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________________ सेनगण की-भट्टारक परम्परा व्यक्ति होंगे। ऐसा गलत समझना होता है। डा. विद्याधरजी भी गुणसेन और गुणभद्र को एक ही व्यक्ति बताते १६८० तक है । देखिए १. पि. चोवीसी [वाशीम]-शके है और लिखते भी है कि 'गुणसेन का नामांतर गुणभद्र १५२० श्री मूलसंघे सेनगणे श्री गुगभद्र देवास्तत्लट्टे भ. था।' भ० सं० पृष्ठ ३२। श्रीलक्ष्मीसेन तत्पट्ट भ. श्री सोमसेनः तत्प; भ. श्री लेकिन पट्टावली और मूर्तिलेखों में गुणसेन के शिष्य माणिकगेन उपदेशात् वाशीम नगरे धाकड़जातीय......। गुणभद्र हैं ऐसा स्पाट बताया है। देवो-मल्लिनाथ माणिकसेन के शिष्य गुणभद्र हए। इनका काल स. १६५४ काला पाषाण (देवलगाव)-मवत १६३८ वर्षे शाके से १६८० तक है १ पि. चारित्र तथा ज्ञान यंत्र वाशीम] १५०३ प्रवर्तमाने फाल्गुन मुदो ६ मूलमधे सेनगणे पुष्कर -शके १५२६ पिगल नाम मवत्सरे मार्ग शीर्षशु०५ गच्छे वृषभमेनान्वये भ० श्री मोमसेनस्तत्प? भ. श्रीगुण- श्री मुल. सेन. पूरकर. कारंजे पार्श्वनाथचंत्यालये श्री भद्रस्तत्प? भ० थी श्रुतवीर तत्पट्टे भ० श्री गुण- गुणभद्राचार्याणाम् । २. चद्रनाथ [वाशीम-मं १६८० सनस्तत्पढें भ० श्री गुणभद्रोपदेशाद् वघेरवाल ज्ञातीय। कद्धिरोहागे नाम संवत्सरे मूलमंघे प्रकरगच्छ वषभ. इममे गुणभद्र का काल सं. ११३८ के प्राम-पाम का श्री लक्ष्मी मेन गुरु . तत्पट्टे सोमसेनस्तताट्टे मारिणकसेन ठहरता है। इनके शिष्य लक्ष्मीमेन हये । इनका काल तपट्टे गुणभद्र उपदेशात् धाकडजातीय...... हां इनका मं० १६३८ मे १६४७ के ग्रामपाम का है। देखो - गुणमेन गुगभद्रोमा नाम भी मिलता है-ऋपिमंडल तथा (१) आदिनाथ (देव लगाव -शायः १५०३ प्रवनमाने दर्शन यंत्र [जितूर]- शके १५३३ विघ्नकृत नाम फाल्गुग्ण मुद ७ बुध श्री मूलगधे पुकर गन्छ वृषभ-भ. मंवन्मरे जेठ मुद ५ शनि. मूल. सेन. पूष्कर. भ. श्री गृणभद्र तत्पटटे भ. श्री लक्ष्मीगन गुरुपदशान्......। लक्ष्मीगेन-मोममेन-माणिकसेन तत्पट्टे भ. गुणसेन (२) पार्श्वनाथ [देठ लगाव - शाके १५१४ नदन सवन्मरे गृणभद्र उपदेशात् ज्ञानमेठी भार्या मानाई पुत्र....... फाल्गुन शुक्लपक्ष दिने ७ श्री मूलगघे मेनगणं पृष्क रगन्छे इममे यह गुणभद्र म १६५४ मे ८० और गुणगेन गुणभद्र वृपभ० पारं पर्यामने गुणभद्र भटटारकाना तत्पट्टे भ. ये एक ही व्यक्ति कहे जा मकते है। श्री लक्ष्मीमेन उपदेशात्.........। माणिकमन के शिय मोमगेन | चतुर्थ | मं. १६५६इनके शिष्य सोममन [ननीय | मं. १६६२ हप। १६६६ हा है। इन्होंने माहित्य निर्माण भी किया है, चांदीका महामन |जितूर) शके १५२७ म १.६२ इनके माहित्य में श्रीपर 'अतरिक्ष का उलेख पाता है। विरुद्ध कृन्नाम मंवत्सरे भाद्रपद मामे शुक्लपक्ष ३ धीमूल- मं.११६ को प्रनिष्ठा यह उनके जीवन में अनिम घटना मघे मेनगणे वपभगेनगणान्वये भ. श्री गुणभद्र : नत्पट्ट होगी । और यह प्रतिष्ठा श्रीपुर अंतरिक्षपार्श्वनाथ में हुई श्री लक्ष्मीमेनदेवा : नन्पट्टे भ. मोममेन उपदंशात् श्री है। देखिा-१ ग्रादिनाथ मूर्ति [श्रीपर]-शके १५६१ जितुर ग्रामे श्री पार्श्वनाथ चैत्यालये थी बघेरवाल....... प्रमाथी नाम संवन्मरे फाल्गुन मुदी द्वितीया गुरुवारे श्री ___ भ. मं. लेखाक ३६ मे- 'मवत १५६७ श्री मूलमधे मूलमघे वृषभमेनान्वये पुष्कर गच्छे गनगणं भट्टारक श्री मेनगणे भ. मोममेन उपदेशात कालवाडे सघवी....... गुणभद्रम्तन्पट्टे भ. श्री सोममेन उपदेशान् श्रीपुरणाम श्री 'यह लेग्य तनीय मोममेनका है, मा डा विद्याधर जीने प्रतरिक्ष चैत्यालये......। २. पि. पद्मावती (ग. गो. बताया है । लेकिन हमे विश्वास है कि, एक तो वहां महाजन कांग्जा)-शके १५६१ फाल्गुन वदी ६ पष्ठी मंवत वाचनम गलती होगी, वह म. १६६७ होगा, या श्री मूलमंघे मेनगणे भट्टारक मोमगेन : तुक गणामा व. यह लेख द्वितीय सोममेन मं. १५४१ का ही होगा। गोमा व वोपामा। उपदेशात् निन्यं प्रणमंति । कारंजा मं. १६६७ माने तो वह लेख चतुर्थ सोमसेन का नगरे । प्रतिष्ठा श्रीपुर नगरे विधानः । [मं. १६५६ से १६] टहरता है। लेकिन वह द्वितीय सीमसेन के शिष्य जिनमेन हुए। इनका जीवन ११५सोममेनका ही लेख होगा, जिससे उनका काल स १५४१ २० सालका होगा, कारण पट्ट पर ही ये बराबर सौ साल से १५६७ तक ठहरता है। के थे। देखिए-१. भ. सं.लेखाक ४५-शके १५७७...
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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