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अतिशय क्षेत्र महार
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पितं
नित्य
लपाया
तस्माद जायत कुलाम्बर पूर्णचनाः,
प्रतिमा सचमुच बड़ी ही पाल्हाद दायिनी है। इस पर बोजाहउस्तवनुजोक्य चन्द्रनामा ।
तेरहवीं शताब्दी में निर्माण के समय जो पालिश किया एक: परोपकृति हेतु कृतावतारो;
गया था वह भाज भी वैसा ही चमकदार और टटका है। धर्मात्मकः पुनरमोष सुदानसारः ॥४॥
मरम्मत के समय उसकी जोड़ का पालिश बनाने के लिए ताभ्यामशेष दुरितोषामकहेतुं
पन्ना आदि अनेक बहुमूल्य पदार्थ एकत्र करने पड़े थे ऐसा निर्मापितं भुवनभूषण भूत मेतत् ।
क्षेत्र के मंत्री और द्वारक कार्य कर्ता राजवैद्य श्री बारे श्रीशांति चैत्यमति नित्य सुख प्रदाता।
लाल जी ने मुझे बताया था। श्री नारायण शिल्पी ने तो मुक्ति श्रियो वदन वीक्षण लोलुपाभ्याम् ॥५॥ सूक्ष्म वेक्षण यंत्र से इस पालिश मे हीरक कण भी मुझे सम्बत् १२३७ मार्गसुवी ३ शुके श्रीमत्परौद्धदेव विजय- दिखाये थे । गुप्तकाल के बाद इतना अच्छा और प्रोपदार
राज्ये। पालिश प्रायः कहीं नहीं पाया जाता प्रतः उस दृष्टि से चन्द्र भास्कर समुद्र तारका, यावदत्र जनचित्त हारका। प्रतिमा का बड़ा महत्त्व है। कला की दृष्टि से भी इस धर्मकारिकृत शुद्ध कीर्तनं. तावदेव जयतात् सुकीर्तनम्। मूर्ति में साम्य, सौम्य, वीतरागता तथा प्रात्म केन्द्रन प्रादि वल्हणस्य सुतः श्रीमान् रूपकारो महामतिः ।
भावों का जो प्रदर्शन देखने को मिलता है वह दर्शक को पापटो वास्तु शास्त्रजस्तेन बिम्बं सुनिमितम् ॥
को मुग्ध कर लेता है और मूर्ति कर पापट की कला साधना इस लेख मे दो तीन स्थानो पर किनारे के अक्षर के प्रति भी उसका मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। क्षतिग्रस्त हो गए है पर उन्ह बहुत स्पष्ट पढ़ा या अनु- इस क्षेत्र पर "श्री शांतिनाथ संग्रहालय" नाम से मानित किया जा सकता है अतः इस लेख तथा प्रहार की पुरातत्त्व का एक संग्रहालय भी चल रहा है जिसमें अनेक अन्य सामग्री पर शोध करने हेतु मै विद्वानों को सादर महत्वपूर्ण शिल्पावशेष संकलित है। इस संग्रहालय का आमंत्रित करता हूँ।
संक्षिप्त परन्तु सचित्र परिचय मैं अपने अगलं लेख में भगवान शांतिनाथ की यह उत्तुग और सौष्ठवपूर्ण प्रस्तुत करूंगा।
पा
श्री मोहनलालजी ज्ञानभंडार, सूरत की ताडपत्रीय प्रतियाँ
श्री भंवरलाल नाहटा
मानव को प्रकृति ने अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक असंख्य शब्द उसने गढ़े और बहुत ही उच्च थेणी के सुविधाएँ और शक्तियां दी हैं, उनमें मन और बुद्धि प्रधान विचार और विविध व्यवहार उमकी वाचाशक्ति के परि. है । मानसिक शक्ति में वह विचार करता है और बुद्धि के णाम है । यदि मनुष्य अपने भाव दूसरो को बता नही द्वाग उलझनों को सुलझाता है और नये-नये आविष्कार सकता और दूमरे के भावों को स्वय ग्रहण नहीं कर करता है । मन की प्रधानता से ही उसका नाम 'मानव' सकता, तो विचारों की सम्पदा जो अाज हमे प्राप्त है पड़ा । मन ही बंध और मोक्ष इन दोनों का प्रधान कारण और दिनोदिन उसके प्राधार मे नये-नये विचार उद्भव है "मन एव मनुष्यानां कारणं बंधमोक्षयो।" वाचिक होते है वह सम्भव नहीं हो पाता। इसी तरह का एक शक्ति यद्यपि अन्य प्राणियों को भी प्राप्त है पर मनुष्य ने और आविष्कार मानव ने किया जिससे विचारों को उमका विकास एवं उपयोग बहुत ही विशिष्ट रूप से दीर्घकाल तक सुरक्षित रखा जा सके। जो भी घटनाएं किया है । भाषा के द्वारा भावाभिव्यक्ति, जितने परिमाण घटती है, एक दूसरे को जो कुछ भी कहते सुनते है उस में मनुष्य ने की है, अन्य कोई भी प्राणी नहीं कर सका। सभी को स्थायित्व देने के लिए लिपिविद्या का माविष्कार