SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विदर्भ में जैनधर्म की परम्परा डा० विद्याधर जोहरापुरकर, मंडला १. प्रादेशिक मर्यादा ___ याचार्य श्रीगुणभद्र के उत्तरपुराण (नौवीं शताब्दी) विदर्भ प्रदेश संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में पुरातन में नौवें तीर्थङ्कर श्रीपुणदन्त के प्रधान गणधर का नाम समय से प्रसिद्ध है। वर्तमान महाराष्ट्र प्रदेश के पूर्वी भाग विदर्भ बतलाया है पर्व ५५ श्लोक ५२ । इस ग्रन्थ में के पाठ जिले-भडारा, नागपुर, वर्धा, चांदा, अमरावती, भी श्रीकृष्ण की रानी रुक्मिणी का जन्मस्थान विदर्भप्रदेश यवतमाल, अकोला तथा बुलडारणा--विदर्भ विभाग मे का कुण्डलपुर बतलाया है पर्व ७१ लोक ३४१ जो शामिल होते हैं । मध्य युग मे इस प्रदेश को वराड, वहाड सष्टत उपर्युन कुण्डिनपुर से अभिन्न है। वराट, वैगट (या अंग्रेजी लिपि के कारण बरार, बेरार) महाकवि हरिश्चन्द्र के धर्मशर्माभ्युदय काव्य में भी कहा जाता था। यह वरदातट का रूपान्तर है। भगवान धर्मनाय की पत्नी शृङ्गारवती विदर्भ की राजवरदा [वर्तमान वर्धा नदी इस प्रदेश से संबद्ध जन कन्या थी ऐसा वर्णन है। उमका स्वयम्वर विदर्भ की परम्परा के प्राचीन उल्लेखों का यहाँ सिहावलोकन किया राजधानी कुण्डिनपुर (जो वरदा नदी के तीर पर था) जाता है। मे हुआ था। सर्ग १६ । २. पौराणिक उल्लेख भागवतपुराण में भी श्रीभगवान ऋषभदेव के पुत्रों में एक का नाम विदर्भ बतलाया है। (स्कन्ध ५ अ०४, ६, पुनाट संघ के प्राचार्य श्रीजिनसेन के हरिवंशपुराण [पाठवी शताब्दी] में प्रथम तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव ___इन पौराणिक उल्लेखों से मालूम होता है कि आठवीं के पुत्रों के राज्यो को नामावली दी है। उसमें विदर्भ का नौवीं शताब्दी के विद्वानों की दृष्टि में विदर्भ मे जैन भी समावेश है सर्ग ११ श्लोक ६६ । इसी ग्रन्थ मे परम्परा का सम्बन्ध भगवान ऋषभदेव से ही रहा है। हरिवंश के राजा ऐलय के पुत्र कुणम द्वारा विदर्भ में वरदा नदी के तौर पर कुण्डिनपुर की स्थापना का वर्णन ३. ऐतिहासिक उल्लेख-अचलपुरहै सर्ग १७ श्लोक २३ । कुण्डिनपुर के राजा भीष्मक हेमचन्द्राचार्य के परिशिष्ट पर्व (मर्ग १०) में एक की कन्या रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थी सगं ४२, कथा है जिसके अनुसार प्रार्य शमित ने प्रचलपुर के निकट तथा श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का भी यही ससुराल था कन्या और पूर्णा नदियों के मध्य में स्थित ब्रह्मद्वीप के बहुत सर्ग ४८ । वरदा नदी के तौर पर यह कुण्डिनपुर छोटे से तापमों को जन-संघ मे दीक्षित किया था। इनकी से गाँव के रूप में अब भी विद्यमान है। यहाँ एक जिन परम्परा ब्रह्मद्वीपिक शाखा कहलाई। आर्य शमित पार्य मन्दिर भी है। वज्रस्वामी के मामा थे अतः उनका समय सन् पूर्व दूसरी सेनसघ के प्राचार्य श्रीजिनसेन के आदिपुराण शताब्दी के अन्त में अनुमानित है। अचलपुर से निकली (नौवी शताब्दी) मे भगवान ऋषभदेव के राज्याभिषेक हुई ब्रह्मद्वोपिक शाखा के आर्य सिंह का उल्लेख नन्दीमूत्र के समय भारतवर्ष के विभिन्न राज्यो की नामावली दी की स्थविरावली गाथा ३६ में मिलता है। वे कालिक है पर्व १९ श्लोक १५३ । इसी ग्रन्थ में चक्रवर्ती भरत श्रुत और अनुयोगों के विद्वान अध्येता थे । आचार्यक्रम के द्वारा जीते गये प्रदेशों में भी विदर्भ का समावेश किया से प्रार्य मिह का समय तीसरी शताब्दी के प्रारम्भ में है पर्व २९ श्लोक ४० । अनुमानित होता है । दसवी शताब्दी में पंडित हरिपंण ने
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy