SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवर्भ में जनधर्म की परम्परा १४७ प्रचलपुर में अपभ्रंश धर्मपरीक्षा की रचना की। उन्होंने तथा रिट्टनेमिचरिउ के कर्ता स्वयम्भूदेव ने भी अपना अचलपुर को जिनगहप्रचर कहा है । हरिषेण के विषय में निवासस्थान नहीं बतलाया है। वह भी नयनन्दि के डा. उपाध्येजी ने एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया है। कथनानुसार वराड का वाडगाम मिद्ध होता है। षट्(एनल्सप्रॉफ दि भांडारकर प्रो० रि० इन्स्टीटयूट भा० खण्डागम की टीका धवला की प्रशस्ति में प्राचार्य वीरसेन २३ पृ. ५७२-६०८) । प्रचलपुर इस समय अमरावती ने रचनास्थान नहीं बतलाया है वह भी इस कथन से जिले की एक तहसील का सदर मुकाम है। यहाँ तीन ज्ञात हो जाता है । जिनसेनाचार्य ने जयधवला की प्रशस्ति जिन-मन्दिर हैं । यहाँ से १२ मील उत्तरपूर्व में मुतागिरि में रचनास्थान वाटग्राम ही बतलाया है किन्तु प्रदेश का क्षेत्र है । निर्वाणकांड में वर्णित मेढगिरि से यह अभिन्न उल्लेख नहीं किया है। इस पर से स्व०५० प्रेमीजी ने है। निर्वाणकाण्ड के कथनानुसार यहाँ साढ़ेनीन कोटि उक्त वाटग्राम को गुजरात के बड़ौदा से प्रभिन्न माना था मुनि मुक्त हुए थे। गाथा १६ ।। (जैन साहित्य और इतिहास पृ० १४३) । किन्तु नयनंदि ४. भद्रावती और पद्मपुर के कथन मे यह कल्पना निरस्त हो जाती है। इतने महान चांदा जिले में भांदक नामक ग्राम है। इसका पुगतन ग्रन्था का रचना ग्रन्थों की रचना का स्थान यह वाडगाम पाठवीं-नोवीं नाम भद्रावती था। यही जैन, बौद्ध और हिन्दू देवी हाताब्दी में जैन माहित्य का बहुत बड़ा केन्द्र रहा होगा। दवताओं की मूतियो के बहत मे अवशेष पाये जाते है जो खद है कि इस समय यह प्रासद्ध नहीं है। हमारा अनुमान शिल्प-शैली के आधार पर पांचवी-छठी शताब्दी के माने है विदर्भ के अकोला के जिले की बालापुर तहमील में जाते है। यहाँ प्राप्त एक पाश्वनाथ-मूति को लेकर लगभग स्थित वाडेगाँव ही प्राचीन वाटग्राम है। यहाँ से थोडी ही ५० वप पहले श्वेताम्बर ममाज ने यहाँ एक विशाल दूरी पर पातूर ग्राम के पाम जैन शिल्पों के बात से मन्दिर का निर्माण किया था। अब यह एक श्वेताम्बर अवशेष मिले हैं जिनका कुछ उल्लेख पागे किया है। तीर्थ के रूप मे प्रनिष्टित हो चुका है। ६. विन्यातटपुरभंडाग जिले में पदमपुर नामक प्राम है। यहां भी पन्नाट गंघ के श्रीहरिषेणाचार्य ने बृहत्कथा कोष जैन हिन्दू मूर्तियों के कई अवशेष पाये गये है। इनकी (दमवी शताब्दी) में शिवशर्मा अपग्नाम वारत्र मुनि का शिल्पशेली सातवीं-आठवी शताब्दी की मानी जाती है। निर्वाणम्थान वगट प्रदेश के वैगकर के पश्चिम में विन्या ५. वाटग्राम नदी के किनारे विन्यानटपुर बतलाया है (कथा ८० प्राचार्य नयनन्दि ने सकल विधिविधान काव्य (ग्या श्लोक ७०.७२)। हम पहले एक टिप्पणी में यह अनुमान व्यक्त कर चुके हैं कि उक्त वर्णन का विन्यातटपुर विदर्भ रहवीं शताब्दी) मे बतलाया है कि वराड प्रदेश के बाड विभाग में चादा जिले में वैनगंगा नदी के किनारे पर ग्राम में बहुत से जिनमन्दिर है नथा वहाँ श्रीवीरमेन और स्थित वैरागढ के पास-पास रहा होगा (अनेकान्त वर्ष जिनमेन ने धवल, जयधवल तथा महाबन्ध इन तीन १६ पृष्ठ २५६)। मिद्धान्त ग्रन्थों की रचना की थी तथा महाकवि धनजय स्वयम्भूदेव ना पुण्डरीक भी इसी वाडग्राम में हुए थे ७. श्रीपुर(जैनग्रन्थ प्रशस्ति मग्रह भा० २ पृ० २७)। अकोला जिले की वाशिम तहसील में स्थित शिरपुर द्विसन्धान महाकाव्य, नाममाला कोप तथा विषाप- (पुगतन नाम श्रीपुर) मे अन्तरिक्ष पाश्वनाथ का प्रसिद्ध हारस्तोत्र के रचयिता धनंजय ने अपने निवास स्थान का मन्दिर है। कथानो के अनुमार इम मन्दिर का निर्माण कही उल्लेख नही किया है। प्रत. वे वराड विदर्भ के राजा श्रीपाल अपग्नाम एल ने दमवीं शताब्दी में कगया थे यह नयनन्दि का कथन मही मानने में कोई आपत्ति था। इसके विषय में अनेकान्त के पिछले किरणों में काफी नहीं हो सकती। इसी प्रकार स्वयम्भूछन्द उमचरिउ चर्चा हुई है। मदनकीति, जिनप्रभ, उदयकोति, गुणकीति,
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy