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हेमराज नाम के दो विद्वान
परमानन्द जैन शास्त्री
हिन्दी जैन साहित्य के कवियों का अभी तक जो उन्होंने तत्काल पत्र में उसे मानते हुए लिखा था कि यह इतिवृत्त संकलित हुआ है उसमें बहुत से कवियों का इति- भूल डा० कस्तूरचन्द के कारण हुई है। दोहाशतक का वृत्त संकलित नहीं हो सका, इतना ही नहीं किन्तु उनका परिचय उन्होंने मुझे भेजा था। अस्तु, उसे परिमाजित नाम और रचनादि का भी कोई परिचय नहीं लिखा गया। करने के लिए भी मैंने लिखा था, पर वे बीमारी के कारण उसका प्रधान कारण तद्विषयक अनुसन्धान की कमी है। उसे कर न सके। उसके बाद अब डा. प्रेमसागर जी के अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी भाषा में जैनियों का बहत- "हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि" नामक रचना के सा साहित्य रचा गया है जिस पर अनेक तुलनात्मक और पृ० २१४ पर, जो पांडे हेमराज' नाम से देखने में पाई है समालोचनात्मक निबन्धों के लिखे जाने की आवश्यकता उसमें एक व्यक्ति मानकर ही सारा परिचय दिया गया है, है । अस्तु, माज हिन्दी जैन साहित्य के पांडे हेमराज और और उनकी उपलब्ध कृतियों को भी एक विद्वान् की कृति हेमराज गोदिका नाम के दो कवियों का परिचय दिया जाता मान लिया गया है । भविष्य में इस भूल का प्रसार न हो है, जिन्हें भ्रम से विद्वान् लेखकों ने एक ही मान लिया है। इसी से इस लेख द्वारा प्रकाश डाला जा रहा है। यद्यपि दोनों कवि भिन्न भिन्न जाति के हैं। एक की प्रथम हेमराज वे हैं, जो आगरा के निवासी थे और जाति अग्रवाल है तो दूसरे की जाति खडेलवाल । एक प्राकृत संस्कृत तथा हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे। इनकी पांडे हेमराज नाम से ख्यात है तो दूसरे हेमराज गोदिका जाति अग्रवाल और गोत्र 'गर्ग' था। इनके 'जैनी' नाम नाम से । एक हिन्दी गद्य पद्य के अच्छे लेखक और अध्या- की एक पुत्री थी जो रूपवान होने के साथ साथ शीलादि त्म के विशेष विद्वान है, तो दूसरे केवल पद्य के लेखक सद्गुणों में प्रवीण थी। पिता ने उसे खुब विद्या पढ़ाई
और तत्त्वचर्चा के प्रेमी हैं। रचनाएं भी दोनों की जुदी थी, वह बड़ी विदुषी, व्युत्पन्न और बुद्धिमती थी। पाण्डे जुदी हैं प्रथम ने प्रवचनसार की टीका सं० १७०६ में हेमराज ने अपनी पुत्री का विवाह बयाना वासी श्रवणदास बनाई थी किन्तु दूसरे ने उनकी टीका का अध्ययन कर के पुत्र नन्दलाल जी के साथ किया था, जो उस समय उसका पद्यानुवाद स० १७२४ में बनाकर समाप्त किया आगरा में ही रह रहे थे। उससे बुलाकीदास नाम का पुत्र था। इतना होने पर भी उन दोनों को एक मान लिया उत्पन्न हुमा या२ । जिसने माता की आज्ञानुसार पाण्डवगया है । इस भूल में प्रथम कारण डा० कस्तूरचन्द जी
विशेप मालूम हुई कि उनका जन्म सांगानेर में हा काशलीवाल हैं, उन्होंने अनेकान्त वर्ष १४ कि० १० में जो
था और यह दोहाशतक कामगढ़ (कामा, भरतपुर) 'उपदेश दोहाशतक' का परिचय दिया है, वह द्वितीय
में कीतिसिंह नरेश के समय में बनाया गया। हेमराज की कृति है जिसे भूल से प्रथम हेमगज की कृति
अर्घकथानक पृ० १०८ मान लिया गया है। उसके बाद श्रद्धेय नाथूराम प्रेमी
१. यह ग्रन्थ अभी भारतीय ज्ञानपीठ काशी से मुद्रित द्वारा सम्पादित अर्धकथानक के परिशिष्टों में हेमराज का
हुआ है। परिचय देते हए वहाँ इसे प्रथम की कृति बतलाया गया
हेमराज पंडित बस, तिसी आगरे ठाइ । है। जब मैंने अर्धकथानक का दूसरा एडीसन देखा तो
गरग गोत गुन अागरी, सब पूजे तिस पाइ। प्रेमी जी को उस भूल की ओर आकर्षित किया । तब
उपजी ताके देहजा, जैनी नाम विख्याति । १. प्रेमी जी ने लिखा है कि-दोहाशतक ले यह बात शील रूप गुण मागरी, प्रीति नीति की पांति ॥