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________________ भ० विश्वभूषण की कतिपय अज्ञात रचनाएँ श्री अगरचंद नाहटा जैन विद्वानों ने प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी, के गुटकों में विश्वभूपण की कई अज्ञात रचनाएं देखने को राजस्थानी गुजगती प्रादि भाषामों में छोटी-छोटी बहुत- मिली। उनका मंक्षिप्त परिचय इस लेख में दिया जा रहा सी रचनाएँ की है पर उनका प्रचार अधिक नहीं हो है। विश्वभूषण नाम के २-३ कवि एवं विद्वानो की संस्कृत पाया। बडे-बड़े ग्रंथों मे से भी बहुत-से ग्रन्थों को प्रति- एवं हिन्दी की रचनाएँ मिलती है जिनमे से एक विश्वलिपियाँ अधिक नहीं हई। इमलिए उनकी एक-दो प्रतियाँ भूपण जगतभूषण के शिष्य (मूल मघ के) और १८वीं किसी ज्ञान-भडार में पड़ी रहती है। जहाँ तक उस ज्ञान- शताब्दी के है । विशालकीति३ शिष्य विश्वभूपण की भी भण्डार का अवलोकन नही किया जाय अन्य भण्डारों में अन्य रचना प्राप्त है। यहाँ तो उनकी अजात रचनात्रों नहीं मिलने के कारण वे अज्ञात अवस्था में पड़ी रहती है। की ही जानकारी दी जा रही है। प्राचीन विद्वानों की छोटी-छोटी रचनाएँ तो अधिकांश भ. विश्वभूषण सतरहवी शताब्दी के कवि है। काष्ठा लुप्त हो चुकी है। मध्यकाल में ऐसी रचनाओं को सुरक्षित मंघ के विशालकीति के वे शिष्य थे । 'लब्धि विधान रास' रखने के लिए कुछ संग्रह प्रतियाँ लिखी जाने लगी। आगे में उन्होंने अपनी गम-परम्परा इस प्रकार दी हैचलकर ऐसी सग्रह प्रतियाँ गुटकों का रूप धारण करने सखी सकल संघ माहे मुख्य काष्ठासघ जग जाणारे। लगीं। क्योंकि पत्रकार प्रतियो के खुले पन्ने इधर-उधर महिमावंत विख्यात रामसेन बखाणइ रे॥३२॥ हो जाते या टूट-फूट जाते और संग्रह प्रतियां नित्य पाठ ___ सखी तास अनुक्रमि सूरि विजयसेन नाइकु रे । या विशेष प्रध्ययन के लिए लिखी जाती थी। गुटकों के सखी विमल सम काय, कमलकीति तदायकु रे ॥३३॥ द्वारा छोटी कृतियों के संरक्षण एवं स्वाध्याय का कार्य सखी रत्न राशि सम कांति, रत्नकीति ण्ट्रह प्रभु रे। बहत मागे बढा, क्योंकि गुटकों के पत्र सिलाई हो जाने से सखीइन्द्र सदश प्रभा पंज, महेन्द्रसेन मनिगच्छ विभू रे ॥३४ फुटकर पत्रों की तरह बिखरते नही और गुटको को रखने मखी ततपद व्योमि सूर कुमति कुतप नित वारण रे। एवं पढने में भी अधिक सुविधा रहती है। सोलहवी सखी विशालकोति प्रय मरति, सम दम दय धारणु रे। शताब्दी से गुटकाकार प्रतियों का प्रचार बढता ही गया। सखी तदंग्रही कमल शुभ भंग, रंगि चारित्र प्रादरयु रे। और हजारों प्रतियाँ छोटे-मोटे गुटकों के रूप में लिखी गई सखी विश्व जीव प्रतिपाल, नाम श्रीविश्वभूषण वरयं रे। उसमें से बहुत-सी प्राज भी ज्ञान भंडारों में पाई जाती है। सखी तिणि सु कथा कोष, लब्धविधान सुविधि तणी रे ।। पर कुछ समय पहले तक विद्वानों ने उनको इतना महत्व यो छन्द काव्य अलंकार, नवि जाणं व्याकरण भणी रे । नहीं दिया। उनमें फुटकर छोटी-छोटी रचनाएँ हैं-यह रचनाकाल का उल्लेख करते हुए लिखा हैकहकर प्राय. उनकी उपेक्षा की। ज्ञानभडार की सूची सखी संवत सोल गुण च्यार बनाते समय गुटकों को अलग रख दिया जाता। इधर करयर श्रुत पंचमी बुध दिन निरमली है। कुछ वर्षों में इन छोटी-छोटी रचनाओं का भी महत्व सर्व प्रस्तुत लन्धि विधान रास चार ढालों में है। गाथाओं विदित हो गया। क्योंकि इन गुटकों में हजारो महत्वपूर्ण की संख्या क्रमश ४१, ४३, ४०, ४२ है। प्रारम्भ पौर रचनाएँ ऐसी लिखी मिलती है जो बडी-बडी प्रतियो में अन्त में एक वस्तु छन्द है, दूसरी रचना सोलह कारण राम मिल ही नहीं सकती। प्रभो प्रभी अहमदाबाद जाने पर ७६ पद्यों की है। उसकी प्रशस्ति मे नन्दीतट गच्छ का मागम प्रभाकर सौजन्यमूति मुनि पुण्यविजय जी के संग्रह भी नाम है।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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