पू० २५. अध्यापयन्नुपाध्यायः, पृ० १३१ उत. ३४. सुवर्णद्वीपमनुमार । पुनरगण्यपण्यविनिमयन तत्रत्यम२६. गज्याभिषेकदिवसगणनाय मौहर्तिकान्, पृ०१४० उन० । चिन्त्यामात्माभिमतवस्तुम्कन्धमादाय, पृ० ३४५ उत्त. २७. उत्तरीयदुकुलांचलपिहितविम्बिना-मौहूतिकममाजेन ३५. अजमार'-राजश्रेष्ठिन, पृ० २६१, उन. पृ० ३१६, पू० ३६. सः विगांपतिरेवमूचे, पृ० २६१, उत्त० २८. ममाज्ञापय देवभोगिनम्, पृ० १४०, उत्त. ३७. अन्त्यजः स्पृष्टाः, पृ. ४५७ २६ द्वारे तवोत्सवमतिश्च पुरोहितोऽपि, पृ० ३६१ पू० ३८. पामरपुत्रि च यस्य जनयित्रि, पृ. ४३०
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy