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________________ अनेकान्त पुराण की रचना हिन्दी पद्य में की थी। टीका है पांडे हेमराज की नहीं। गोम्मटसार कर्मकाण्ड कवि हीरानन्द ने अपने समवसरण विधान (१७०१) (कर्मप्रकृति) की टीका सं० १७१७ में बनाई गई है। में इन हेमराज का उल्लेख किया है। यह मागरे की जो अब भारतीय ज्ञानपीठ काशी से प्रकाशित हो चुकी अध्यात्म शैली के विद्वान् थे और तत्वचर्चा करने में है। कवि की भक्तामर स्तोत्र की रचना का जैन समाज में प्रत्यन्त निपूण थे। हिन्दी गद्य लेखक और कवि थे। बहुत समादर है, सहस्रों व्यक्तियों को वह कण्ठाग्र है। पाण्डेदेमराज ने अपनी दो रचनामों में कविवर कवि ने उस में अपनी लघता व्यक्त करते हुए लिखा हैबनारसीदास के साथी कवि कुंवरपाल का उल्लेख किया कि हे भगवन् ! मैं शक्तिहीन होते हुए भी भक्ति-भाववश मोर उन्हें 'ज्ञाता' बतलाया है। सितपट चौरासी बोल में प्रापका स्तवन करता हूँ। जिस तरह कोई हिरिणी बललिखा है हीन होते हुए भी अपने पुत्र की रक्षार्थ मृगपति के सम्मुख नगर प्रागरे में बस कॉरपाल सग्यान । चली जाती है । जैसा कि कवि के निम्न पद्य से स्पष्ट हैतिस निमित्त कवि हेम ने कियो कवित्त बखान । सो मैं शक्तिहीन युति करू', भक्ति-भाव-वश कछु न रह र पौर प्रवचनसार की बालबोध टीका प्रशस्ति में ज्यों मगि निजसुत पालन हेत, मृगपति सन्मुख जाय अचेत लिखा है-जिससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि उन्होंने कुवर यहाँ यह बात विचारणीय है कि डा० साहब ने पांडे पाल की प्रेरणा से ही प्रवचनसार की यह बालबोध टीका हेमराज को सांगानेर का निवासी मानकर बुलाकीदास के बनाई है। पाण्डव पुराणानुसार अग्रवाल और गर्ग गोत्री लिखा है। बालबोष यह कीनी जैसे, सो तुम सुणहु कहूँ मैं तैसे। जबकि सांगानेरवासी हेमराज खडेलवाल थे। और इनका मगर मागरे में हितकारी, कारपाल ज्ञाता अधिकारी परिचय में अनेकान्त वर्ष ११ कि० १० में दे चुका था. तिनि विचारि जिय में यह कीनी, जो भाषा यह होइनवीनी फिर भी उस पर दृष्टि नहीं गई। या उन्होंने उसे देखा अलपवृद्धि भी परथ बखान, अगम अगोचर पद पहिचान ॥५ . ही नहीं होगा, इसी से उन पर विचार नहीं हो सका। यह विचार मन में तिनि राखी, पांडे हेमराज सौं भाखी। । सोनी दूसरी गलती कवि नन्दलाल का परिचय देते हुए हो अब जो प्रवचन की है भाखा, तो जिनधर्म बढ़ सौ साखा। गई है। नन्दलाल श्रावक और कवि नन्दलाल दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। नन्दलाल श्रावक बयानावासी सत्रहस नव मौतरं, माघ मास सित पाख। पंचमि प्रावितबार कौं, पूरन कीनी भाख॥ श्रवणदास के पुत्र थे; जो प्रागरे में ही प्रा बसे थे। किन्तु पांडे हेमराज ने निम्न कृतियों की रचना की है। कवि नन्दलाल गोसना नामक गांव के निवासी थे. यह भी प्रवचनसार टीका सं०१७०९। परमात्म-प्रकाश टीका अग्रवाल गोयल गोत्री थे। इनकी माता का नाम चन्दा सं० १७१६ में, पंचास्तिकाय की टीका सं० १७२१ में, और पिता का नाम भैरो था। इन्होंने यशोधर चरित्र की यह टीका को पांडे रूपचन्द जी के प्रसाद से बनाई थी। रचना सं० १६७० में पौर सुदर्शन चरित्र की रचना सं० सितपट चौरासी बोल सं० १७०६ में बनाया परन्तु वह १६६३ में सम्पन्न की थी। इतनी सब भिन्नता होने मभी अप्रकाशित है। मानतुङ्गाचार्य के भक्तामर स्तोत्र का पर भी कवि नन्दलाल के साथ हेमराज की पुत्री का सुन्दर पद्यानुवाद । नयचक्र की टीका प्रभी तक मेरे देखने विवाह कराना, और बुलाकीदास का जन्म मानना ठीक में नहीं पाई। जो प्रति देखी है वह शाह हेमराज जी की नहीं है। इनके समय में भी अन्तर है। नन्दलाल कवि १. हिन्दी जन भक्ति काव्य और कवि पृ० १५८ दीनी विद्या जनक ने, कीनी मति व्युत्पन्न । २. संवत सोरहसे अधिक सत्तरि सावन मास । पंडित जाप सीख ले, घरणीतल में धन्य ।। यशोधर चरित्र पाण्डव पुगण संवत सोरहस उपरन्त, प्रेसठ जाहु बरम महन्त । १. हेमराज पंडित परवीन ।-समवसरण विधान ८३॥ सुदर्शन चरित्र
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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