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________________ १२ विधामः श्लोक ६२ पत्रांक १०३ । इदमदगत तत्त्वैः सूरिभिः शोधनीयं खलति यदिहं बुद्धि६ लोक तत्त्व निर्णय-१. भगवतः हरिभद्रसूरि कृत कल्पनोमीदशस्या चितन कमक्त सेवा मादर्श प्राप्य यस्य, पत्र १० । फिर पत्र ११ से १८ में अनेकांत वाद सम्बन्धी श्रतुपद मकरंद स्पंद विदु प्रदात्री, कोई रचना है, जिसके प्रारम्भ में "नामोऽनेकांत वादाय । भुवन सरसिशोभा लम्पते राजहंसी। पूर्वापर स्वभाव परिहारो वादीन लक्षण परिणामवतो स जयति मुनिचंद्र श्री मुनीन्द्रः कवीन्द्रः ।। भावाः" अंत में "ले. सोहडेन लिखितेति ।" फिर भिन्न श्री अजयदेव सरि माहेम्मूलण विहाण दुल्लविया । प्रक्षरोमें "प्रागमिक श्रीजिनप्रभसूरिणां वादस्थल पुस्तिका।" पीवंति सिद्ध बहु मुक्क सरललोयम करकया ॥६॥ ७प्रतिष्ठादि विषयक बादस्थल-एवं अपौरुषेय वेद पत्र ४७ में-इति श्रीयशोवर्द्धमानान्तेवासिना यशोदेनिराकरण । मादि अंत इस प्रकार है-"महादिमाहे मातंग वस्य त्रिवर्गपरिहारित पौरुषेय वेदनिराकरणं ॥धी। कुंभ भृगे मगाधिपम् । मंगलं महा श्रीप्रादी वादि जिनतत्त्वा मोहोन्मूलन उच्यते ॥११पत्र पत्र ४८ से-इहाई महामोह तिमिरभरातरित-विश्व २६ में-श्रीमंतोजित देवमरि मुनि सौरिणकाया पुरी। वस्तु तत्त्व-दर्शन समर्थ । प्रोक्ता स्नातक संज्ञितेन परम श्राद्धने मुधान्मना । पत्र ६१ से-कृतित्यं पंडित यशोवर्द्धनांतेवामिनो सिद्धान्तोक्त विविक्त युक्तिकलितं चकूविना मत्मरम् । वाद यशोदेवसाध्यरिति । कुलकादि संग्रह, रतनसिंहमूरि व पद्मस्थानक गद्य पद्य पदवी संभूपिते श्रेयसे । स्मर मर वसु नाम (जो शायद आचार्य पद से पहले का दीक्षा नाम रूद्रोंके प्रमाणे-गतेन्द्रे समजनि जनचेतो मदमोहे प्रदायि । हो) ३४ रचनाएं, पत्र ७३, सूची - क्र०म० आदि पदः गाथा ३० . २० ____orn m" x or १ . 02 कृति नाम कर्ता ताड पृष्ठांक पत्रांक अात्मचिन्ता भावना चूलिका रन्नसिंह मूरि १ १ प्रात्मानुशास्ति ऋषभदेव विज्ञप्तिका अप्पाणुशासनं हितशिक्षाकुलक संवेगचूलिकाकुलकम् नेमिनाथस्तोत्र पार्श्वनाथस्तोत्रम् श्री पाश्वनाथ स्त. श्री नेमिनाथ स्त. श्री नेमिनाथ स्त. अपहिलवाडा श्री नेमिनाथ स्त. कल्याणशस्य पाथोदं २४ प्राकृत सस्कृतो वापि २५ जय जय भुवन दिवायर सिरि धम्मसूरि मुगु जइ जीव तुझ सम्म नारीण बहिरंगे भमिय मऊहं नेमि मंगलवरतरुकंद सिरि पासतिजय सुदर जय जय नेमि जिणिद तुहु ...........पहु सिरि नेमिनाह सामिय जइवि १२ मूर्तयस्ते न संपते जयद सज एक्कदीवो निय गुरुपाय पसाया सिरि धम्मसूरि पहुणो ४४ नमिउं गुरुपयपउम सुहिजो वा दुहिमो वा ११ २० , २८ ३२ श्रीधर्मसूरि स्तवनविशिका मात्महित चिन्ताकुलक मनोनिग्रह भावनाकुलक गुरु भक्ति कुलक पर्यन्तसमयाराधताकुलक परमनाह ३५ रत्नसिंह सूरि ४० १८
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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