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श्री मोहनलालजी शानभंडार, सरत की ताडपत्रीय प्रतियां
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वीं शताब्दी से तो १५वीं के प्रारम्भ तक की करीब १०० संवत १४४३, पाटण में लिखित । इस प्रति के साथ ताडपत्रीय प्रतियां जैसलमेर, पाटण, खम्भात बडौदा, प्रशस्ति के अनुसार ज्योतिषकरण्डवित्ति एवं चैत्यबन्दन पूना प्रादि स्थानों में प्राप्त है । अन्य भंडारों में कही कहीं चूरिण की प्रति भी लिखी गई थी, पर पता नहीं वे अब एक दो प्रतियां ही मिलती हैं। जैसलमेर के बड़े भंडार किसी अन्य भंडार में हैं या नष्ट हो गई। त्रुटित प्रशस्ति के अतिरिक्त तपागच्छ भंडार और खरतर गच्छ के बड़े इस प्रकार है-"....."श्वमलय सिंहाख्यः देवगुरुपु भक्तो उपासरे के पंचायती भंडार तथा प्राचार्य शाखा के भंडार 'डेरंडक' नगर मुख्य तमडनु तस्य च भार्या साऊ धर्मासक्ता की प्रतियां हमने अपनी प्रथम जैसलमेर यात्रा में देखी थीं सुशील संयुता...... इनमें से स्वर्गीय चिमनलाल दलाल और लालचंद गांधी सहिताश्च खेतसिंहाभिधः मेधाम्याम् सुगुणाभ्याम् सम्पादित 'जैसलमेर भांडागारीय सूची' में बड़े भंडार और (४) पुश्यस्तथा च देऊ: सीरु घटणूष्टमूश्च । पांचूश्च रूडी तपागच्छ भंडार की ताडपत्रीय प्रतियों का भी विवरण मातू नाम्नी सप्रति [?] सशील संयुक्ताः (५) मूरि श्री छपा था। बड़े उपासरे के पंचायती भंडार और प्राचार्य श्रीमन्तपागच्छधप देवसुन्दर गुरुणां उपदेशतो घसस्था धर्मोंशाखा भंडार की ताडपत्रीय प्रतियों की जानकारी हमने परिज्ञाय ।६। 'सी' सुधाविकी सौव पुत्र पुत्री परीवता सर्व प्रथम प्रकाशित की । पाटण, खम्भात पूना की प्रतियों पत्युर्मलयसिंहस्य श्रेयसे शुद्ध वासना ७. ज्योतिः करण्ड का विवरण प्रकाशित हो ही चुका है। दक्षिण भारत में विवृति, तीर्थ कल्पांश्च भूरिश्च । चैत्यवंदन चयदि श्री तो ताडपत्र पर टंकित लिपि की लक्षाधिक प्रतियां सुरक्षित ताडपुस्तकत्रये ८. लिलिखे....."ने वादिये भूमिते १.४३ है। पर उत्तर भारत में जैन भंडारों के अतिरिक्त अन्य वत्सरे लेख्पामास नागशर्म द्विजन्मना ॥ शिवमस्तु । संग्रहालयों में ताडपत्रीय प्रतियां क्वचित् ही है। इसलिए २. योगशास्त्र सोपज्ञवृत्ति हेमचंद्र, पत्र १०३, प्रशस्ति उपरोक्त प्रसिद्ध जैन भंडारों के अतिरिक्त अन्य छोटे मोटे त्रुटित-....... 'काइ (य)स्थ'कोतिपालेन लिखितं ।" जैन भंडारों में जो भी ताडपत्रीय प्रतियां सुरक्षित है उनकी ३. योगशास्त्र, हेमचंद्र, पत्र ५२ संवत् १२५६ जानकारी प्रकाश में पाना अत्यावश्यक है । इन प्रतियां में लिखित । बहुत सी ऐसी रचनाए भी हैं जिनकी अन्य कोई भी प्रति ४. ललित विस्तरा-चैत्यवन्दनवृत्ति, हरिभद्र-चित, कहीं भी प्राप्त नहीं है । वे तो महत्त्वपूर्ण हैं ही पर प्रसिद्ध पत्र ११६, प्र. १२७० ग्रंथों की भी प्राचीन और शुद्ध प्रतियां, इन ग्रंथों के शुद्ध ५. तिलकमंजरीसार, धनपाल-विरचित, विश्राम, पत्र एवं प्राचीन पाठ के निर्णय तथा सम्पादन के लिए बड़े १०३ अंतिम पत्र बीच में कटा, विश्रामों के नाम और महत्त्व की हैं।
पद्य संख्या इस प्रकार है
(१) लक्ष्मी प्रसादनो नाम प्रथमो विश्रामः श्लोक: अभी अभी मेरा सहयोगी भतीजा भंवरलाल सूरत
१०६, पत्र १० (२) मित्रसमागमो नाम द्वितीयः विथामः गया तोश्री मोहनलालजी जैनभंडार में उसे ८ ताडपत्रीय
इन्लोक १३२, पत्राक २० (३) चित्रपरदर्शनो नाम तृतीयो प्रतियां देखने को मिली। थोडं ममय में उनका जो भी
विश्राम. श्लोक १३६, पत्राक ३२ (४) इति धनपाल विरचिते विवरण वह लिख सका वह उसने मुझे लिख भेजा है और
तिलकमंजरी सारे पुर-प्रवशनो नाम चतुर्थो विश्रामः श्लोक उसे इस लेख में प्रकाशित किया जा रहा है । पूज्य निपुण
१२६, पत्रांक ४३ (५) इति लघु धनपाल विरचित तिलकमुनिजी की कृपा से कुलकादि फूटकर ३४ रचनामों का
मंजरीसारे नौ वर्णणो नाम पंचमो विधाम श्लोक २६ एक संग्रह-प्रति तो वह अपने साथ कलकत्ते ले गया और
पत्रांक ५८, (६) मल्य मुन्दरीवृत्तांतो नामः षष्ठो विश्रामः, केवल ३-४ दिन में ही उसकी प्रेसकापी उसने स्वयं कर
श्लोक १४३ पत्रांक ७० (७) गन्धर्वकशापागमो नाम सप्तमो ली, जो अभी हमारे संग्रह में है। अब उन पाठों प्रतियों- विश्रामः श्लोक १६२ पत्रांक ८४ (८) प्राग्भवपरिज्ञानो नाम का विवरण नीचे दिया जा रहा है ।
अष्टमो विश्रामः श्लोक २४२ पत्रांक ९६ (8) इति श्रीधनविविध तीर्थकल्प'-१. जिन प्रभसूरि, पत्र १३७, पालविरचिते तिलकमंजरीसारे राज्यद्वय लाभो नाम नवमो