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खजुराहो का जैन संग्रहालय
नीरज जैन
खजुराहो का पुरातत्त्व विशिष्ट कलात्मक और विश्व- द्वार तोरण, सिंहासन, शासन देवियां, द्वारपाल, नवग्रह, विख्यात है, बहुत कम लोग जानते हैं कि सौन्दर्य के इन शार्दूल प्रादि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, इन सबका प्रतीकों में जैन स्थापत्य का बहुत बड़ा योगदान है । खजु. मंकन अनेक वैविध्य और वैचित्र्य से पूर्ण है, एक लम्बे राहो के जैन शिल्प का क्रमशः वर्णन करते हुए पारसनाथ तोरण में एक दिगम्बर प्राचार्य को एक ऊँची शिला पर मन्दिर और प्रादिनाथ मन्दिर पर सामग्री पाठकों के विराजमान दिखाया गया हैं जिनके सामने पीछी लिए समक्ष गत अंकों में प्रस्तुत की जा चुकी है। इस अंक में हुए दो दिगम्बर मुनि नमन करते हुए अंकित हैं और वहाँ के जैन शिल्प संग्रहालय पर दृष्टिपात करेंगे। श्रावक श्राविकाएं तथा सेना खड़ी हुई है, हाथी घोड़े तथा
भाला बरछी से सज्जित सेना यह सिद्ध करती है कि पारसनाथ मन्दिर के पश्चिमी पावं में एक गहरी बावली है; उसी बावली से लगा हुमा--नग्रुप का अंतिम
कहीं दूर की यात्रा का यह दृश्य है, ऊपर विद्याधरों की
पंक्ति भी है, इसी पट्ट के नीचे की भोर बांसुरी बजाते कोना-अभी एक खुले हुए संग्रहालय के रूप में सजा
हुए एक गंधर्व युगल का सुन्दर अंकन है। हमा है। इसे संग्रहालय भी क्या कहें, मन्दिरों की पुननि- हुए मणि-व्यवस्था करते समय यहाँ फैली हुई शतश: जैन- द्वार तोरणों में मध्य कालीन परम्परा के अनुसार प्रतिमानों को परकोटे की दीवाल में चुन दिया गया है गंगा-यमुना, द्वारपाल यक्ष, मिथुन युगल तथा नवग्रहों का और बाद में एकत्र की गई कुछ मूर्तियाँ चबूतरे पर सजा अंकन एक से एक बढ़कर यहाँ दिखाया गया है, जैन दी गई हैं। यह हर्ष की बात है कि समाज ने धीरे धीरे शासन देवियों की कुछ स्वतन्त्र बड़ी प्रतिमाएं भी इस अपनी इन कलानिधियों का मूल्य पहिचाना है पोर यहाँ संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है जिनमें धरणेन्द्र पद्मावती एक संग्रहालय भवन बनाने का निश्चय कर लिया है। इस और अम्बिका प्रमुख हैं, चन्द्रेश्वरी, ज्वालामालिनी तथा वर्ष मेले पर इस प्रस्तावित भवन का शिलान्यास भी हो सरस्वती प्रादि का अकन भी यथा स्थान दिखाई देता चका है। इसी बीच केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने इन है. अनेक विशाल जिन बिम्बों के ऊपरी भाग यहां पाये प्रतिमानों को प्राप्त करने का प्रयास किया था परन्तु जाते है, जिनमे जल अभिषेक करते हुए गज तथा छत्र श्रीमान् बाबू छोटेलालजी कलकत्ता के प्रयास से वह स्थिति प्रादि बने हैं, और उन्हें देखकर लगता है कि यहां बड़ीटल गई है तथा इन पंक्तियों के लेखक का विश्वास है कि बडी मतिया भी प्रचर मात्रा में रही है, तीर्थकर प्रतिमाएँ यदि समय पर संग्रहालय भवन तैयार हो सका तो यहाँ यहां सर्वाधिक हैं, जिनमें पद्मासन और खड्गासन दोनों की समस्त उपलब्ध सामग्री तो उसमें सजाई ही जायगी, प्रकार की मूर्तियां हैं, इन मूर्तियों का सुकर परिकर, खजुराहो के केन्द्रीय संग्रहालय में स्थित अनेक जैन प्रति- निर्विकार-सौम्य मुख मुद्रा, तथा सिंहासन से लेकर छत्र तक मानों को भी इस संग्रहालय के लिए प्राप्त करने में का कलात्मक गठन और सुन्दर सज्जा खजुराहो के तक्षक सफलता प्राप्त हो जायगी, और तब यह एक अत्यन्त की गौरव गरिमा के अनुरूप है और दर्शकों को प्राषित महत्वपूर्ण संग्रहालय हो जाएगा।
करते हुए उच्चतर स्वर में घोपित करती है कि सौन्दर्य वर्तमान में यहाँ पर लगभग एक-सौ से अधिक मूर्ति की अनुभूति कामुकता या शृगार के अनुपान में ही होती खण्ड पडे हैं जिनमें अधिकांश तीर्थकर प्रतिमाएँ है, किन्तु हो यह मावश्यक नहीं है अपरिग्रह के परिवेश में मौर