SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपराध और बुद्धि का पारस्परिक सम्बन्ध ११५ ने ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वणिकों को भी अपराधी माना रक्षा न करने वाले राजा को कुत्ते की मौत१ मार देना है । जबकि ये बौद्धिक वर्ग में प्राते हैं । सुभाषित संग्रह में चाहिए। ऐसा उल्लेख है। राजा व राजपुत्र दोनों का कहा है सारे अपराध हो जाने पर भी ब्राह्मण प्रदण्डनीय ही शिक्षित होना स्वतः सिद्ध है और भोज व रावण की है । उस समय सर्वोत्कृष्ट विद्वान ब्राह्मण ही माने जाते थे। विधाएँ तो सर्व विश्रुत है ही। फिर भी पाराधी मनोमैगस्थनीज ने भारतीयों को कार्य की दृष्टि से सात श्रेणियों वृत्तियाँ इनमें भी प्रशिक्षितों की भांति ही पाई गई हैं। में बांटा है। उनमें प्रथम श्रेणि ब्राह्मण को विद्वानर कहा ऐसे अनगिन उल्लेख व ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध होते हैं है तथा उस समय की शिक्षा प्रणाली का विवेचन करते जिनसे स्पष्ट है कि शिक्षित व्यक्ति भी प्रशिक्षित की तरह हुए कहा है कि तब शिक्षक या तो ब्राह्मण होते थे अथवा अपराध कर सकता है। व वर्तमान भी इस तथ्य का श्रमण । एक और तो ब्राह्मणों के विद्वान होने का जिक्र साक्षी है। किया गया है, दूसरी ओर वहीं चन्द्र गुप्त के समय का प्रस्तुत प्रसङ्ग को मनोवैज्ञानिक विचारों के संदर्भ में वर्णन करते हुए ब्राह्मणों के अपराधी सिद्ध होने पर दण्ड पढना भी अधिक उपयुक्त होगा। मनोवैज्ञानिकों का व्यवस्था बतलाई गई है कि-"ब्राह्मणों का राजा व प्रजा मन्तव्य है कि "गलत विचार प्रचेतन मन की प्रथियों को द्वारा विशेष मान किया जाता था पर शासन के मामलों पकड़ने पर तर्कर और बुद्धि द्वारा दुरस्त नहीं किए जा में कोई रियायत नहीं थी। अपराधी सिद्ध होने पर उन्हें सकते; जब तब क्रियान्वित होकर ही रहते हैं"। जे. भी साधारण नागरिक की भाति दण्ड भुगतना पड़ता था। एम. ग्राहम ने कहा है-चरित्र निर्माण के लिए जान एक३ उपयोगी वस्तु है पर अनिवार्य नहीं।" यही बात चन्द्रगुप्त के समय शिक्षा अनिवार्य थी इसलिए कुमारी ग्रीन ने कही है "शिक्षा यद्यपि महत्त्वपूर्ण वस्तु अब्राह्मणों के शिक्षित होने में तो कोई शक है ही नहीं। है परन्तु व्यक्तित्व विकास के लिए उननी मावश्यक नहीं"। वार्ता समृद्देश४ में व्यापारियों को डाकू कहा गया है। हंसराज भाटिया ने अपनी पुस्तक असामान्य मनोविज्ञान सोमदेव के नीति मत्रोंमें राजा को अपने अपराधी५ पुत्र को में इस विषय को बहुत ही गभीरता व मक्ष्मता में छुपा दण्डित करने के लिए कहा गया है। इसी तरह कोटिल्य है। वहां बताया गया है-"अपराधी मनोवृत्ति के लोगों अर्थशास्त्र के उपोद्धात में भोज को ब्राह्मण कन्या पर की बुद्धि और अन्य लोगों५ की बुद्धि में कोई अन्तर नही बलात्कार करने के अपराध में और रावण को सीता दिखाई देता। वे प्रायः मामान्यतया तीक्ष्ण बुद्धि के हरण के अपराध में सर्वस्व विनाश का दण्ड मिला बत होते हैं। लाया गया है। नया महाभारत में रक्षा का व्रत लेकर कुछ अपगधी तो बहुत चतुर और तेज बतलाए जाते मा न ती है। कुछ विद्वानों का मत है कि वे प्रायः निबंन वृद्धि के होते हैं, पर यह निष्का उन अपराधियों के अध्ययन पर ब्राह्मणः । २. 'महामानव' पुस्तक पृ० १५ (लेखक मत्यकाम अवलम्बित है जो पकड़े जाते हैं। उन अपराधियों की अ विद्यालकार) १. अहं वो रक्षने व्युक्या, यो न रक्षति भूमिपः ३. महागानव पुस्तक पृ० १३,१४) म मंहत्य निग्न्तव्य श्वेव मोन्माद मातुर. । ४. न सन्ति वणिग्म्य परे पश्यतो दशः (वार्ता ममुद्देश) ५. अपराधानुरूपी दण्डः पुत्रोपि प्रणेतव्य (सोमदेवनीति २. मानसिक चिकित्सा पृ०५७ मूत्र पृ० ७३) (लेखक लालजीराम शुक्ल एम.ए.बी.टी) ६. दाण्डक्यो नाम भोजः, कामाद् ब्राह्मण कन्या मभि- ३. 'व्यक्तित्व इसके विकास के उपाय' (पृ. ३३,३४) मन्यमानः सवन्धु राष्ट्री विननाश रावणश्च सीता. ४. 'व्यक्तित्व इसके विकास के उपाय' (पृ.७') (को० उपोद घात) ५. 'असामान्य मनोविज्ञान' (पृ० ३३४)
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy