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________________ मध्यकालीन अन हिन्दी काव्य में शान्ताभक्ति २११ विषय में डा० शिवप्रसादसिंह का यह कथन, "जैन काव्यों स्वम्भू के 'पउमचरिउ' की, महापण्डित' राहुल सांकृत्यायन में शांति या शम की प्रधानता है अवश्य किंतु वह प्रारम्भ ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। उनका पूरा विश्वास है कि नहीं परिणति है। सम्भवतः पूरे जीवन को शम या तुलसी बाबा का रामचरित मानस, 'पउमचरिउ' से विरक्ति का क्षेत्र बना देना प्रकृति का विरोध है।"१ प्रभावित है४ । पुष्पदन्त के महापुराण का डा० पी० एल० उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। अन्य काव्यों की भांति ही वैद्य ने सम्पादन किया है। इनकी मान्यता है कि महाजैन काव्य हैं। इसमें भी एक मुख्य रस और अन्य ग्म काव्यों में वह एक उत्तम कोटि का ग्रन्थ है । 'भविसयत्तरहते हैं । केवल शम को मुख्य रस मान लेने से प्रकृति का कहा' की खोज का श्रेय जर्मन के प्रसिद्ध विद्वान प्रो. विरोध है, शृङ्गार या वीर को मानने से नहीं। यह एक जेकोबी को है। उन्होंने अपनी भारत यात्रा के समय विचित्र तक है, जिसका समाधान कठिन है। इम काव्य को अहमदाबाद से सन् १९१४ में प्राप्त किया जैन महा काव्य शांति के प्रतीक हैं। किंतु इमका था। यह सबमे पहले श्री सी० डी० दलाल और पी०डी० था। यह तात्पर्य यह नहीं है कि मानव जीवन के अन्य पहलमो को गुण के सम्पादन में गायकवाड प्रोरियण्टल सीरीज. दवा दिया गया है या छोड दिया गया है और इस प्रकार बौदा से मन् १६२३ में प्रकाशित हमा। जैकोबी ने वहां अम्वाभाविकता पनप उठी है । जहां तक जैन अपभ्र दा भाषा का दृष्टि म प्रार भाषा की दृष्टि मे और दलाल ने काव्यत्त्व की दृष्टि से के प्रबन्धकाव्यों का सम्बन्ध है, उन्हे दो भागों में बाटा इसे समूचे मध्ययुगीन भारतीय साहित्य की महत्वपूर्ण कृति जा मकता है-स्वयम्भु का 'पउमचरिउ', पृप्पदा का कहा है। डा० विण्टरनिन्स ने लिखा है कि इसकी कथा में 'महापुराण' वीर कवि का 'जम्बूम्वामी चरित' और हरि- थोड़े में अधिक कहने का गृण कट कूट भरा है। कार्यान्विति भद्र का मिणाहचनिउ' पौगणिक शैली में तथा धनपाल आदि से अन्त तक बगबर बनी हुई है। णायकुमारचरिउ धवकड़ की 'भविसयत्तकहा', पृष्पदन्त का 'णायकुमारचरिउ का भूमिका में डा० हागलाल जन ने उसे उत्तमकोटि का और नयनंदि का 'सुदमणचरिउ' रोमांचिक शैली मे लिम्बे प्रबन्ध काव्य प्रमाणित किया है।६ सधार के 'प्रद्युम्नचरित्र' गये हैं। हिन्दी के जैन प्रबन्ध काव्यों में पौराणिक और के प्रकाशन मे डा० माताप्रमाद गुप्त ने उसे एक उज्जवल रोमाचिक शैली का ममन्वय हया है। मधारु का 'प्रद्यम्न- तथा मूल्यवान रत्न माना है ७ भूधरदास के पावंगण चरित्र',ईश्वरमरि का 'ललितागचित्र', ब्रह्मगयमन का की प्रसिद्ध पं० नाथूराम प्रमी ने मौलिकता, सौदयं तथा 'मुनर्णनगम', कवि पग्मिल्ल का 'श्री पालचरित्र', मालकवि प्रसादगुण से युक्त कहा है। लालचन्द्र लब्धोदय के का भोजप्रबन्ध', लालचन्द लब्धोदय का पद्मिनीचरित्र', रायचन्द्र का 'सीताचरित्र' र भूधग्दाम का 'पाश्वपुगण' प्रतियों का उल्लेख मेरे उपर्युक्त ग्रंथ में क्रमश. ५० ऐमे ही प्रबन्ध काव्य है। इनमे 'पद्मिनीचरित्र, की २२५ व २३१ पर हुआ है। जायमी के 'पद्मावत' से और 'मीताचरित' की तुलमी- ४. महापण्डित राहुलमांकृत्यायन, हिन्दी काव्यधारा, दास के 'रामचरितमानस' से तुलना की जा सकती है। प्रथमसंस्करण, १९४५ ई. किताबमहल, इलाहाबाद पृ० ५२। १. डा. शिवप्रसाद सिंह, विद्यापति, हिन्दी प्रचारक ५. एम. विण्टरनित्स, ए हिस्ट्री प्राव इण्डियन लिटरेचर, पुस्तकालय, वाराणसी, द्वितीयसस्करण, सन् १६६१ १ ६३३ ई०, खण्ड २,१०५३२। ई०, पृ० ११० । ३. देखिए णायकुमारचरित्र, भूमिका भाग, डा. हीराइनका विशद परिचय मेरे ग्रथ हिदी जैन भनि लाल जैन लिखित । काव्य और कवि', अध्याय २, से प्राप्त किया जा ७. सधारु, प्रद्युम्नचरित, पं० चैनसुखदास मंपादित, सकता है। महावीरभवन, सवाईमानसिह हाईवे, जयपुर, प्राक्कथन ३. पद्मिनीचरित्र और सीताचरित्र की हस्तलिखित डा० माताप्रसाद गुप्त लिखित, पृ०५।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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