________________
क्र० सं०
१६
२०
२१
२२
२३
२४
२५
२६
२७
२५
२६
३०
३१
३२
३३
३४
श्री मोहनलालजी ज्ञानभंडार, सूरत को ताडपत्रीय प्रतियां
कृतिनाम
आदि पद
चित सु उवाय मेस
सयल तियलोक्कतिलयं
पणमिय पढम जिणंद
सिरि चरिम तित्थनाह
यन्नाम स्मृतिरप्यशेष
तिहुयणजनमनलो
चवीसंपि जिणिदे
जय जय पास सुहायर
सिरि तिलसूरिगुरुग गहरह
जय जय संखेसर तिलय
सिरि संखेसर संठिय निट्ठिय
खेसरपुर संठिया निट्ठिय संखपुरे सिखिदह देउ
यस त्रैलोक्यं गतं, ततं गुरुतम सिरि धर्मसूरि चंदो चउवीपि जिणिदे
गाथा
१६
२७
१०
११
ε
१३
१४
१५
२१
१३
१३
१३
ε
११
&
११
उपदेश कुलक
नेमिनाथ
श्री पुण्डरीकगणधर स्तोत्र
अणहिलपुर रथ यात्रा स्त. श्री भरुयच्छ मुनिसुव्रत स्त. बावतार जिनकुमरविहार स्त. पाश्वंजिन स्त०
श्री धर्मसूरि देसणा गीत
श्री संखेश्वर पाश्वं स्त.
५ कृतियों में पदमसिंह गणि का नाम है, यह रत्नसिह सूरि का श्राचार्य पद पूर्व का नाम है या अन्य कवि है, अत्येषणीय है ।
11
इनमें से कई रचनाएं श्री रिषभदेव केसरिमल पेढी से प्रकाशित - प्रकरण समुच्चय में नम्बर १, २, ३, ४, १५, १६, १७, १८, १६ तो प्रकाशित हो चुकी हैं। रत्नसिंह मूरि की ३-४ और भी रचनाएं प्रकरण समुच्चय में छपी है जो इस प्रति मे नहीं है। फिर भी इस प्रति में कई ऐसी महत्वपूर्ण रचनाए है जो विविध दृष्टियो से महत्त्व को हैं । उदाहरणार्थ - धर्मसूरि सम्बन्धी रचनाएं और कतिपय स्तवन उनमे से धर्मसूरि गुणस्तुति पत्रिका की दो गाथाए धर्मसूरि के संबंध में ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करती हैं उनके अनुसार ६ वर्ष की अवस्था में उन्होंने दीक्षा ली, ६ वर्ष सामान्य साधु के पर्याय में रहे और ६०
21
"
"1
श्री धर्मसूरि छप्पय शासनदेवी स्तोत्र
39
१०३
कर्ता ars पत्रांक पृष्ठांक
२५
२६
रत्नसेन सूरि ४६
४८
2:
पउमनाह ५१
५२
33
रत्नसिंहरि ५३
५५
पउमनाह गगि ५६
रत्नसिंह सूरि ५७
५८
६१
६३
૬૪
६५
"
23
"2
"
ני
६६
पउमनाह ६६
रत्नसिंह सूरि ७३
"
२८
5ܐ
२६
३०
३१
३१
३२
३४
૬૪
३५
३६
३६
३८
३६
वर्ष सूरिपद पर । इस तरह सवत १२३७ के भादवा सुदी
हुए 1
नव नव वरिसे ठाउं, गिवासे साहु भावाएज्जाए । सहि सूरि पंयमी, सरि सम्व - प्रउंमि ॥ ३३ ॥ बारस सत्ततीसे सुद्धाए एकारसीइ भद्दवरु । चदं दिणे सामि तुमं, सुर मंदिर मंडणं जाम्रो ||३४||
कुल ७८ वर्ष की आयु में ११ को वे स्वर्ग प्राप्त
उपरोक्त राचनात्रों में मे कुछ प्राकृत, कुछ संस्कृत श्रौर कुछ अपभ्रंश में है। रचना संवत के उल्लेखवाली तो केवल एक ही रचना है "आत्मानुशासन" जो सवत १३३६ वैसाख सुदी ५ को प्रणहिलपुर-पारण में रची गई है । नेमिनाथ-स्तव में प्रणहिलवाड को स्वर्गपुरी बतलाया श्रणलिपुर रथयात्रा स्तवन में 'कुमर नरिंद और बावर्तार जिन स्तवन में कुमर विहार का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है ।