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बाबुराहो का मेन संग्रहालय
विकार मुद्रा के सर्वथा प्रभाव में भी अनन्त सौंदर्य की है। खजुराहो में सिंह को मारुति से मिलते-जुलते इस धारा प्रवाहित होती रह सकती है, चार छह मूर्तियों का जानवर का अंकन प्रतीकरूप में बहुतायत से हुपा है। सिर खंडित हो गया है उनके सम्पूर्ण भामण्डल को देखकर जैन ग्रुप में भी वह सैकड़ों की संख्या में अंकित है। इस यह समझना कठिन हो जाता है कि सिर की उपस्थिति पशु प्राकृति के इस प्रकार प्रकन के अनेक रूस और अनेक में यह समूचा भामण्डल बनाया कैसे गया होगा, दो तीन अर्थ विद्वानों द्वारा दिए जाते हैं। कोई इन्हें प्रसुर बिम्ब भूतियों के शरीर की चिकनाहट भी माश्चर्यकारी है। मानकर मन्दिरों पर देवासुर अंकन की सिद्धि करते हैं यहां की मूर्तियों पर पानिश का सर्वथा प्रभाव है, इसलिए और किसी किसी ने इन्हें अभिलाषा और ज्ञान का प्रतीक विशेष चिकनाहट वाली प्रतिमानों को देखकर विश्वास माना है। इनका धड़ सिंह के शरीर से मिलता जुलता है, करना पड़ता है कि अवश्य ही सैकड़ों वर्षों तक इन प्रति- पर मुखाकृति अनेक तरह की बनाई गई है। मुझ इन मानों पर प्रतिदिन प्रक्षाल और अभिषेक हना है जिसके जैन मन्दिरों में ही शार्दूलों की जो मुखाकृतियाँ प्राप्त हुई बिना उन पर इतनी मनमोहक चिकनाहट का ही नही हैं उनमें सिंह, बाघ, गज, प्रश्व, मेढ़ा, तोता, हिरण, बैल सकती थी।
और मनुष्य मादि लगभग बारह भिन्न भिन्न भाकृतियाँ हैं
इन सभी में प्रायः एक ही अभिप्राय अंकित हुमा है कि यहां की सभी प्रतिमाएं और मन्दिर भूरे अथवा लाल ।
शार्दूल ऋद्ध और पाक्रामक मुद्रा में खड़ा है। उसने अपने देशी बलूबा पत्थर से निर्मित हैं, तथा उनमें तक्षण कला के नीचे एक मानवाकृति को दबा रखा है। कहीं कहीं के जैसे चमत्कार अंकित किए गए हैं वास्तव में वसा इस मानवाकृति की जगह भी गज, अश्व, ऊँट मादि अंकन संगमरमर जैसे नरम पाषाण में भी सहज संभव दिखाए गए हैं। यह प्राकृति किसी न किसी प्रस्त्र द्वारा नहीं होता, मूर्तियों के छत्र पर मंकित की गई क्षुद्र घंटि
पाक्रमण का प्रतिकार करती दिखाई जाती है और शार्दूल काएँ, पुष्प वेलि तथा रत्नमयी झालर अत्यन्त शोभनीय की पीठ पर प्रासीन एक छोटी सी मानवाकृति मूर्ति दिखाई देती है, इसी प्रकार भामण्डल में भी अनेक अभि
दिखाई गई है जो अपने दुर्दमनीय किन्तु सौम्य पौरुष से प्रायों का अंकन है, रत्नवलय, पुष्प वेलि तथा सूर्य किरण
___ उस विशाल आक्रामक दुर्दान्त पशु पर नियंत्रण करती तो भामण्डल का साधारण क्रम है ही पर यहां के कलाकार
दिखाई देती है। ने कमल दल, नाग वेल और अग्नि ज्वाल को भी भामण्डल में अंकित करके अपनी सविशेष कल्पना को साकार
मैं शार्दूल के इस अभिप्राय को जहाँ तक समझ पाया किया है।
हूँ मुझे यह मनुष्य की अपनी पाशविक माकांक्षामों अथवा
अमानुपिक वृत्तियों का प्रतिबिम्ब लगता है जो अपनी इस संग्रहालय की वर्तमान दीवाल के बाहरी ओर ती मागों के कारण जमी चेटो तथा बीच में भी पर्याप्त सामग्री का उपयोग हुमा मालूम लेकर अंकित किया गया है और जिसने स्वय अपनी होता है। नये संग्रहालय भवन के निमाण के समय निकट
मानवता को ही दबोच रखा है। इस प्रासुरी भावना को भविष्य में ही उस विलुप्त प्राय सामग्री के उद्घाटन की
संयत करने में ममर्थ हमारा संयम या विवेक ही है जो आशा है और यह विश्वास किया जा सकता है कि तब
छोटा होकर भी हमारी पाशविक प्रभिलाषानों पर विजय चंदेल कला में जैन मूर्ति शास्त्र के कुछ नए मान प्रकाश में
पाने में समर्थ होता है। जैन दृष्टिकोण से इमे बारह व्रतों आवेगे।
के अतिचार रूप में भी समझा जा सकता है । इन शार्दूलों जैन पुरातत्त्व के वर्णन के अन्त में शार्दूल अथवा की विभिन्न प्राकृतियों को देखकर मेरी बात आसानी से अष्टापद के अंकन का थोड़ा सा विवरण दे देना आवश्यक समझी जा सकती है।