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________________ अनेकान्त पट्टावली और काल जिनसेन गुरूपदेणात् । २. पाश्वनाथ (वाशीम)-शके भट्टारक सोमसेन प्र.) १५७८ फाल्गुन शुद १२ सेनगणे भ. जिनसेन उपदेशात् महम्मद पातशाह के सम क.लीन सं० १३८२-१४०८ श्रुतवीर वाशमिग्रामे......प्रगमति । धारसेन ३. पि. यंत्र (श्रीपुर)-शके १६०७ क्रोधनाम संवत्सरे मार्गशीर्ष सुदि १० गुरे सेनगणे वृषभसेनान्वये देवसेन-संवत १५१० भ. सोमसेन देवास्त्पट्टे भ. श्री जिनसेन गुरुपदेशात् जांब ग्राम वास्तव्य धाकड जससा भार्या गोराई पूत्र कोंडा द्वि० सोमसेन (स० १५४१-१५९७) [कर्णाटक के पीठ पर] वीरसंघवी भा० चीगाई भ्रात नेमासां (भार्या) सोयराई गुणसेन (सं० १५७६) सेन स० (१५१५. भ्रात मेयासा भार्या द्वारकाई एते प्रण । ४. पि. दर्शन यंत्र (थीपुर)-शाके १६७६ मार्ग श्रुतवीर (म० १५९३-१५९८) । युक्तवीर सिर सुदी १० दसमी मूलसघे वृषभमेनगण वृपभमेन गुणसेन (म० १६३४) गण भट्टारक श्रीगुगभद्रदेवास्तत्पट्टे भ. सोमसेन. तत्पट्टे माणिकसेन भ. श्रीजिनसेनोपदेशात् जाबग्राम धाकड ज्ञाती काण्डासा गुणभद्र (मं० १६३८) (स० १५५७) भार्या चिगाई एते-[भा.र्या गौराई तयो पुत्रा त्रयः लक्ष्मीसेन (मं० १६३८-१६४६) नेममेन प्रथम कोंडासा भार्या चिगाई तयो पुत्री प्रथम रतनमा भार्या (स० १५१५) तुकाई द्वितीय लालासा पुनः संवत नेमासा भार्या सोयराई तृ. सोममेन (मं० १६६२) पुनः संवत नेमासा भा. द्वारकाई एते नित्य प्रणमान्त । इससे शाके १५७७ से १६७६ तक ये पट्टपर थे। ऐमा माणिक्यमेन (म० १६५५-५६) स्पष्ट है। इनकी मृत्यु श्रीपुर में ही हुई है। इनकी गुगभद्र (गुणसेन गुणभद्र-सं० १६५४-८०) समाधी पौली मन्दिर के सामने दक्षिण की ओर है। इनके शिष्य समन्तभद्र सं. १७४६ में देवलगांव में थे। च० सोमसेन (१६५६-६६) देखो---हस्तलिखित श्रेणिक चरित्र जितूर-शाके १६११ जिनसेन (मं० १७१२-१८११) संवत १७४६ जप्ठमासे शुक्लपक्षे ५ तिथौ बुधवासरे श्री देउलग्रामे श्रीमूलसघे सेनगणे पुष्करगच्छे वृपभ. पट्टावली समन्तभद्र (म० १७४६-६७) श्री जिनसेन तत्पटटे श्री भ. समन्तभद्रनामधेयान् । ज्ञाति वघेरवालेन.." तथा सेनगण मन्दिर कारंजा-'इति छत्रमेन (मं० १७५४) श्री हरिवंश. महाग्रन्थ समाप्त: ॥श्रीः।। शुभ भवति, नरेन्द्रसेन (स० १७८७-१७६०) कल्याणं चास्तु ।। सवत १६३२ वर्षे कार्तिक वदी ३ र [बी] || मुनि श्रीधर्मभूषण पठनार्थ । ब्रह्म मोहन पठनार्थं शांतिसेन (म० १८०८-१८१६) भ. श्री जिनसेन ॥ भ. श्री समन्तभद्र । इति । [. ३६१] । यहां संवत १६३२ को अगर शक सवत माना सिद्धसेन (सं०१८२६-१८६६) जाय तब ही ठीक बैठता है और उससे भ० समन्तभद्र का लक्ष्मीसेन (सं० १८२६-१९२२) काल संवत १७४६ से १७६७ तक पाता है। वीरसेन (सं० १९३६-१९६५) मागे के भट्टारकों का क्रम तथा काल सुनिश्चित ही टिप्पणी-कर्णाटक पीठ के भट्टारक वीरसेन किसके है। इस सब विवेचन से स्पष्ट है कि सेनगण की पट्टा शिष्य थे यह निश्चित नहीं कहा जा सकता, अतः यहाँ बली में इस तरह सुधार होना आवश्यक है। काल के आधार पर ही देवसेन के शिष्य बताए है, हो सकता है कि वे द्वि० सोमसेन के ही शिष्य हो। तब इन सोमसेन का काल भी और पीछे जाता है जो संशोध्य है।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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