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भनेकान्त
अपराध का कारण होती तो सारे 'शरणार्थी' अपराधी और तर्क नहीं होगा तो भले बुरे का चुनाव कैसे हो होते कोई पुरुषार्थी नहीं बनते।
सकेगा । नैतिकता, जो व्यक्तिगत चुनाव पर निर्भर है मनो वैज्ञानिकों ने इस विषय में अपने शोधपूर्ण उन बुद्धि हीनों के लिए कोई अर्थ और महत्व नहीं रखती। निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। 'मेरिल' की परीक्षा विधि के चोरी, झूठ लापरवाही, ध्वंसात्मककार्य, लैकिक अनाचार अनुसार तीन सौ अपराधियों और तीन सौ निरपराधियों आदि प्रवृत्तियाँ हर दुर्बल बुद्धि व्यक्ति में थोड़ी बहुत पाई की जांच की गई जिसमें अपराधियों में दो तिहाई निन्न जाती हैं।" ऐसा उनका अनुभव है। घरों के थे पर निरपराधियों में प्राधे निम्न घरों के थे कइयों का चिन्तन है-अपराध अधिक बौद्धिक वर्ग पौर माधे उच्च घरों के" इससे निश्चित है कि प्रभाव में ही होते हैं । जो जितना अधिक जानेगे वे उतने ही कोई अपराध का कारण नहीं निमित्त फिर भी हो सकता चतुराईपूर्ण ढंग बनाना विधाओं से अपराध करेगे। कई है वासना मिटे बिना वातावरण और वंशानुक्रम मादि लोग बौद्धिकता को न तो अपराध का जनक ही मानते हैं की अनुकूलतामों में भी व्यक्ति अपराधी बना रहता है और न विनाशक ही लेकिन परिष्कारक मानते है । अपनेऔर वासना के अभाव में गम्भीर बाधाएं भी विचलित अपने चिन्तन हैं। लेकिन बुद्धि और अपराध का क्षेत्र नहीं कर सकती। फिर भी अपराध से बचने के लिए एक दूसरे से सर्वथा अनपेक्षित है। एक बुद्धिशील व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक सामर्थ्य का परिपूर्ण भी अपराध करता हुमा देखा जाता है और एक दुर्बल और विशुद्ध होना अत्यन्त अपेक्षित है। मानसिक अतुष्टि व्यक्ति भी। यह दूसरी बात है कि दोनों के प्रकार सर्वथा तो अपगध का सीधा कारण बनती है।
भिन्न होते हैं। बुद्धि [शिक्षा और अपराष
बुरे को बुरा जानना एक बात है और न करना शिक्षा और अपराध के बीच कोई अविनाभाव नहीं। दूसरी बात । बौद्धिक ज्ञान से अपराध जाने तो जा सकते शिक्षा; बौद्धिक विकास है और अपराध मानसिक हैं पर मिटाए नहीं जा सकते। जैनी लोग जानते है नादुर्बलता । बुद्धि विचारात्मक होती है, मन भावात्मक । जायज या अति मंग्रह भयंकर पाप है फिर भी करते है ये एक दूसरे को कदाचित् प्रभावित तो कर सकते है क्योकि जानना और करना दोनो दो कारणों पर अबलेकिन किसी प्रकार का प्रतिबन्ध इनके बीच हो लम्बित है। अतः अपराध मिटाने के लिए बुद्धि नहीं सकता।
___ मानसिक एकाग्रता [ध्यान] ही उत्कृष्ट उपाय है। कइयों की धारणा है बुद्धिशील व्यक्ति अपराध नहीं भगवान महावीर ने छद्मस्थ के लक्षणों में एक लक्षण करते। क्योंकि उनमें से कई तो कहते है-अपराध बताया है कि जो दोष को दोप जानता१ हुअा भी सेवन मानसिक दुर्वलता से उत्पन्न होते हैं और मानसिक करे, वह छद्मस्थ होता है । यही बात कौटिल्य ने कहा है दुर्बलता व बौद्धिक दुर्बलता दो नहीं है। जहां यह नहीं कि लोग जानकर भी दोपों का प्राचरण२ कर लेते है। होती वहां अपराध भी नही होते। तथा कइयों का क्योकि औपध३ को जान लेने मात्र से कोई रोगरामन अभिमत है, मानसिक दुर्बलता से बौद्धिक दुर्बलता फलित थोड़ा ही होता है ? इसी को पुष्ट करते हुए आगे उन्होंने होती है और उससे अपराधों का स्रोत खुल जाता है। कहा-विद्वानो में भी दोप४ पाए जाते हैं। तथा कौटिल्य वे मानसिक दुर्बलता को पहली विशेषता मानते हैं- . बुद्धि का प्रभाव । पौर उस बौद्धिक न्यूनता का प्रभाव १. कौटलीय अर्थशास्त्र अध्ययन ६ ॥ व्यक्ति के प्राचरणों पर पड़ता है । यह उनका दृढ़ अभि
३. नहि प्रौपधि परिज्ञाना देव व्याधि प्रशमः (को० प्र० मत है। वे कहते हैं "जब व्यक्ति के पास विवेक, विचार
शा० मंत्रि समुद्देश) १. व्यवहारिक मनोविज्ञान पृष्ठ १६२ 'मेरिल की ४. (को० प्र० ३, पृ. ८) विपश्चितस्वपि सुलभा परीक्षा विधि।
दोषाः ।