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३८वें ईसाई तथा ७ बौद्ध विश्व-सम्मेलनों को श्री जैन संघको प्ररणा
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स्थापना की करोड़ों विशाल श्री जिन मन्दिरों का निर्माण वर्तमान परिवर्तित परिस्थिति के अनुसार श्री संघ के सर कराया, जन साधारण के लिए भी अनेकों उपयोगी पर ही वैसे कोई प्रभावशाली महापुरुष को उत्पन्न करने प्रवृत्तियाँ करके करोड़ों का धन खर्च किया था। यह सव की जिम्मेदारी है। तो ठीक, जन साधारण मे विशुद्ध धर्म के प्रचार प्रात्मज्ञान का दिव्य मार्ग : के लिए तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार नकनी जेन शताब्दियो का भूतकालीन श्री जैन संघ तथा वर्तमान माधुयों को भी अनार्य देश में भेजे थे। यदि श्री जैनमय कालीन श्री जैन समाज के ऊपर एक विहगम दृष्टि से ने शताब्दियों पूर्व शुरू की गई एक महान प्रतिठिन राजा देखते हुए मुझे तो ऐमा स्पष्ट लग रहा है कि जैन परंश्री सम्प्रति जैन महा पाहत् को महान वर्षप्रभावनाकारी परा ने ज्ञान अर्थात् प्रात्मज्ञान पर अधिक लक्ष्य न देते विशुद्ध प्रवृत्तियों का कुछ भी मूल्याकन किया होता नो हुए केवल क्रिया काण्ट तथा बाह्य प्राचार पर ही विशेष ग्राज मम्पूर्ण विश्व में श्रीनमघ का गौरव तिाना लक्ष्य दिया। ऐसा होने से मात्र क्रिया काण्ड को लेकर अनोखा होता?
ही अनेकों सम्प्रदाय हुए। प्रत्येक सम्प्रदाय में भी क्रिया
के अत्यधिक प्रदर्शन या प्राग्रह के कारण एक दूसरे की ___ यहाँ काश्मीर का एक मामाजिक तथा राष्ट्रीय प्रमग
निन्दा भी होने लगी। और उरा निन्दक स्वभाव के कारण की तुलना करने जैमी है। बात यह है कि काश्मीर के
विश्व मंत्री या विश्व बन्धुत्व कंवल शब्दो में ही रह गया। भूतकालीन नरेश को एक बार लगा कि काश्मीर में जितने
परिणामतः रही गही सघ शक्ति भी क्षीण होने लगी। हिन्दू मे से मुसलमान हो गये है उनको परिवर्तित कराके
दम मार्ग महल की भूतकालीन परिस्थितियो में मैं श्री पुन. हिन्दू बना लिया जाय । हिन्दू मे मे मुसलमान बने जैन मंध को एक महन्य की प्रेरणा लेकर और उसका हए मुसलमान पुनः हिन्दू होने के लिए तैयार भी हो गए. हृदयंगम विचार करके प्रागामी नये मार्ग का अन्वपण थे किन्तु उम ममय के कितने ब्राह्मण पण्डितों ने विरोध करे तब ही थी जैन मध का वास्तविक गौरव भविष्य के किया कि मुसलमान में से हिन्दू बना ही नहीं सकते? काल में भी टि सकेगा। जो वंश अशुद्ध हुमा सो हो गया। फलतः शुद्धिकरण का केवल क्रिया काण्ड तथा प्राचार धर्म की प्रोर भुकाव वह माग प्रसग धरा रह गया। सचिन दृष्टि वाले के कारण ही श्री जैन मघ के बड़े से बड़े माधक का भी ब्राह्मण पण्डितों की उस गलती ने भारत की प्रार्य संस्कृति विकाम अधिकतर व्यवहार गम्ययत्व से यागे देपन में नहीं को कितना महान नुक्सान पहुँचाया है ? उमका अनुभव प्राता। मैं अत्यन्त नम्रता के गाध श्री संघ के सामने मज हर कोई व्यक्ति वर्षों में चली पाती तथा दूर तक प्रश्न करना चाहता हूं कि विशुद्ध निश्चय सम्यक्व अर्थात् चलने वाली काश्मीर, पाकिस्तान प्रादि की ममस्या के देह, इन्द्रिय, बुद्धि, मन से परे दूर-दूर में भी विशुद्ध यात्ममाग में अनभव करता है। यद्यपि यह एक लौकिक उदा- स्वरूप का दर्शन करने वाले महा पुरुप कितने है ? कहो हरण है। किन्तु ार से श्री जैन जैसे महान् सघ के है? यदि हे तो वैसे महापुरुपो रो थी जैन संघ जैमा पग्रणियों को भी उचित सत्रिय हित शिक्षा लेनी चाहिए। महान मघ भी क्या कोई लाभ उठाता है? उन्नति पथ
महान् प्राचार्य श्री उमास्वाति जी महाराज, महान पर प्रांग न बढ़त साधक के लिए देह, इन्द्रिय, बुद्धि मन पाचार्य श्री हरिभद्र मूरि जी महाराज, कलिकाल मवज्ञ मे पर विशुद्ध पात्म स्वरूप का दूर-दूर में ही दर्शन होना प्राचार्य श्री हेमचन्द्र सूरिवर जी महाराज, हिमा धर्म मात्र ही अन्तिम नही है। वास्तव में तो वह अवस्था के उद्मोत करने वाले पूज्य प्राचार्य महाराज श्री विजय अनन्न प्रात्म जीवन का अनुभव कागने वाला प्रवेश द्वार हीर सूरिश्वर जी महाराज, महामहोपाध्याय थी यगो ही है। उस मार्ग पर आगे बढ़ता सापक विशुद्ध यात्मविजय जी महाराज ग्रादि महापुरुपों ने अपनी-अपनी स्वरूप का साक्षात् उनुभव करता है। जैसे देहाभिमानी महान प्रमूल्य शक्तियों का उपयोग उस काल तथा समय व्यक्ति जिह्वा पर मिठाई रखन से मिप्ठता का अनुभव के अनुसार श्री जैनधर्म की उन्नति में ही किया था। करता है वैसा ही साक्षात् प्रात्मानुभव करने वाला साधक